क्या PK बनेंगे नए आनंद मोहन? दोनों की राजनीति कितनी सिमिलरिटी
1995 के बिहार में क्रांति की हवा चल रही थी. लालू प्रसाद यादव की सरकार के खिलाफ सवर्ण समाज में गुस्सा था. छोटन शुक्ला की हत्या, फिर डीएम. कृष्णैया का कत्ल. उत्तर बिहार सुलग रहा था. झारखंड तब बिहार का हिस्सा था, लेकिन राजनीतिक तापमान पूरे राज्य को जला रहा था.

1995 के बिहार में क्रांति की हवा चल रही थी. लालू प्रसाद यादव की सरकार के खिलाफ सवर्ण समाज में गुस्सा था. छोटन शुक्ला की हत्या, फिर डीएम. कृष्णैया का कत्ल. उत्तर बिहार सुलग रहा था. झारखंड तब बिहार का हिस्सा था, लेकिन राजनीतिक तापमान पूरे राज्य को जला रहा था. तब आनंद मोहन सिंह ने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई.. राजपूतों, भूमिहारों और मिथिलांचल के ब्राह्मणों के हीरो बन गए.. उन्होंने ऐलान किया की सभी 324 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे... खुद खड़गपुर, गायघाट और शिवहर से चुनावी मैदान में उतरे...
वो दौर सोशल मीडिया का नहीं था, लेकिन आनंद सिंह का गजब का क्रेज था. सवर्ण बाहुबलियों ने ताल ठोक दी,, बूथ लूटने वाले अब चुनाव लड़ने लगे. समर्थकों को लग रहा था, आनंद मोहन ही सीएम बनेंगे. लेकिन फरवरी-मार्च के चुनावी नतीजों ने सबको धराशायी कर दिया. समर्थकों को लग रहा था कि आनंद मोहन सीएम बनने जा रहे हैं.. आनंद मोहन कहीं भी दो ढाई सौ गाड़ियों से कम के काफिले से निकलते नहीं थे. उनकी सभाओं में पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी. लोग आनंद मोहन को देखने सुनने पहुंचते थे. आनंद मोहन अपने भाषणों से युवाओं को खासा प्रभावित करते थे. लेकिन जब रिजल्ट आया तो आनंद मोहन चुनाव हार गए वो भी तीनों सीटों से. पार्टी का खाता सिर्फ अररिया में खुला. ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. क्षेत्रीय क्षत्रपों के बावजूद, सवर्ण गोलबंदी हवा-हवाई साबित हुई.. जनता दल ने 167 सीटें झटक लीं, लालू सीएम, बने रहे..
कुछ ऐसा ही माहौल 2025 के विधानसभा चुनाव में भी होता दिख रहा है...बस अंतर इतना है कि अब डिजिटल युग है... जन सुराज के बैनर तले प्रशांत किशोर सवर्णों को फिर जगाने की कोशिश में लगे हैं. उसी समाज का एक हिस्सा, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण सोशल मीडिया पर मुखर है. बस मुद्दा 1995 में लालू को हटाना था, अब नीतीश कुमार को हटाना का है. पीके 2 अक्टूबर 2024 को पार्टी लॉन्च की.. 3,500 किमी की पादयात्रा की. 5,500 गांवों को छुआ... सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर रहे हैं. नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोल रहे हैं. कभी- कभी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ईमानदार हो सकते हैं, लेकिन उनके मंत्री और अधिकारी प्रदेश को लूट रहे हैं..
प्रशांत किशोर दावा कर रहे हैं, कि नीतीश कुमार के करीबी मंत्री अशोक चौधरी और उनके परिवार ने दो साल में करीब 200 करोड़ की जमीन खरीदी है. सम्राट चौधरी पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं. कुलमिलाकर पीके के पास सब कुछ है, स्ट्रैटेजी, फंडिंग, मीडिया बज. लेकिन 1995 जैसी कमियां भी हैं. कोई मजबूत कैडर नहीं, उम्मीदवारों की कमी, सामाजिक आधार सीमित है.. प्रशासनिक अनुभव शून्य है... पीके भ्रष्टाचार के मुद्दे को हवा देने की कोशिश में लगे हैं.. लेकिन इन मुद्दों को असर किताना होता है वो आप भी जनवे करते हैं? 2015 में मोदी, मांझी, पासवान, कुशवाहा, 2020 में चिराग पसवान सब असफल रहे नीतीश की छवि डेंट करने में... ऐसे में अभी तो जन सुराज मुख्य मुकाबले में उतनी प्रभावशाली नहीं लगती, खैर अभी एक महिने का समय है. NDA और महागठबंधन अगर अपनी गलतियों के चक्रव्यूह में फंसती है तो फिर पीके की बल्ले बल्ले भी हो सकती है.