जब गांधी की पसंद पटेल नहीं नेहरू थे, बिना बहुमत के बने थे नेहरू प्रधानमंत्री

1946 का वो किस्सा जब गांधी ने नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पटेल को पीछे हटने को कहा था.

जब गांधी की पसंद पटेल नहीं नेहरू थे, बिना बहुमत के बने थे नेहरू प्रधानमंत्री

देश में वोट चोरी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। कांग्रेस लगातार बीजेपी और चुनाव आयोग पर वोट चोरी कर सरकार बनाने के आरोप लगा रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में वोटों की चोरी इससे पहले भी हो चुकी है? दरअसल, देश के पहले प्रधानमंत्री भी वोट चोरी करके ही बने थे।

बात है 1946 की, जब ब्रिटेन ने भारत को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया था। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होना था और उससे पहले यह तय हुआ कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष होगा, वही स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री बनेगा।

उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद थे। वे पिछले छह वर्षों से इस पद पर थे और अब उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा था। सवाल था – अगला अध्यक्ष कौन बनेगा?

महात्मा गांधी ने मन बना लिया था कि कांग्रेस की कमान जवाहरलाल नेहरू को सौंपी जाए, लेकिन चुनाव करवाना बाकी था। 20 अप्रैल 1946 को गांधी जी ने मौलाना आज़ाद को पत्र लिखकर कहा कि वे एक बयान जारी करें कि अब वे अध्यक्ष नहीं बने रहना चाहते।

तय हुआ कि 29 अप्रैल 1946 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी, जिसमें पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाएगा। इस बैठक में महात्मा गांधी के अलावा जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जे.बी. कृपलानी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, और कई अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। कमरे में मौजूद हर व्यक्ति जानता था कि गांधी जी नेहरू को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं।

पार्टी के नियमों के अनुसार चुनाव करवाया गया। इसमें 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस समितियों (PCCs) ने सरदार पटेल के नाम का प्रस्ताव रखा। बाकी 3 समितियों ने आचार्य कृपलानी और पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया। लेकिन किसी भी समिति ने जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया।

पार्टी के महासचिव कृपलानी ने प्रांतीय समितियों के प्रस्ताव गांधी जी को सौंपे। गांधी जी ने कृपलानी की ओर देखा, और कृपलानी समझ गए कि गांधी जी क्या चाहते हैं। कृपलानी ने एक नया प्रस्ताव तैयार किया और नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया, जिस पर कार्यसमिति के सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए।

अब अध्यक्ष पद के दो उम्मीदवार थे – नेहरू और पटेल।

नेहरू अध्यक्ष तभी बन सकते थे जब पटेल अपना नाम वापस ले लेते। इस स्थिति में कृपलानी ने एक बयान लिखा:
"मैं, सरदार वल्लभभाई पटेल, अपना नाम अध्यक्ष पद की दौड़ से वापस लेता हूँ।"

यह बयान पटेल की ओर बढ़ा दिया गया।
पटेल ने पहले इसे साइन नहीं किया और बयान गांधी जी को लौटा दिया।

गांधी जी ने नेहरू की ओर देखा और कहा:
"जवाहर, वर्किंग कमेटी को छोड़कर किसी भी प्रांतीय कांग्रेस समिति ने तुम्हारा नाम प्रस्तावित नहीं किया है। तुम्हारा क्या कहना है?"

नेहरू ने कोई जवाब नहीं दिया।

इसके बाद गांधी जी ने वह बयान फिर से पटेल को दिया। इस बार पटेल ने हस्ताक्षर कर दिए। और इस तरह जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, जबकि उन्हें एक भी प्रांतीय समिति का समर्थन नहीं मिला था।

इस घटनाक्रम के बाद जब एक पत्रकार ने महात्मा गांधी से पूछा कि आपने अध्यक्ष के लिए नेहरू को क्यों चुना, तो गांधी जी ने जवाब दिया:

तो जैसा आपने देखा कि जवाहरलाल नेहरू को एक भी वोट नहीं मिला, इसके बावजूद उन्हें देश का पहला प्रधानमंत्री बना दिया गया, और बहुमत के बावजूद सरदार वल्लभभाई पटेल को पीछे हटना पड़ा।