बॉलीवुड को रुला गया हँसी का सबसे बड़ा चेहरा, असरानी नहीं रहे, पढ़िए उनके संघर्ष की कहानी
बॉलीवुड के मशहूर हास्य अभिनेता असरानी अब हमारे बीच नहीं रहे. मुंबई में उनका निधन हो गया. लाखों चेहरों पर हंसी लाने वाले इस कलाकार का जीवन सिर्फ एक अभिनेता की कहानी नहीं, बल्कि संघर्ष, आत्म-विश्वास और कला के प्रति जुनून की जीती जागती मिसाल है

बॉलीवुड के मशहूर हास्य अभिनेता असरानी अब हमारे बीच नहीं रहे. मुंबई में उनका निधन हो गया. लाखों चेहरों पर हंसी लाने वाले इस कलाकार का जीवन सिर्फ एक अभिनेता की कहानी नहीं, बल्कि संघर्ष, आत्म-विश्वास और कला के प्रति जुनून की जीती जागती मिसाल है.
जयपुर की गलियों से निकले, मुंबई की स्क्रीन पर छा गए
असरानी का असली नाम गोवर्धन असरानी था. वे बेहद साधारण मध्यमवर्गीय सिंधी परिवार से थे, जिनके पिता भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से जयपुर आकर बस गए थे. जयपुर में उन्होंने कालीन की दुकान शुरू की, लेकिन असरानी को व्यापार मौज नहीं आती थी. उनका मन तो सिर्फ अभिनय करने में ही लगता था.
15 साल की उम्र में ‘चोंच’ बनकर रेडियो पर छा गए
जब असरानी सिर्फ 15 साल के थे, तब उन्होंने जयपुर के आकाशवाणी केंद्र में वॉयस टेस्ट पास किया. बच्चों के कार्यक्रम में चोंच नाम से आवाज देना शुरू किया. इसके लिए उन्हे हर के लिए पांच रूपए की फीस मिलती थी. इसी कमाई से उन्होंने पढ़ाई का खर्च उठाया और अपना अभिनय के सपने की ओर मुड गए.
पढ़ाई पूरी की, लेकिन सपना था परदे पर आने का
उन्होंने सिंधी पंचायत स्कूल, फिर सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज, जयपुर से बीए किया. लेकिन उनका मन किताबों में कम अभिनय में ज्यादा रमता था. गणित से नफरत और माइक और स्टेज से मोहब्बत ने उन्हें एक दिन घर से भागकर मुंबई पहुंचा दिया था.
दोस्तों ने कहा था तेरा भी लगेगे पोस्टर
जयपुर का एक किस्सा आज भी रंगकर्मियों के बीच बड़ा मशहूर है. एक दिन असरानी अपने दोस्त के साथ साइकिल के डंडे पर बैठकर MI रोड से गुजर रहे थे. एक जगह रुककर उन्होंने मेहरबान फिल्म का पोस्टर देखा तो कुछ देर तक देखते ही रह गए. तब उनके दोस्ते ने कहा तू मेहनत कर एक दिन तेरा भी पोस्टर यहीं लगेगा. कुछ ही महीनों बाद उसी जगह फिल्म हरे कांच की चूड़ियां का पोस्टर लगा जिसमें एक कोने में असरानी की तस्वीर भी थी.
नाटकों से जुटाए पैसे, और मुंबई का टिकट मिला
असरानी जब मुंबई जाने लगे, तो जयपुर के दोस्तों ने 'जूलियस सीजर' और 'अब के मोय उबारो' जैसे नाटकों के जरिए पैसे इकट्ठे किए और उन्हें दिया. यही पैसा असरानी के सपनों के सफर की टिकट बन गया.
पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से सीखी अभिनय की बारीकियां
मुंबई पहुंचकर उन्हें मशहूर निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी ने सलाह दी कि वे अभिनय की पढ़ाई करें.
1964 में उन्होंने पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया. और 1966 में डिप्लोमा पूरा किया. यहीं से शुरू हुआ एक नए असरानी का जन्म..
गुजराती फिल्म से करियर की शुरुआत, फिर बॉलीवुड में छा गए
1967 में उन्होंने गुजराती फिल्म से करियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड में हास्य का एक ऐसा चेहरा बनाया, जिसे आज भी हर उम्र का दर्शक याद करता है. आई केलेंडर, आई टाइमटेबल, अंग्रेजों के जमाने का जेलर जैसे डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं.
हास्य को भीतर से निकालो यही थी उनकी सीख
असरानी हमेशा कहा करते थे. हास्य अपने भीतर से पैदा करो. आम आदमी को महसूस करो, उसकी तकलीफ को समझो, वहीं से असली कॉमेडी निकलती है. वे हर युवा कलाकार को प्रोत्साहित करते थे. विनम्रता और सादगी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थी.
सिंधी ने कभी भीख नहीं मांगी अजमेर में दिया था गर्व से भरा संदेश
असरानी ने 23 नवंबर 2024 को अजमेर में एक कार्यक्रम में कहा था –आपने किसी देश में सिंधी भिखारी नहीं देखा होगा. सिंधी ने पकौड़े बेचे, कपड़े बेचे, लेकिन कभी भीख नहीं मांगी. उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता ने भी कपड़े सिले और बेचे, लेकिन हमेशा इज्जत और मेहनत से जीना सिखाया.
एक कलाकार नहीं, एक प्रेरणा चले गए
असरानी सिर्फ हंसी के कलाकार नहीं थे, वो एक संघर्ष की जीती-जागती मिसाल थे. जयपुर की गलियों से निकलकर उन्होंने मुंबई में अपना नाम बनाया और लाखों दिलों में जगह बनाई. आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियां, उनके किरदार और उनकी हँसी हमेशा जिंदा रहेगी.