रीवा में 450 साल पुरानी शाही परंपरा के साथ मनाया विजयादशमी पर्व

रीवा जिले में विजयदशमी का पर्व पारंपरिक और राजसी अंदाज में धूमधाम से मनाया गया। एनसीसी मैदान में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन किया गया।

रीवा में 450 साल पुरानी शाही परंपरा के साथ मनाया विजयादशमी पर्व

रीवा । बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजयदशमी जिले में धूमधाम से मनाया गया। शहर से लेकर नगर परिषद व ग्रामीण अंचलों में जगह-जगह रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले दहन किए गए। इस मौके पर लोगों ने एक दूसरे को दशहरे की शुभकामनाएं दी। लोगों ने देश को स्वच्छ बनाने के साथ गंदगी रूपी रावण के वध का भी संकल्प लिया।

शहर मे एनएनसीसी मैदान में दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया गया। असत्य और बुराइयों का अंतत: नाश होता ही है, अहंकारी रावण के वध के साथ एक बार रामलीला के मंचों से यही संदेश दिया गया। रात को रंगारंग आतिशबाजी के बीच श्रीराम ने अंतिम तीर चलाया और देखते-देखते हुए रावण का विशालकाय पुतला जलकर खाक हो गया।

इससे पहले कुंभकरण और मेघनाद भी मारे गए। रावण के मारे जाते ही आकाश श्रीराम की जयघोष से गूंजने लगा। बता दे एनसीसी मैदान में शाम 6 बजे के रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि रीवा राजघराने की युवराज दिव्यराज सिंह रहे।

शाम 6:30 रीवा किला की गद्दी पर विराजे राजाधिराज भगवान राम की गई विशेष पूजा की गई, गद्दी पूजन के बाद किला से शुरू हुआ चल समारोह का आयोजन शुरू हुआ रथ मे सवार होकर आगे आगे चली भगवान राम की सवारी. सेवक के रूप मे उपस्थित रीवा राजघराने के राजकुमार दिव्यराज सिंह. पीछे पीछे चली माँ दुर्गा की सुन्दर झाकियां देखने को मिली.

सवारी शहर में फोर्ट रोड घोड़ा चौराहा साईं मंदिर से होते हुए कॉलेज चौराहा से एनसीसी मैदान पहुंचे जहां नगर विजय उत्सव समिति के अध्यक्ष प्रकाश तरानी संरक्षक सियाराम गुप्ता, संरक्षक भाजपा जिला अध्यक्ष वीरेंद्र गुप्ता के नेतृत्व में समिति के सदस्यों ने युवराज का स्वागत किया, जिसके बाद राम-लक्ष्मण हनुमान की पूजा-अर्चना की गई।

ठीक 12 बजे 51 फीट के रावण और 45- 45 फीट के कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया गया। श्रीराम के रावण की नाभि में बाण मारते ही दशानन का अहंकार धू-धूकर जल गया। सबसे पहले मेघनाद, फिर कुंभकरण और सबसे अंत में रावण का दहन किया गया।

जिसके बाद जमकर आतिश बाजी हुई। रावण दहन के साथ ही पूरे परिसर में जय श्रीराम के नारे से गुंजायमान हो गया। किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोकने के लिए मौके पर नगर निगम का दमकल वाहन और पुलिस प्रशासन मौके मौजूद रहा।

रावण दहन के बाद सभी ने एक दूसरे को विजयादशमी की बधाई दी। पुतला दहन देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। मैदान में रावण दहन से पूर्व विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया. प्रयागराज और बनारस से आए संगीतकारो समा बांध दिया।

आतिशबाजी ने मोहा मन

मंद-मंद मुस्काराते रावण कुनबे के पुतलों से निकलने वाली आतिशी बारिश ने लोगों का मन मोह लिया। इस दौरान रंग-बिरंगी आतिशबाजी के नजारे का लोगों ने लुत्फ उठाया। कारीगर ने रावण, कुंभकरण व मेघनाद के पुतलों में हजारों पटाखे लगाए गए।

गद्दी पूजन के बाद शुरू हुआ ऐतिहासिक दशहरे का पर्व 

गुरूवार की शाम विजयादशमी के अवसर पर सैकड़ो वर्ष पुराने ऐतिहासिक पल को दोहराया गया, रीवा किला में सबसे पहले गद्दी पूजन का आयोजन किया गया, जिसमे राज पुरोहितों के द्वारा वेदों के मंत्र उच्चारण के साथ राजसी अंदाज में पूजा अर्चना की गई.


रीवा रियासत के 37वें महराजा पुष्पराज सिंह व उनके पुत्र युवराज दिव्यराज सिंह ने अपने आराध्य राज सिंहासन में विराजे राजाधिराज भगवान राम की विशेष पूजा अर्चना की, इस दौरान राजपरिवार के कई सदस्य उपस्थित रहे, इसके बाद किला के बाहर प्रतीक्षा कर रही प्रजा को राजा ने दर्शन दिए।

अब तक बघेल वंश से 37 पीढ़ियों तक के राजाओं ने राजपाठ संभला, तब से लेकर अब तक एक भी राजा राज सिंहासन में विराजमान नहीं हुए और भगवान राम सीता सहित लक्ष्मण को राजाधिराज के रूप में स्थापित किया और राजगद्दी श्रीराम के नाम करके उन्हें अपना आराध्य माना और खुद प्रशासक के रूप में काम करते हुए उनकी सेवा करते रहे


इसके बाद से प्रत्येक वर्ष दशहरे के दिन विधिवत राजसी अंदाज में पूजा अर्चना का प्रचलन शुरू हुआ और रियासत के प्रत्येक महाराजा इस परंपरा को उसी शाही अंदाज में निभाते चले आए।  परम्परा का निर्वहन करते हुए महाराजा पुष्पराज सिंह व युवराज दिव्यराज सिंह ने मंच से नीलकंठ पक्षी को आकाश की ओर उड़ाया

इसी दौरान पान खाने की परम्परा भी निभाई गई, इसके बाद हर वर्ष की तरह विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करके देश और विंध्य का नाम रोशन करने वालें महान लोगों को महाराज पुष्पराज सिंह के द्वारा पुरुस्कृत भी किया गया। 

भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को सौंपा था विंध्य क्षेत्र 

बताया जाता है की 13 वीं शताब्दी यानी  की लगभग 700 साल पहले बघेल राजवंश की स्थापना विंध्य के बांधवगढ़ में हुई थी. बघेल राजवंश के पित्रपुरुष व्याघ्रदेव उर्फ बाघ देव महाराज गुजरात से विंध्य के बांधवगढ़ में आए.

इसी दौरान महाराजा ने जानकारी दी थी कि समूचा इलाका भगवान राम के अनुज लक्ष्मण का है, इसके बाद बघेल राजवंश के महाराज विक्रमादित्य सिंह जू देव ने 16वीं शताब्दी में बांधवगढ़ से राजधानी का दर्जा समाप्त करते हुए रीवा रियासत को बघेल राजवंश की राजधानी बनाई. तकरीबन 400 वर्ष पूर्व रियासत की राजधानी बदली गई,इसका दर्जा रीवा को मिला बघेल वंश के राजा रीवा आए और यहीं पर स्थापित हो गए।