MP में RTE के 20% मामले अटके, सबसे ज्यादा भोपाल के हालात खराब
गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों की आरटीई की फीस के 20% मामले अभी भी अटके हुए हैं. नाराज स्कूल संचालक कल यानि 4 सितंबर को राज्य शिक्षा केंद्र का घेराव करेंगे.

गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों की आरटीई की फीस के 20% मामले अभी भी अटके हुए हैं. नाराज स्कूल संचालक कल यानि 4 सितंबर को राज्य शिक्षा केंद्र का घेराव करेंगे. प्रदेश के सभी स्कूलों में भोपाल एकमात्र ऐसा जिला है, जिसमें आरटीई की फीस के मामले सबसे ज्यादा पेंडिंग हैं. नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत प्रायवेट स्कूलों की पहली कक्षा की 25% सीटों पर गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है. और उनकी फीस राज्य सरकार द्वारा राज्य शिक्षा केंद्र के माध्यम से स्कूलों को दी जाती है.
साल 2023-24 की आरटीई फीस अटकी
राज्य शिक्षक केंद्र है अभी तक साल 2023-24 की आरटीई फीस स्कूल संचालकों को नहीं दी है. राज्य शिक्षा केंद्र ने 2 सितंबर 2025 को जारी आंकड़े बताते हैं कि भोपाल में 258 स्कूलों के मामले अभी हटे हुए हैं. जबकि मंदसौर, शिवपुरी और छिंदवाड़ा के स्कूलों में प्रकरण मुख्य कार्यपालन अधिकारी या कलेक्टर के पास अटके हैं. इनके अलावा प्रदेश के लगभग सभी जिलों के आरटीई फीस प्रतिपूर्ति के प्रकरणों का निराकरण कर दिया गया है.
प्रायवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह ने कहा कि राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा नि:शुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम का पालन ही नहीं किया जा रहा है. राज्य शिक्षा केंद्र अपने बनाए हुए नियम से ही मुकर रहा है. नि:शुल्क शिक्षा अधिकार अधिनियम में नियम है कि शिक्षा सत्र के अंत में मार्च माह तक सत्र का भुगतान हो जाना चाहिए, लेकिन साल 2023-24 के शैक्षणिक सत्र का भुगतान अभी तक नहीं हुआ है.
बार-बार पत्र लिखने के बाद भी रुचि नहीं दिख रहे अफसर
संगठन द्वारा बार-बार पत्र देने के बाद भी अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. मुख्यालय के ठीक नीचे भोपाल जिले के हालात सबसे खराब हैं. प्रायवेट स्कूलों की पूरी व्यवस्था फीस पर ही निर्भर रहती है. बिना फीस के दो-दो साल तक स्कूल कैसे चलेंगे. अधिकारियों ने लाखों बच्चों की फीस प्रतिपूर्ति को रोक कर रखा है. अधिकारी तर्क देते हैं कि ये बच्चा दूसरे स्कूल यानि सरकारी स्कूल में मैप्ड है, तो यदि वो बच्चा किसी दूसरे स्कूल में मैप है तो शिक्षा विभाग के कर्मचारियों ने प्रायवेट स्कूलों में किस आधार पर प्रवेश दिया है. जबकि वास्तविकता ये है कि वो बच्चा प्रायवेट स्कूल में ही पढ़ रहा है. इसकी पुष्टि इन्हीं के बने हुए नोडल करते हैं. इस पूरे मामले में संगठन ने डीपीसी पर करोड़ों की राशि हेरफेर करने के आरोप भी लगाए हैं.
इसलिए अटका दिए जाते हैं मामले
प्रायवेट स्कूल संचालक पिछले साल से आरटीई की फीस मांग रहे हैं. प्रायवेट स्कूल एसोसिएशन का कहना है की आरटीई के तहत प्रायवेट स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की पिछले दो सालों से फीस नहीं भरी गई.