31 सप्ताह की गर्भवती दुष्कर्म पीड़िता को हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रीवा की 22 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 31 सप्ताह की गर्भावस्था के बावजूद चिकित्सकीय निगरानी में गर्भपात की अनुमति दी है। कोर्ट ने कहा कि यदि गर्भपात के दौरान शिशु जीवित जन्म लेता है, तो उसे गोद देने की प्रक्रिया बाल कल्याण समिति और राज्य प्राधिकरण के माध्यम से की जाएगी।

हाईकोर्ट ने एक 22 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को 31 सप्ताह की गर्भावस्था के बावजूद चिकित्सकीय निगरानी में गर्भपात की अनुमति प्रदान कर दी है।
जस्टिस विशाल मिश्रा की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि यदि गर्भपात के दौरान बच्चा जीवित पैदा होता है तो उसे गोद देने की प्रक्रिया राज्य प्राधिकरण एवं बाल कल्याण समिति के माध्यम से संपन्न की जाएगी। यह मामला रीवा जिले से संबंधित है, जहां जिला न्यायालय द्वारा हाईकोर्ट को पत्र लिखकर मामले की गंभीरता से अवगत कराया गया था।
पत्र में बताया गया कि पीड़िता 24 सप्ताह की गर्भवती होने के बाद सामने आई और उसने आरोपी के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया। मामले को संज्ञान में लेते हुए हाईकोर्ट ने इसे स्वप्रेरित याचिका में परिवर्तित कर दिया और पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट तलब की।
मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि गर्भावस्था 31 सप्ताह से अधिक की है और ऐसे में गर्भस्थ शिशु के जीवित पैदा होने की संभावना अत्यधिक है। इसके बावजूद पीड़िता और उसके माता-पिता ने सभी संभावित चिकित्सकीय जोखिमों को समझते हुए गर्भपात की अनुमति देने की प्रार्थना की थी।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पीड़िता और उसका परिवार बच्चे को अपने साथ नहीं रखना चाहता है, इसलिए यदि बच्चा जीवित जन्म लेता है तो वह अधिकतम 15 दिनों तक पीड़िता के पास रहेगा, ताकि स्तनपान कराया जा सके।
इसके बाद शिशु को राज्य प्राधिकरण के सुपुर्द कर दिया जाएगा, जो कानूनन किसी इच्छुक दंपती को गोद देने के लिए स्वतंत्र होंगे।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि पीड़िता की गोपनीयता पूर्ण रूप से सुरक्षित रखी जाए और उसकी पहचान उजागर करने वाला कोई भी विवरण किसी भी माध्यम से प्रकाशित न किया जाए। राज्य प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करने के आदेश दिए गए हैं कि पीड़िता और उसके परिवार की निजता का उल्लंघन न हो।