वट वृक्ष से घिरा है लोढ़ बाबा का ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर, चमत्कारी शिवलिंग को जलाभिषेक करने बड़ी संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु
रीवा से लगभग 32 किमी दूर देवतालाब विधानसभा क्षेत्र के नवागांव में स्थित लोढ़ बाबा शिव मंदिर आस्था और चमत्कार का प्रतीक बन गया है। माना जाता है कि यह प्राचीन शिवलिंग लगभग 500 साल पूर्व एक आदिवासी महिला के चूल्हे से प्रकट हुआ था। हर साल इसका आकार बढ़ता जा रहा है, और अब यह जमीन से 3 फीट ऊपर तक उभर चुका है।
दिलीप कुमार गुप्ता-मनगवां
संभागीय मुख्यालय रीवा से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर देवतालाब विधानसभा क्षेत्र में मनगवां से गुढ़ पहुंच मार्ग पर नवागांव में प्राचीन शिव मंदिर है। राजस्व रिकॉर्ड की बात करें तो आराजी नंबर 32, 33 पटवारी हल्का डेल्ही तहसील मनगवां में यह शिव मंदिर स्थापित है।
शिवलिंग चमत्कारी शिवलिंग के रूप में भी लोग इसे मानते हैं। शिवलिंग में अनेक अनेक मान्यताएं हैं। जिले की मनगवां तहसील अंतर्गत नवागांव में लोढ़ बाबा के नाम से स्थापित शिवलिंग के प्रति भक्तों में अपार आस्था है। ऐसा बताते हैं कि यह शिवलिंग चूल्हे से प्रकट हुआ है।

लगभग पांच सौ साल प्राचीन इस शिवलिंग का आकार भी हर साल बढ़ रहा है। आदिवासी परिवार के घर में स्थित चूल्हे में रोटी बनाने के दौरान ये शिवलिंग निकल आए। रोटी बना रही महिला ने लोढिया से इन्हें ठोक कर दबा दिया। लेकिन फिर ऊपर आ गए। कई बार ऐसी प्रक्रिया चलती रही।
महिला ने गांव के लोगों को बताया। गांव में धीरे-धीरे आस्था का समागम बढ़ता गया, और लोग इस स्थान पर घर की जगह अब मंदिर के निर्माण की बात करने लगे । यहां मंदिर के निर्माण की बात शुरू हुई तो उस पत्थर का आकार धीरे-धीरे इतना बढ़ता गया और पूरी तरह से शिवलिंग का रूप ले लिया।
शिवलिंग जमीन से 3 फीट से भी ज्यादा बड़े आकार में है। नीचे जमीन में शिवलिंग की गहराई कितनी है, यह लोगों को अभी तक मालूम नहीं चला है।

चूल्हे पर लोढ़िया से ठोक-ठोक कर प्रतिदिन अंदर दबाने की कोशिश कर रही महिला की आस्था पर लोगों ने भोलेनाथ का नाम लोढ़ बाबा रख दिया।और यहां मंदिर बन गया। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।
सावन मास में लगती है भक्तों की भारी भीड़-
सनातन धर्म के अनुसार सावन का पवित्र माह भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय माना जाता है। इसलिए सावन के महीने में भक्त जन भोलेनाथ को मनाने, प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से उनकी पूजा अर्चना करते हैं ।एक तरफ जहां सावन महीने में धरती माता का हरा भरा श्रृंगार देखकर मन प्रसन्न होता है , वहीं दूसरी तरफ भगवान भोलेनाथ को जल चढ़कर आम इंसान को सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
वटवृक्ष से घिरा है पूरा प्राचीन शिव मंदिर-
मंदिर प्रांगण में ही विशालकाय वट वृक्ष है। यह वटवृक्ष मंदिर को पूरी तरह से छाया प्रदान करते हैं। इस वट वृक्ष की टहनियां इतनी ज्यादा फैल गई है, कि मंदिर के चारों तरफ वटवृक्ष भभ्य बड़े आकार में नजर आता है।

शिवलिंग पर राम शब्द की उभरी आकृति-
शिवलिंग के ऊपरी सतह में राम शब्द की आकृति उभर आई है। शिवलिंग का बड़ा आकार होने के कारण भक्तों द्वारा प्रतिदिन सामान्य जल, गंगाजल, पंचामृत समेत सभी तरह से शिवलिंग को आस्था पूर्वक स्नान कराया जाता है।
स्नान कराते समय अचानक नजर पड़ी की शिवलिंग में सबसे ऊपर जहां पुष्प एवं अन्य सामग्रियां चढ़ाई जाती हैं, वहां राम शब्द उभर आया है।
लोगों में ऐसी मान्यता है कि नवागांव के शिवलिंग पर पूजन अर्चन करने से भोलेनाथ के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की भी पूजा एक साथ हो जाती है। जो लोगों में आस्था का केंद्र बना हुआ है।

नवागांव शिव मंदिर लोड बाबा में गोलाकार शिवलिंग होने के कारण मंदिर के मुख्य द्वार के सामने से शिवलिंग का पूरा श्रृंगार किया जाता है । शिवलिंग का श्रृंगार उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर की तर्ज पर किया जाता है।
शिवलिंग का श्रृंगार महाकालेश्वर की तर्ज पर करने पर अब शिवलिंग में ठीक पीछे तरफ एक सीधी लकीर शिवलिंग में ही उभर आई है। जिससे लोगों में चर्चा है कि भगवान भोलेनाथ वृद्ध हो चुके हैं। जिससे उनके कमर की रीड की हड्डी उभर आई है।
सामान्य रूप से ही देखने पर वृद्ध भोलेनाथ के रीड की हड्डी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

दो लाख पच्चीस हजार रुद्राक्ष से होना है लोढ़ बाबा का श्रृंगार -
बोल बम कांवरिया संघ मनगवां द्वारा सवा दो लाख रुद्राक्ष से प्राचीन शिव मंदिर का श्रृंगार होना है। यह श्रृंगार कार्य लगातार जारी है। अब तक में संघ द्वारा 190000 रुद्राक्ष भोलेनाथ को समर्पित किया जा चुका है। कार्य अभी अनवरत चल रहा है। शीघ्र ही यह कार्य भी बोल बम कांवरिया संघ द्वारा पूरा कराया जाएगा।
मंदिर के पुजारी बाल्मीक गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर परिसर में ही विशाल वट वृक्ष है। ऐसी मान्यता है कि इस वट वृक्ष पर मान्यताओं के नारियल बाधने पर श्रद्धापूर्वक विश्वास रखने पर भक्तों की सभी मान्यताएं पूर्ण होती हैं। जो लोगों में आस्था का केंद्र बना रहता है।

साल में तीन दिन विशाल मेला लगता है-
वैसे तो यहां 12 महीने भक्तों का आना-जाना बना रहता है लेकिन साल में तीन दिन विशाल मेला लगता है। बसंत पंचमी, शिवरात्रि और हरतालिका तीज के मौके पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
जहां अपार भीड़ होती है। यहां तड़के चार बजे से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो जाता है। अब यहां भव्य मंदिर बन गया है। इस मंदिर में पूजा करने दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं।

सुगम मार्ग की दरकार
रीवा संसदीय क्षेत्र के देवतालाब विधानसभा अंतर्गत इस मंदिर को जाने वाला रास्ता ठीक नहीं है। बरसात के दिनों में यहां पहुंचना कठिन हो जाता है। वाहन फंस जाते हैं। सावन के माह में यहां जाने वाले भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। लेकिन रास्ता खराब होने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
आज भी इस प्रसिद्ध देवालय तक आने-जाने के लिए सुगम मार्ग नहीं बन पाया है। स्थानीय जनों ने जिला प्रशासन से कीचड़ युक्त रास्ते का अति शीघ्र निर्माण करवाने की मांग की है। ताकि आवागमन सुगम हो सके।
Saba Rasool 
