रीवा का पानी बना जहर! नाइट्रेट और हार्डनेस से बढ़ा डायरिया-पथरी का खतरा
रीवा जिले के कई इलाकों में पीने का पानी अब लोगों की सेहत के लिए खतरा बनता जा रहा है। रीवा, गंगेव और सिरमौर ब्लॉक के हैंडपंप और अन्य जलस्रोतों के पानी में नाइट्रेट, हार्डनेस और कैल्सियम की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। इससे डायरिया, उल्टी, पथरी और अन्य जलजनित बीमारियां तेजी से फैल रही हैं।

रीवा जिले के अधिकांश क्षेत्रों में पीने का पानी अब जीवनदायिनी नहीं, बल्कि जानलेवा बनता जा रहा है। जिले के विभिन्न हिस्सों से प्राप्त जानकारी और विशेषज्ञों की राय से खुलासा हुआ है कि यहां के भूमिगत जल में नाइट्रेट और हार्डनेस (कठोरता) की मात्रा खतरे के निशान से ऊपर है।
खासतौर पर रीवा, गंगेव और सिरमौर ब्लॉक के पानी में कैल्सियम, हार्डनेस और नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा पाई गई है, जिससे लोगों को डायरिया, पथरी और अन्य जलजनित बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है।विशेषज्ञों के अनुसार, गर्मी बढ़ने से जब भूजल स्तर नीचे चला जाता है, तो पानी में हानिकारक तत्वों की सांद्रता बढ़ जाती है।
यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब बरसात से पहले के महीनों में लोग जलस्रोतों पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं। वही बरसात में हैंडपंपो के बगल में जमी गंदगी बरसात के दिनों में जलस्रोत के माध्यम से जमीन की गहराइयों में समा जाते हैं और स्थिति और भी भयावक हो जाती है।
यह भी पढ़ें- नवंबर में नईगढ़ी माइक्रो एक के इंटेक में पानी पहुंचने पर होगी सोन आरती
रिपोर्ट के मुताबिक, नाइट्रेट की मात्रा जैसे ही 40 एमजी प्रति लीटर से ऊपर जाती है, लोगों में उल्टी, दस्त और डायरिया के मामले बढ़ जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग को इस संकट की जानकारी होते हुए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
जिले की जल परीक्षण प्रयोगशाला में न तो नियमित सैंपलिंग की जा रही है और न ही कोई ताजा रिपोर्ट मौजूद है। जब प्रयोगशाला के केमिस्टों से जानकारी मांगी गई, तो उनके पास पानी की गुणवत्ता को लेकर कोई भी ताजा आंकड़ा उपलब्ध नहीं था। यह दर्शाता है कि विभाग पूरी तरह कागजी कार्यवाही पर निर्भर है और जमीन पर कोई कार्य नहीं हो रहा।
यह भी पढ़ें-उप मुख्यमंत्री ने किया मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी का निरीक्षण
सिरमौर ब्लॉक में हालात सबसे बदतर
सिरमौर ब्लॉक में स्थिति और भी गंभीर है। यहां के जल में कैल्सियम की मात्रा 74-80 एमजी/लीटर तक पहुंच गई है (जबकि न्यूनतम स्तर 60 एमजी माना जाता है,हार्डनेस की मात्रा 380-400 एमजी/लीटर तक पहुंच चुकी है, वहीं नाइट्रेट भी 15 एमजी/लीटर से अधिक पाया गया है।एल्कालिनिटी (क्षारीयता) भी न्यूनतम 200 के पार पहुंच चुकी है। ये सभी आंकड़े पानी को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक घोषित करते हैं।
बस्तियों में हैंडपंप बने बीमारी के स्रोत
घनी आबादी और अनुसूचित जाति/जनजाति बस्तियों में हैंडपंपों के आसपास गंदगी और गंदे पानी का जमाव आम बात है। यह गंदा पानी भूजल में मिलकर नाइट्रेट की मात्रा को और बढ़ा देता है। इन क्षेत्रों में कई स्थानों पर नाइट्रेट की मात्रा 40 एमजी/लीटर से अधिक पाई गई है, जिससे बच्चों और बुजुर्गों में डायरिया और अन्य जलजनित रोग लगातार बढ़ रहे हैं।
प्रशासनिक लापरवाही या भ्रष्टाचार ?
जल परीक्षण प्रयोगशाला में नियमित रूप से सैंपलिंग न होना, कर्मियों द्वारा सिर्फ पुराने आंकड़ों के आधार पर स्थिति का अंदाजा लगाना और आम जनता को जल की गुणवत्ता की जानकारी न देना प्रशासन की घोर लापरवाही को उजागर करता है। कई स्थानीय सामाजिक संगठनों ने आशंका जताई है कि विभागीय उदासीनता के पीछे भ्रष्टाचार भी एक कारण हो सकता है।