अमावस्या का पितृपक्ष में महत्व उपाय शास्त्रीय प्रमाण और गीता का संदेश

अमावस्या का पितृपक्ष में क्या महत्व है सर्वपितृ अमावस्‍या पर कैसे करें पूर्वजों को प्रसन्‍न उपाय शास्त्रीय प्रमाण और गीता का संदेश

अमावस्या का पितृपक्ष में महत्व उपाय शास्त्रीय प्रमाण और गीता का संदेश

पितृपक्ष, जो पूर्वजों की स्मृति और तर्पण को समर्पित है उसका चरम बिंदु अमावस्या है। इस दिन का सनातन धर्म में अत्यंत महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अमावस्या पर किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान सीधा पितरों तक पहुँचता है और उन्हें शांति प्रदान करता है। पितृपक्ष के प्रत्येक दिन की अपनी महत्ता है, किन्तु अमावस्या का दिन विशेष रूप से शक्तिशाली है क्योंकि चन्द्रमा के लोप से यह अदृश्य लोक से जुड़ाव का प्रतीक बनता है।

शास्त्रीय आधार: देव और पितरों की प्राप्ति

 श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण स्पष्ट मार्गदर्शन देते हैं

 “यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः।

भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्॥”

भावार्थ:

  • देवताओं की उपासना करने वाले देवलोक को प्राप्त होते हैं।
  • पितरों की पूजा करने वाले पितृलोक को प्राप्त होते हैं।
  • भूत-प्रेत की पूजा करने वाले उन्हीं लोकों को प्राप्त होते हैं।
  • परन्तु जो मेरी भक्ति करते हैं, वे मुझे ही प्राप्त होते हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधारण पूजन और सर्वोच्च भक्ति के फलों में अंतर है। पितृ-तर्पण करने वाले पितृलोक प्राप्त करते हैं और देव-पूजन करने वाले देवलोक, किन्तु यह दोनों ही अस्थायी लोक हैं। केवल भगवत्-भक्ति से ही साधक संसार चक्र से परे शाश्वत मुक्ति (मोक्ष) को प्राप्त करता है।

अमावस्या का पितृपक्ष में महत्व

  1. सूर्य और चन्द्र का संगम

अमावस्या आत्मा (सूर्य) और मन (चन्द्र) के संगम का प्रतीक है, जिससे पितरों तक तर्पण का प्रवाह होता है।

  1. पितरों का सामूहिक अवतरण

गरुड पुराण (प्रेतकाण्ड, अध्याय 4) में कहा गया है—

“पितरः प्रीयन्ते सर्वे अमावास्यादिने कृतः।

तर्पिताः तिलतोयेन श्राद्धेन च विशेषतः॥”

अमावस्या पर पितर तिल और जल से किए गए तर्पण तथा श्राद्ध से विशेष रूप से संतुष्ट होते हैं।

  1. श्राद्ध की पूर्णता

 “अमावास्याम् दिने श्राद्धं पितॄणां परमां गतिम्।”

अमावस्या के दिन किया गया श्राद्ध पितरों को परम संतोष और गति प्रदान करता है।

अमावस्या पर पितृशांति के उपाय

  1. तिल–जल से तर्पण
  • प्रातःकाल सूर्य को काले तिल और जल अर्पित करें।
  • गरुड़ पुराण में तिल–जल को पितृशांति का श्रेष्ठ साधन कहा गया है।
  1. दक्षिण दिशा में दीपदान
  • दक्षिण दिशा यम और पितरों की मानी जाती है। वहाँ दीपक प्रज्वलित करना पितरों के मार्ग को       आलोकित करता है।
  • मनुस्मृति में दक्षिण की ओर अग्नि और प्रकाश को पितरों की कृपा से जोड़ा गया है।
  1. गौ, पक्षी और जीवों को अन्नदान
  • दया के कार्य से अर्जित पुण्य पितरों तक पहुँचता है।
  • महाभारत कहता है

“यत् किञ्चित् प्राणिनः प्रीत्या दत्तं पितृगणं गच्छति।”

  1. ब्राह्मणों व गरीबों को अन्नदान
  • अन्नदान से पितरों के साथ देव भी तृप्त होते हैं।
  • गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृपक्ष में किया गया अन्नदान अनेक गुना फल लौटाता है।

देव और पितृ पूजा का संतुलन

 मनुस्मृति तीन ऋणों का उल्लेख करती है—

  • देवऋण (यज्ञ द्वारा)
  • पितृऋण (श्राद्ध द्वारा)
  • ऋषिऋण (वेदाध्ययन द्वारा)

       इस प्रकार

  • देवपूजन से सृष्टि का संतुलन बना रहता है।
  • पितृपूजन से वंश परंपरा सुरक्षित रहती है।
  • और परमात्मा की भक्ति से साधक मोक्ष पाता है।

पितृपक्ष की अमावस्या जीवन की निरंतरता का स्मरण कराती है। जल, तिल, दीप और अन्न के द्वारा किया गया तर्पण केवल अनुष्ठान नहीं, अपितु कृतज्ञता का भाव है। यह हमारे पूर्वजों के प्रति ऋण को स्मरण कराता है और परिवार तथा समाज में सामंजस्य स्थापित करता है। परंतु, जैसा कि श्रीकृष्ण ने गीता में कहा, देवलोक और पितृलोक की प्राप्ति भी अस्थायी है। केवल भगवत्-भक्ति ही साधक को शाश्वत मुक्ति और परमात्मा के सान्निध्य में ले जाती है।