Shimla Agreement: समझौते को रद्द करने की धमकी, पाकिस्तान का बौखलाया फैसला और इसके गंभीर परिणाम

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए, जिनमें सिंधु जल संधि को स्थगित करना प्रमुख रहा। जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दी। यह समझौता द्विपक्षीय वार्ता और LoC की पवित्रता पर आधारित था। इसके निलंबन से दोनों देशों के बीच तनाव और सैन्य टकराव की आशंका बढ़ सकती है।

Shimla Agreement: समझौते को रद्द करने की धमकी, पाकिस्तान का बौखलाया फैसला और इसके गंभीर परिणाम

पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव की लकीरें खींच दी हैं। यह हमला भारत के लिए सहनशीलता की सीमा लांघने जैसा था। इसके बाद भारत सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कई कार्रवाई की, जिनमें सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय सबसे अहम रहा। भारत की सख्ती से बौखलाए पाकिस्तान ने गुरुवार को 1972 के शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दे डाली।यह निर्णय न सिर्फ जल्दबाजी में लिया गया प्रतीत होता है, बल्कि इससे दक्षिण एशिया में शांति और स्थायित्व के लिए बने ढांचे पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

क्या है शिमला समझौता?

शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 2 जुलाई 1972 को हुआ था। यह समझौता भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर में सम्पन्न हुआ।यह समझौता 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुआ, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र होकर बांग्लादेश बना था और पाकिस्तान को गंभीर सैन्य हार का सामना करना पड़ा था। भारत ने युद्ध के दौरान लगभग 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया था।

भारत और पाकिस्तान ने सहमति जताई कि वे अपने सभी विवाद आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाएंगे। किसी तीसरे पक्ष (जैसे संयुक्त राष्ट्र) की मध्यस्थता को अस्वीकार किया गया। दोनों देशों ने जम्मू-कश्मीर में युद्धविराम के बाद बनी नियंत्रण रेखा (LoC) को मानने और उसमें बलपूर्वक बदलाव न करने पर सहमति दी। दोनों पक्षों ने आपसी व्यापार, संचार और सांस्कृतिक संबंधों को पुनः स्थापित करने की बात कही। भारत ने पाकिस्तान के युद्धबंदियों को रिहा करने और कब्जे में लिए गए क्षेत्रों को लौटाने का निर्णय लिया।

शिमला समझौते का महत्व

शिमला समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों की नींव बन गया। इसने स्पष्ट किया कि सभी विवाद द्विपक्षीय स्तर पर, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के सुलझाए जाएंगे। विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं, बल्कि आपसी बातचीत से सुलझाने की बात की गई। इस समझौते का सबसे अहम पहलू LoC की पवित्रता को बनाए रखना है, जिससे सीमा पर शांति बनी रहे।

पाकिस्तान ने रद्द किया समझौता 

गुरुवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान में कहा गया कि पाकिस्तान भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने के अधिकार का प्रयोग करेगा। इसमें शिमला समझौता भी शामिल है। यह केवल चेतावनी नहीं थी, बल्कि यह संकेत था कि पाकिस्तान भविष्य में इन समझौतों को निलंबित करने के लिए तैयार है। विशेष बात यह है कि पाकिस्तान ने यह नहीं कहा कि वह केवल अधिकार "सुरक्षित रखता है", बल्कि उसने स्पष्ट रूप से कहा कि वह इसका प्रयोग करेगा। इसका मतलब यह है कि द्विपक्षीय समझौतों का अंत लगभग तय है।

हालांकि पाकिस्तान ने हमेशा से ही इस समझौते का मज़ाक बनाया है. शुरू से ही देखा जाये तो पाकिसतन ने कई बार loc पर फायरिंग और सैन्य कार्यवाही की है. इतना ही नहीं पाकिस्तान ने कई बार इस मुद्दे को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया है. 

शिमला समझौते को स्थगित करने से दोनों देशो पर क्या असर होगा?

  1. समझौते का निलंबन एलओसी की पवित्रता को समाप्त कर सकता है। कोई भी पक्ष अब इसे मानने के लिए बाध्य नहीं रहेगा।

  2. एलओसी पर गोलीबारी, घुसपैठ और सैन्य टकराव की घटनाएं तेजी से बढ़ सकती हैं।

  3.  यदि पाकिस्तान समझौता तोड़ता है, तो भारत को भी सीमा पार कार्रवाई करने का वैध आधार प्राप्त हो सकता है।

  4.  बातचीत और संवाद के सारे रास्ते बंद हो सकते हैं, जिससे शांति प्रक्रिया पूरी तरह ठप पड़ सकती है।

  5.  पाकिस्तान की ओर से समझौता तोड़ने की घोषणा उसे वैश्विक स्तर पर अलग-थलग कर सकती है, वहीं भारत को कूटनीतिक लाभ मिल सकता है।

  6. दोनों देशों के सीमावर्ती नागरिक क्षेत्रों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर भी रोक लग सकती है।

इस तरह शिमला समझौते को स्थगित करने की पाकिस्तान की धमकी न केवल अस्थिरता पैदा करने वाली है, बल्कि यह उसके अपने हितों के भी खिलाफ साबित हो सकती है। भारत ने जहां आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है, वहीं पाकिस्तान की जल्दबाज़ी उसे राजनयिक और रणनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसे में दोनों देशों को चाहिए कि वे एक बार फिर शांति और वार्ता के मार्ग को प्राथमिकता दें, न कि टकराव के रास्ते को।