Madhya Pradesh: जाति आधारित उत्पीड़न मामले में NSA लागू, हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान
मध्यप्रदेश के दमोह जिले के सतरिया में जाति आधारित हिंसा का एक गंभीर मामला सामने आया, जिसमें एक OBC समुदाय के युवक के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया

मध्यप्रदेश के दमोह जिले के सतरिया में जाति आधारित हिंसा का एक गंभीर मामला सामने आया, जिसमें एक OBC समुदाय के युवक के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने पांच आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लागू कर दिया है. यह जानकारी सरकार ने उच्च न्यायालय को हलफनामे के माध्यम से दी.
क्या है मामला?
11 अक्टूबर को सतरिया गांव के पुरुषोत्तम कुशवाहा, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय से हैं, ने इंस्टाग्राम पर एक एआई जनरेटेड तस्वीर पोस्ट की थी. इस तस्वीर में गांव के अन्नू पांडे को जूतों की माला पहने दिखाया गया था. पोस्ट के वायरल होते ही गांव में तनाव फैल गया.
हालांकि कुशवाहा ने तुरंत पोस्ट हटा दी और माफी भी मांगी, लेकिन इसके बावजूद गांव में एक कथित पंचायत बुलाई गई. पंचायत में उसे अन्नू पांडे के पैर धोने और वही गंदा पानी पीने के लिए मजबूर किया गया. साथ ही उस पर ₹5,100 का जुर्माना भी लगाया गया. यह शर्मनाक घटना कैमरे में रिकॉर्ड हुई और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया.
सरकार की सख्त कार्रवाई
घटना के सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए अन्नू पांडे समेत पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया। दमोह के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में बताया कि सामाजिक सौहार्द्र और शांति बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई की गई है।
उच्च न्यायालय ने जताई चिंता
मामले में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 15 अक्टूबर को स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की.न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति ए.के. सिंह की पीठ ने कहा कि राज्य में जाति आधारित हिंसा और सामाजिक भेदभाव की घटनाएं अत्यंत चिंताजनक हैं. अदालत ने मीडिया संस्थानों को भी नोटिस जारी किया, जिन्होंने पीड़ित की गरिमा से जुड़ा वीडियो प्रसारित किया.पीठ ने टिप्पणी की कि सामान्य रूप से रासुका लागू करना कार्यपालिका का अधिकार है, लेकिन इस मामले में यदि तुरंत कार्रवाई नहीं की जाती, तो स्थिति और अधिक गंभीर हो सकती थी.
समाज में संदेश देने की जरूरत
अदालत ने इस घटना को केवल एक कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र और मानवीय गरिमा के हनन से जुड़ा मुद्दा बताया. न्यायालय ने प्रशासन की त्वरित कार्रवाई की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में कठोर कदम जरूरी हैं ताकि समाज में स्पष्ट संदेश जाए कि जातिगत भेदभाव और अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.