संसद में SIR पर बवाल क्यों? बिहार चुनाव से पहले SIR क्यों जरुरी? वोटर लिस्ट सुधार या NRC की शुरुआत?
SIR क्या है? ये कैसे और क्यों करवाया जाता है? बिहार इलेक्शन से पहले SIR करवाना क्यों जरूरी है? साथ ही बिहार के बाद क्या पूरे देश में SIR करवाया जाएगा? क्या है पूरा मामला जानें आज के एक्सप्लेनेर में।

मानसून सत्र को शुरू हुए कुछ दिन बीत चुके हैं। रोज ही सत्र में हंगामे और सत्र के स्थगित की खबरें सुनने को मिल रही हैं। लेकिन इसी बीच बिहार में SIR एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। जब से चुनाव आयोग ने बिहार में नेपाल, बंगाल और म्यांमार के लोगों की बड़ी संख्या में होने की पुष्टि की है, तभी से ये मामला लाइमलाइट में आ गया है।
चुनाव आयोग ने 1 जुलाई से वोटर लिस्ट की विशेष गहन समीक्षा यानी कि SIR शुरू की। विपक्ष ने इसका विरोध किया और सरकार पर सवाल उठाए। इस पर चुनाव आयोग ने कहा बिहार में SIR आखिरी बार 2003 में हुई थी, इसलिए ये करवाना जरूरी है।
SIR क्या है?
SIR एक प्रक्रिया है जिसमें BLO यानी कि बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर वोटर लिस्ट की जांच करते हैं और उसमें सुधार करते हैं। ताकि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नाम लिस्ट में न आए, वो लोग जो निर्वाचन क्षेत्र के नहीं हैं उनके नाम लिस्ट से बाहर हों और निर्वाचन क्षेत्र के सभी ELIGIBLE CANDIDATES के नाम वोटर लिस्ट में शामिल हों। इसमें गैर नागरिकों को और वो लोग जो निर्वाचन क्षेत्र के नहीं होते हैं, उन्हें शामिल नहीं किया जाता। इस तरह चुनाव आयोग ने बिहार में SIR शुरू किया। चुनाव आयोग ने कहा कि जो लोग 1 जुलाई 1987 से लेकर 2 दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए हैं, उन्हें अपनी जन्मतिथि, जन्मस्थान और अपने माता-पिता में से किसी एक की जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा।
शुरुआती रिपोर्ट के आधार पर 13 जुलाई को चुनाव आयोग ने ये दावा किया कि बिहार में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक हैं। मुख्य रूप से ये नागरिक बंगाल, नेपाल और म्यांमार से निकले। इसके बाद चुनाव आयोग ने ये साफ कर दिया कि 30 जुलाई को जो वोटर लिस्ट जारी की जाएगी उनमें विदेशी लोगों के नाम को शामिल नहीं किया जाएगा।
साथ ही जिन वोटर्स का 2003 में SIR हो गया है, उन्हें इस बार के SIR में शामिल नहीं किया गया है। इस तरह बिहार के 60% यानी कि 4.96 करोड़ वोटर्स को कोई दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं है।
संसद में इतना विरोध क्यों हो रहा है?
दरअसल विपक्ष का ये कहना है कि ये सारा काम जल्दबाज़ी में हो रहा है, जिसकी वजह से लाखों सही मतदाता भी लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। 26 जुलाई तक अपने या अपने माता-पिता की जन्मतिथि या जन्मस्थान के सबूत जुटाना सभी लोगों के लिए संभव नहीं होगा। इसके साथ ही विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग SIR के बहाने National Register for Citizens (NRC) को लाने की कोशिश कर रहा है।
NRC क्या है?
NRC राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एक लिस्ट है जिसमें भारत के सभी नागरिकों की लिस्ट होती है। इस लिस्ट को 1951 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर बनाया गया था। विपक्ष का कहना है कि इसके जरिए भारत देश से सभी गैर नागरिकों को बाहर निकाल दिया जाएगा। इसलिए इसे लेकर विपक्ष संसद में विरोध कर रही है। वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि क्या हम मरे हुए वोटर्स के नाम पर, बिहार से बाहर चले गए लोगों के नाम पर वोट डालने दे सकते हैं?
24 जून को चुनाव आयोग ने आदेश देते हुए कहा था कि बिहार के तर्ज पर पूरे देश में भी SIR करवाया जाएगा। ताकि वोटर्स लिस्ट की विश्वसनीयता और सटीकता सुनिश्चित हो सके।