इज़रायल ने गाजा छोड़ा क्यों? और अब दोबारा क्यों लड़ रहा है?

इजरायल और हमास के बीच पिछले दो साल से जारी जंग का मकसद इजरायल के लिए साफ रहा है,  हमास का खात्मा. क्योंकि इजरायल इस जंग को अपने ऊपर हुए हमले का बदला मानता है

इज़रायल ने गाजा छोड़ा क्यों? और अब दोबारा क्यों लड़ रहा है?
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Israel Palestine War: इजरायल और हमास के बीच पिछले दो साल से जारी जंग का मकसद इजरायल के लिए साफ रहा है,  हमास का खात्मा. क्योंकि इजरायल इस जंग को अपने ऊपर हुए हमले का बदला मानता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या हमास का खात्मा इतना आसान है? जब तक गाजा पट्टी पर इजरायल का पूरा नियंत्रण नहीं होता, तब तक इजरायल की नज़र में यह जंग पूरी नहीं मानी जाएगी. अब इजरायल उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. हमास का खतमा तब होगा जब हमास के कब्जे वाले गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा होगा. अब इजरायल उसी दिशा में आगे भी बढ़ रहा है. गाजा पर कब्जे को लेकर इजरायली सेना के मुखिया आयल जमीर और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच भी तू-तू-मैं-मैं हो चुकी है.

शांति चहती है इजरायली जनता 

जंग की मार झेल रही इजरायली जनता शांति चाहती है. उनकी नज़र में इस जंग का मकसद सिर्फ एक है. गाजा पर इजरायल का दोबारा नियंत्रण. लेकिन, गाजा पर तो इजरायल पहले भी कब्जा कर चुका है. बस्तियां बसाई थीं, तकरीबन 11 साल तक शासन भी किया था. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इजरायल ने गाजा पट्टी छोड़ दी? और अब वही इजरायल, एक बार फिर उसी जमीन पर खून बहा रहा है? दरअसल, इजरायल के गठन के बाद से ही उसे लगातार अरब देशों के हमलों का सामना करना पड़ा. 1967 में एक निर्णायक जंग हुई. सिक्स डे वॉर या जून वॉर, जिसने पूरे इलाके का नक्शा ही बदल दिया. इस जंग में इजरायल ने इजिप्ट से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और यरुशलम, और सीरिया से गोलान हाइट्स जीत लिए.

गाजा पर कब्जा तो हो गया, लेकिन वहां के निवासी फिलिस्तीनी थे, जिन पर पहले मिस्र (इजिप्ट) का शासन था.  ऐसे में इजरायल के लिए गाजा पट्टी पर शासन करना आसान नहीं रहा.. 1973 में अरब लीग ने एक और युद्ध की कोशिश की, लेकिन इस बार भी उन्हें सफलता नहीं मिली. इजिप्ट को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और उसे समझ में आ गया कि बार-बार जंग करना नुकसानदेह है.  इसी तरह इजरायल को भी एहसास हुआ कि जमीन जीतना आसान है, वहां शासन करना उतना ही मुश्किल..

अमेरिका के हस्ताक्षेप से हुआ समझौता

इसके बाद दोनों देश अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की पहल पर कैंप डेविड समझौते के लिए तैयार हुए. इजिप्ट के राष्ट्रपति अनवर सादात और इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाखेम बेगिन के बीच यह समझौता हुआ.  1978 में दोनों नेताओं को नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला.. समझौते के तहत तय हुआ कि गाजा पट्टी को स्वतंत्र शासन दिया जाएगा न इजरायल का दखल, न इजिप्ट का. लेकिन इस पर पूरी तरह अमल नहीं हो पाया. शेख अहमद यासीन के संगठन मुजम्मा अल-इस्लामिया और बाद में हमास ने वहां प्रभाव जमा लिया.  जब हमास ने खुद इजरायल के खिलाफ विद्रोह किया, तो इजरायल ने पीएलओ यानी फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन से समझौता किया. 1993 में पीएलओ और इजरायल दोनों ने एक-दूसरे को मान्यता दी। ये समझौता अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मौजूदगी में हुआ. 

धीरे-धीरे इजरायल को ये समझ में आने लगा कि गाजा पट्टी में रहना उसके लिए घाटे का सौदा है.  बढ़ती आबादी, संसाधनों का खर्च और लगातार हमास की चुनौतियां.  आखिरकार 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने गाजा छोड़ने का फैसला किया. उन्होंने कहा,  यह फैसला इजरायल की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय स्थिति, अर्थव्यवस्था और यहूदी समुदाय के हित में है. उस समय गाजा में करीब 13 लाख लोग रहते थे, जिनमें 99.06% फिलिस्तीनी थे और यहूदी सिर्फ 0.04%. 
इसलिए इजरायल के लिए गाजा खाली करना कोई बड़ा संकट नहीं बना.  15 सितंबर 2005 को इजरायल ने गाजा को पूरी तरह खाली कर दिया. वहां एक भी इजरायली सैनिक नहीं बचा.  लेकिन इसके सिर्फ दो साल बाद, 2007 में हमास ने गाजा पट्टी पर पूरी तरह कब्जा कर लिया. और अब 18 साल से वह गाजा पर शासन कर रहा है.

हमास ने किया इजरायल पर हमला 

इस दौरान हमास ने अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली कि उसने इजरायल पर हमला बोल दिया. जिसके बाद ये जंग शुरू हुई, जो अब तक जारी है. इस जंग को दो साल हो चुके हैं.  हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों घायल हुए हैं, और कई लाख लोग गाजा से पलायन कर चुके हैं.  बच्चे भूख और प्यास से दम तोड़ रहे हैं. इजरायली सेना अब गाजा में अंदर तक दाखिल हो चुकी है.  जैसे-जैसे गाजा पर इजरायली कब्जा बढ़ रहा है, तबाही भी बढ़ती जा रही है.  और हम-आप बस इस भीषण युद्ध के गवाह बनते जा रहे हैं. बेबसी के साथ