जापानी डॉल की भारतीय कहानी, मोदी को मिला खास तोहफा
प्रधानमंत्री मोदी को जापान दौरे के दौरान दारुमा डॉल भेंट की गई। इस डॉल की जड़ें भारत के बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म से जुड़ी हैं, जिन्होंने जापान में बौद्ध परंपरा की शुरुआत की थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों के जापान दौरे पर हैं। 29 अगस्त से 30 अगस्त के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान में रहेंगे इसके बाद वो चीन के लिए रवाना होंगे। जापान के इस दौरान उन्हें जापान की पारंपरिक 'दारुमा डॉल' भेंट की गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह डॉल इतनी खास क्यों मानी जाती है? और इसका भारत से क्या संबंध है?
क्या है दारुमा डॉल?
दारुमा डॉल जापान की परंपरा का प्रतीक है और इसे शुभ संकेत (Good Luck Symbol) माना जाता है। इसकी बनावट इस तरह की होती है कि अगर आप इसे गिरा दें, तो यह अपने आप फिर से खड़ी हो जाती है। यह आत्मबल और फिर से उठ खड़े होने की भावना का प्रतीक है।
जापान में इस डॉल से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहावत है: "नानाकोरोबी याओकी", जिसका अर्थ होता है – "सात बार गिरो, आठवीं बार उठो"। यह जीवन में कभी हार न मानने और बार-बार प्रयास करने की सीख देती है।
इस डॉल की एक और खास बात यह है कि इसकी आंखें नहीं बनी होतीं। परंपरा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति कोई इच्छा (wish) या लक्ष्य (goal) निर्धारित करता है, तो वह डॉल की एक आंख में रंग भरता है। जब वह लक्ष्य पूरा हो जाता है, तब दूसरी आंख भी रंग दी जाती है। यह पूरी प्रक्रिया संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा का प्रतीक मानी जाती है।
भारत से कनेक्शन
दरअसल, दारुमा डॉल का संबंध भारत के बौद्ध भिक्षु 'बोधिधर्म' से जुड़ा है। बोधिधर्म तमिलनाडु के कांचीपुरम से थे और उन्होंने जापान में बौद्ध धर्म की नींव रखी थी।
It was an honour to meet Rev. Seishi Hirose, Chief Priest of Shorinzan Daruma-Ji Temple in Takasaki-Gunma. My gratitude to him for presenting a Daruma Doll. Daruma is considered to be an important cultural symbol in Japan and also has a connect with India. It is influenced by… pic.twitter.com/HjSWVx78sp
— Narendra Modi (@narendramodi) August 29, 2025
कहा जाता है कि बोधिधर्म ने लगातार नौ वर्षों तक ध्यान (meditation) किया, इस दौरान वे इतने स्थिर रहे कि उन्होंने अपने शरीर के अंगों का भी उपयोग नहीं किया। जापानी लोककथाओं के अनुसार, अंततः उनका शरीर नष्ट हो गया और केवल उनका सिर ही बचा – इसी आधार पर जापान में दारुमा डॉल, जो बिना हाथ-पैर की होती है, अस्तित्व में आई।
इस प्रकार, दारुमा डॉल न सिर्फ जापान की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि इसका गहरा संबंध भारत और बोधिधर्म से भी जुड़ा है।