गड़रा गांव में 238 दिन बाद भी जख्म हरे, मार्च महीने में हुई हिंसा, गांव की रफ्तार थाम कर रख दी
मऊगंज जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत गड़रा गांव में 15 मार्च 2025 को हुई हिंसक घटना और उपनिरीक्षक रामचरण गौतम की शहादत के बाद गांव आज भी भय और पीड़ा के साये से उबर नहीं पाया है। चार महीने बाद भी कई घरों पर ताले लटके हैं, कई परिवार विस्थापित हैं और गांव में पुलिस का पहरा कायम है।

राजेंद्र पयासी-मऊगंज
मऊगंज जिले में आज से ठीक 238 दिन पहले 15 मार्च 2025 को दिल को दहला देने वाली घटी घटना का वेदना भरा दिन शाहपुर थाना क्षेत्र के गड़रा गांव को आज भी तथाकथित डर और दुख के अंधकार में ढकेले हुए है। घटना के ठीक 4 महीने बाद भी गांव के हालात उस तरह से सामान्य नहीं हो पाए जैसा होना चाहिए।
हालांकि जिला प्रशासन द्वारा गांव की स्थिति को सामान्य दौर में लाने के लिए अथक प्रयास किए गए हैं और किया जा रहे हैं प्रशासन की ओर से गांव में भरोसे और सहयोग के पुनर्स्थापना की पहल भरे प्रयास किए जा रहे हैं।
बता दें की गत 15 मार्च को शनि द्विवेदी की निर्मम हत्या और बचाव में पहुंची पुलिस टीम पर हुए हमले में उपनिरीक्षक रामचरण गौतम की शहादत ने न केवल जिले को झकझोर कर रख दिया बल्कि हिंसा में दर्जन भर अधिकारी कर्मचारी घायल हुए थे उसके बाद गांव में धारा 144 लागू हुई। घरों पर ताले लटकने लगे, खेत बंजर हो गए और कई परिवार छिन्न-भिन्न हो गए, इस छोटे से गांव के विकास एवं दिनचर्या की रफ्तार भी थाम कर रख दी।
थमी सी है जिंदगी, गांव में सन्नाटे जैसे हालात-
मऊगंज जिले के शाहपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाले गड़रा गांव की गलियों में आज 4 महीने बाद भी पुलिस का पहरा है, लोग डरे-सहमे अपने घरों तक सिमटे हैं। कई मकानों पर या तो ताले लटके हैं, या फिर परिवार जेल में हैं, या हिंसा के बाद से गांव छोड़ चुके हैं और आज तक उनकी घर वापसी नहीं हुई। गड़रा कांड में अब तक 39 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, अभी 10 फरार बताए जा रहे हैं। हालांकि प्रशासन का दावा है कि स्थिति सामान्य हो रही है लेकिन जमीनी सच्चाई इससे अलग है।
ग्रामीणों की परेशानी उन्हीं को जुबानी-
गड़रा गांव निवासी निर्मला साकेत उन महिलाओं में हैं जिसे बिना किसी दोष के बर्बरता का सामना करना पड़ा । पीड़ित का आरोप है कि 17 मार्च को पुलिस ने उसके घर में घुसकर पति और बेटे को उठाया और मारपीट में उसका हाथ भी तोड़ दिया। केवाईसी अधूरी होने के कारण राशन मिलना बंद हो गया। खेत उजड़ गया, मवेशी भूखे मरने लगे, और जिन घरों में वह मजदूरी करती थीं, वहां से भी काम छिन गया।
पवन का दर्द, एक साथ तीन अर्थियां-
मार्च महीने की 15 तारीख को गड़रा गांव में हुई हिंसा के बाद 4 अप्रैल को गांव में एक और हृदय विदारक दृश्य सामने आया, जब पवन साकेत के पिता औशेरी 55 वर्ष, बहन मीनाक्षी 11 वर्ष और भाई अमन 8 वर्ष के शव घर में फांसी के फंदे पर झूलते पाए गए। पवन ने बताया कि प्रशासन ने मुआवजे का वायदा किया था, पर अब तक एक रुपया नहीं मिला। हम बांस काटकर, लकड़ी बेचकर जीवन निर्वाह रहे हैं।
दिव्यांग बेटे को भी नहीं बख्शा-
गड़रा गांव में घटित घटना की लपेट में आए स्थानीय निवासी शिवरतन ने बताया कि उसके दिव्यांग बेटे बृजभान, जो चलने-फिरने में असमर्थ है, को भी पुलिस ने आरोपी मानकर जेल भेज दिया। पीड़ित शिवरतन ने आरोप लगाते हुए कहा कि पेट के ऑपरेशन से उबर रहे बृजभान को जबरन उठा लिया गया। अब वह रीवा के अस्पताल में जीवन और न्याय दोनों के लिए संघर्ष कर रहा है।
बच्चों की पढ़ाई ठप्प, पुलिस चौकी बना स्कूल-
मऊगंज जिला अंतर्गत गड़रा गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय में जब पब्लिक वाणी की टीम पहुंची, तो विद्यालय में विद्यार्थियों की उपस्थिति और पढ़ाई के बजाय पुलिस की तैनाती मिली। हालांकि उपस्थित पुलिसकर्मियों ने कहा कुछ बच्चे स्कूल आते हैं।
इधर आंगनबाड़ी में भी सन्नाटा पसरा रहा। शिक्षा और बचपन पर इस त्रासदी का गहरा असर पड़ा है। जिसके चलते आज घटना के 4 महीने बाद भी गांव में ना तो पुरानी रौनक लौटी है और ना ही लोगों के चेहरे पर खुशी। हालात कुछ इस कदर जैसे गांव की खुशी एवं चैन पर काली छाया पड़ गई हो।
शासन की योजनाएं जहां प्रभावित हैं वहीं देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चों की पढ़ाई, माता-पिता के भविष्य की सारी लालसाएं जैसे खत्म हो गई हो। चिंतन है तो सिर्फ दर्द भरे उस दिन का जिसके कारण आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं
लोगों ने कहा पता नहीं वह दिन कब आएगा जब ग्रहण की छाया से हम सब उभर पाएंगे, कब लौटेगी गांव में खुशियां, कब बच्चों की चहल-पहल भरी वह रौनक आएगी ? कब लौटेगा वह गांव का भाई चारा ? गांव के लोगों ने दर्द भरे लहजे में कहा जाति वर्ग विभेद को दरकिनार कर काकू कक्का काकी जैसी आवाजें सुनने के लिए जहां कान तरस गए, वहीं आंखें धोमिल हो गई।
गांव के वर्तमान जो हालात हैं उससे जाहिर होता है गड़रा गांव की कहानी सिर्फ एक हिंसा की नहीं, बल्कि उसके बाद की चुप्पियों, कराहों और अन्याय की भी है। हर घर से एक स्वर उठ रहा है दोषियों को सजा जरूर मिले, लेकिन निर्दोषों को न्याय मिलना चाहिए।
स्थिति अब सामान्य, सामाजिक समरसता की ओर अग्रसर-
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विक्रम सिंह परिहार ने कहा कि गडरा गांव में एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई।पुलिस ने गहन जांच के लिए विशेष टीमें गठित की थीं। अब तक 39 आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया जा चुका है, जबकि 10 अन्य अभी भी फरार हैं, जिनकी तलाश जारी है।
घटना के बाद गांव में तनावपूर्ण माहौल था, जो सामाजिक स्तर पर भी व्याप्त था। ऐसे में पुलिस और प्रशासन ने ग्रामीणों के सहयोग से स्थिति को संभालने का सतत प्रयास किया। आज जनजीवन काफी हद तक सामान्य हो चुका है। अधिकांश प्रवासी मजदूर भी गांव लौट आए हैं और पुनः खेती-किसानी तथा अन्य कार्यों में जुट गए हैं।
सामाजिक वैमनस्य को दूर करने हेतु प्रशासन ने विभिन्न समुदायों के साथ संवाद की प्रक्रिया अपनाई है। सामूहिक बैठकों के माध्यम से सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है ताकि गांव की साझा संस्कृति और सह-अस्तित्व बना रहे,उन्होंने मऊगंज और अन्य गांवों के निवासियों से अपील करते हुए कहा हम सभी को मिलकर शांति, कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखना है।
यदि किसी के मन में कोई शंका या पीड़ा है, तो वह बेहिचक प्रशासन से संवाद करे। हम सबके लिए सदैव उपलब्ध हैं। मुझे विश्वास है कि गांव अब स्थिरता की ओर बढ़ रहा है और भविष्य में यह सामूहिक प्रगति का प्रतीक बनेगा।