पुतिन की भारत यात्रा पर पश्चिम की पैनी नजर, कूटनीतिक खींचतान तेज

इस समय रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं. पश्चिमी देश इस दौरे पर बाज वाली नजर बनाए हुए हैं. रूस और भारत के अच्छे होते संबंधों से पश्चिमी देश असहज हैं

पुतिन की भारत यात्रा पर पश्चिम की पैनी नजर, कूटनीतिक खींचतान तेज
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इस समय फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों चीन की यात्रा पर हैं. दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं.  लेकिन पुतिन के दौरे की चर्चा ज्यादा हो रही है. पश्चिमी देश इस दौरे पर बाज वाली नजर बनाए हुए हैं. रूस और भारत के अच्छे होते संबंधों से पश्चिमी देश असहज हैं. इसको आप ऐसे समझ सकते हैं कि एक दिसंबर को भारत में फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी के राजनयिको ने टाइम्स ऑफ इंडिया में मिलकर लेख लिखा  जिसमें यूक्रेन युद्ध को लंबा खिचने के लिए रूस को जिम्मेदार ठहराया गया. 

जिसका जवाब भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलिपोव ने उसी अखबार में एक लेख लिखा और संयुक्त लेख को यूक्रेन जंग के बारे में भारतीय जनता को गुमराह करने वाला बताया.

फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के राजनयिकों के लेख का रूस में भारत के राजदूत रहे और भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने तीखी आलोचना की.

बर्लिन में ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर थॉर्स्टन बेनर ने संयुक्त लेख का बचाव करते हुए बुधवार को एक्स पर लिखा, "उस लेख में भारतीय विदेश नीति को लेकर एक भी लाइन नहीं है...मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि कोई कैसे और क्यों इसे कूटनीतिक अपमान या दख़ल के रूप में बता सकता है."

इस पर कंवल सिब्बल ने एक्स पर लंबा जवाब लिखा, जिसमें उन्होंने एक 'दोस्ताना दौरे को लेकर विवाद' पैदा करने की कोशिश बताया.

बर्लिन में ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर थॉर्स्टन बेनर ने संयुक्त लेख का बचाव करते हुए बुधवार को एक्स पर लिखा, उस लेख में भारतीय विदेश नीति को लेकर एक भी लाइन नहीं है...मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि कोई कैसे और क्यों इसे कूटनीतिक अपमान या दख़ल के रूप में बता सकता है.

इस पर कंवल सिब्बल ने एक्स पर लंबा जवाब लिखा, जिसमें उन्होंने एक 'दोस्ताना दौरे को लेकर विवाद' पैदा करने की कोशिश बताया.

रूस इस दौरे को कैसे देख रहा 

रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएटल स्टडीज में सेंटर फोर साइंटिफिक एंड एनॉलिटिकल इन्फॉर्मेशन के हेड निकोलाई प्लोत्निकोव ने द हिंदू के साथ बातचीत में भारतीय विदेश नीति को 'व्यावहारिक' बताया.

"हमारे देश कई वर्षों की मित्रता और रणनीतिक सहयोग से एकजुट हैं. द्विपक्षीय संबंध और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सहयोग दोनों ही लगातार विकसित हो रहे हैं. नई दिल्ली वार्ता का एजेंडा मुख्य रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के कड़े बाहरी दबाव के अनुकूल ख़ुद को कैसे ढाल सकें. हालांकि कुछ रिपोट्स हैं, जिनमें कहा गया है कि अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए भारत ने रूसी तेल खरीद को काफी हद तक कम कर दिया है लेकिन प्लोत्निकोव का कहना है कि इससे भारत को अच्छा लाभ होता है.

उन्होंने द हिन्दू से कहा, "भारतीय आयातों में रूसी तेल का अच्छा ख़ासा हिस्सा है और इसे ख़रीद कर भारत अच्छा मुनाफ़ा कमाता है. एक ऐसे फ़ायदेमंद पेशकश को कोई क्यों ठुकराएगा, जिससे सरकारी ख़ज़ाने को भरने का मौक़ा मिलता हो. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि तेल से अलग भारत और रूस दूसरे क्षेत्रों में साझेदारी के मौक़ों को तलाश रहे हैं.

बुधवार को एक कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि सरकारों के बीच समझौतों में 'मोबिलिटी, हमारी कूटनीति का एक बहुत अहम हिस्सा' है. द हिन्दू से ही मॉस्को स्थित विश्लेषक आरिफ असालियोग्लू ने कहा, " रूस को भारतीय कुशल और अर्ध-कुशल कामगारों की भारी जरूरत है और रूस में पांच लाख भारतीय कामगारों की जरूरत हो सकती है. उन्होंने कहा कि यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से ही पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव का सामना करने में रूस के लिए चीन और भारत का समर्थन महत्वपूर्ण रहा है.

भारत के डिप्लोमेट इसे कैसे देख रहे?

यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस लगातार कह रहा है कि दुनिया में अब शक्ति संतुलन बदल रहा है और एक बहुध्रुवीय विश्व (यानी कई ताकतवर देशों वाली दुनिया) बन रही है. हाल ही में चीन के तियानजिन में जब चीन, रूस और भारत के नेता मिले, तो इस नई बहुध्रुवीय व्यवस्था का जिक्र फिर जोर से हुआ. भारत शुरू से ही किसी गुट में शामिल न होने की नीति (Non-Aligned) पर चलता रहा है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय तनाव बढ़ने के साथ खासतौर पर अमेरिका भारत पर दबाव डाल रहा है कि भारत कोई पक्ष चुने.

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह समय?

कई भूराजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब खुद को “नई विश्व व्यवस्था” के लिए तैयार कर रहा है. उनका कहना है कि 2000 के दशक में अमेरिका चाहता था कि भारत उसके खेमे में शामिल हो और रूस को पीछे छोड़ दे लेकिन आज रूस के फिर से मजबूत होने से यह योजना बदल गई.

पुतिन का दौरा: भारत के लिए बड़ा संकेत

कुछ एक्सपर्टस राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा को इस साल की सबसे महत्वपूर्ण घटना बता रहे हैं. अगर डोनाल्ड ट्रंप क्वॉड समिट के लिए भारत आते, तो शायद पुतिन अपना दौरा टाल देते..यानी समय भी एक राजनीतिक संदेश है. पुतिन का दौरा सिर्फ BRICS (2026 में भारत की अध्यक्षता) तक सीमित नहीं है. इसके द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव हैं. भारत दुनिया को दिखाना चाहता है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद उसके पास रणनीतिक स्वतंत्रता है. रूस चाहता है कि भारत पश्चिम के साथ रिश्तों में कुछ दूरी रखे. या कम से कम संतुलन बनाए.