संजय गांधी अस्पताल के पीछे खुले में डाला जा रहा ज़हरीला बायोमेडिकल वेस्ट
खून से सनी पट्टियाँ, इंजेक्शन और ब्लड बैग्स खुले में पड़े, मंडरा रहा संक्रमण का खतरा प्रदूषण और महामारी फैलाने का बड़ा कारण बन सकता है अस्पताल का यह लापरवाह रवैया

ऋषभ पांडेय
रीवा । अस्पतालों का फर्ज है कि लोगों की जान को बचाया जाए नाकि कोई ऐसा काम किया जाए, जिससे कि लोगों की जान को खतरा पैदा हो। विंध्य क्षेत्र सबसे अस्पताल संजय गांधी अस्पताल में ऐसा ही हो रहा है। अस्पताल से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में फेंककर दूसरों की जान को खतरा पैदा कर रहे हैं। नियम व कानून की धज्जियां उड़ाते हुए बायोमेडिकल वेस्ट को खुले में अस्पताल के पीछे फेंका जा रहा है,वेस्ट में इंजेक्शन व पूरी सीरिंजों के साथ-साथ दवाएं भी हैं जोकि संक्रमण फैलने का कारण बन सकता है।
बता दे अस्पताल परिसर के पीछे खुले में इन्फेक्टेड इंजेक्शन, खून से सनी पट्टियाँ, ब्लड बैग्स और अन्य मेडिकल वेस्ट बगैर किसी प्रोटेक्शन के फेंके गए हैं। इससे न सिर्फ आम लोगों की जान को खतरा है, बल्कि सफाई कर्मचारियों, बच्चों और जानवरों तक के लिए यह मौत का सामान साबित हो सकता है।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब संजय गांधी अस्पताल में ऐसी लापरवाही सामने आई है। विगत पिछले वर्ष भी इसी तरह के हालात की तस्वीरें सामने आई थी तब भी अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी दी गई थी। लेकिन अफसोस, एक साल बाद भी तस्वीर नहीं बदली। बता दें कि एनजीटी ने साफ तौर पर चिकित्सा अपशिष्ट के निस्तारण के लिए कड़े नियमों का प्रावधान किया है. जिसके तहत एक अलग तरीके से बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण की प्रक्रिया अपनाई जाती है.
साफ तौर पर हिदायत दी गई है कि क्लोरिनेटेड, प्लास्टिक बैग दस्तानों और ब्लड बैंक से निकलने वाले निडिलजैसे अपशिष्ट को एक अलग ढंग से निस्तारित किया जाए,इसके अलावा सरकार ने बायो मेडिकल वेस्ट के सही से निस्तारण ना करने पर सख्त रूख अपनाते हुए 5 साल की कैद और 1 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान रखा है.लेकिन संजय गांधी अस्पताल प्रबंधन को ना तो एनजीटी से डर लगता है और ना ही सरकार के बनाए गए कानून से. इससे वायु प्रदूषण फैलने का खतरा मंडरा रहा है जो इंसानी जिंदगी के साथ ही अन्य जीवों की जिंदगी के लिए भी घातक हो सकता है।
जिम्मेदार बोले मुझे जानकारी नहीं
जब इस मामले में अस्पताल के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस विषय पर अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें इस तरह के कचरे के खुले में फेंके जाने की कोई जानकारी नहीं है। जब उन्हें वायरल वीडियो के बारे में बताया गया, तो उन्होंने इस पर कोई स्पष्ट जवाब देने से इनकार कर दिया। यह और भी चौंकाने वाली बात है कि जिस व्यक्ति के जिम्मे मेडिकल कॉलेज सहित अस्पताल की संपूर्ण व्यवस्था है, वह खुद ही इससे अनजान है। एक अस्पताल के डीन की जिम्मेदारी सिर्फ शैक्षणिक नहीं होती, बल्कि प्रबंधन, निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था की भी होती है।
बायोमेडिकल वेस्ट क्यों है खतरनाक?
बायोमेडिकल वेस्ट यानी अस्पतालों, क्लीनिकों और लैब्स से निकलने वाला ऐसा कचरा जिसमें खून, इंजेक्शन, ऑपरेशन के बाद की पट्टियाँ, निडल्स, ब्लेड्स और अन्य इन्फेक्टेड सामग्री शामिल होती है। यह कचरा एचआईवी, हेपाटाइटिस वि-सी टायफाइड, टीबी जैसी बीमारियाँ फैलाने का जरिया बन सकता है। अगर यह वेस्ट खुले में पड़ा रहे और किसी व्यक्ति या जानवर को इससे चोट लग जाए या संपर्क हो जाए, तो जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं, यह पर्यावरण को भी गंभीर रूप से प्रदूषित करता है।
क्या कहते है नियम
भारत सरकार ने बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के तहत ऐसे वेस्ट के संग्रहण, सेग्रीगेशन, डिस्पोज़ल और ट्रीटमेंट के लिए सख्त नियम बनाए हैं। इनका पालन न करने पर संबंधित अस्पताल पर भारी जुर्माना, कानूनी कार्रवाई और यहां तक कि लाइसेंस रद्द कर अस्पताल बंद तक किया जा सकता है।