अब नए सिरे से होगी टेंडर प्रक्रिया, अनियमितता को लेकर उठाए थे कई सवाल
भाजपा नेता उरेती ने टेंडर को लेकर सवाल किए, तो निरस्त कर दी गई टेंडर प्रक्रिया

वनोपज खरीदी के लिए एमएफपी पार्क द्वारा किए गए टेंडर को लेकर जब सत्तादारी के दल के आदिवासी नेता व पूर्व विधायक दुलीचंद उरेती ने भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप लगाए और टेंडर प्रक्रिया को लेकर कई सवाल किए थे। इसके जवाब में मध्यप्रदेश लघु वनोपज संघ के एमडी विभाष कुमार ठाकुर ने पूरी टेंडर प्रक्रिया को निरस्त कर दिया है। अब टेंडर की प्रक्रिया नए सिरे से होगी। भाजपा के पूर्व विधायक उरेती ने इसको लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। पत्र में कई गंभीर आरोप लगाए थे। दरअसल लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र बरखेड़ा पठानी द्वारा आयुर्वेदिक दवाइयों के निर्माण में उपयोग होने वाले वनोपज की खरीदी की जाती है। यह वनोपज एमपी के जंगलों में मिलते हैं। उरेती का आरोप था कि आदिवासी वनोपज संग्राहकों, वन समितियों अथवा सहकारी संस्थाओं से खरीदी नहीं कर व्यापारियों से की जा रही है। शायद यही वजह रही कि टेंडर के नियमों में कई शर्ते ऐसी जोड़ी गई हैं, जो न तो संघ के प्रबंध संचालक से स्वीकृत कराई गई हैं और न ही संचालक मंडल द्वारा अनुमोदित की गई हैं। दरअसल लघु वनोपज संघ सहकारी संस्था है। लघु वनोपज पर निर्भर आदिवासी वनोपज संग्राहकों को आजीविका के साधन मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किए गए हैं, लेकिन यह केंद्र आदिवासी वनोपज संग्राहकों से नाम मात्र की खरीदी करते हैं और करोड़ों रुपए के वनोपज की खरीदी व्यापारियों से टेंडर के माध्यम से करते हैं। अभी कुछ सालों से धीरे-धीरे टेंडर में गड़बड़ी की जा रही है। टेंडर प्रक्रिया में ऐसी शर्तें तय कर दी जा रही हैं, जिससे अफसरों की पसंद के व्यापारियों को फायदा मिल सके।
पसंदीदा फर्म को लाभ पहुंचाने जोड़ी शर्तें
सभी से टेंडर भरते समय कच्चे माल (रॉ-मटेरियल) की आयुष/एनयेबील लैब से जांच रिपोर्ट मांगी जा रही है। रिपोर्ट जमा नहीं करने पर टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जा रहा है, जबकि जिन्हें रॉ मटेरियल का टेंडर अलॉट हो, उनसे ही जांच रिपोर्ट सप्लाई की समय सीमा तय करना चाहिए और उसका परीक्षण भी किया जाना चाहिए। पिछले वित्तीय वर्ष में टेंडर भरने के लिए जो वित्तीय आहर्ता 35 लाख रुपए की थी, उसे बढ़ाकर सीधे एक करोड़ कर दिया गया। इससे कई छोटे व्यापारी बाहर हो जाएंगे। अंदर खाने की खबर है कि कुछ विशेष व्यापारियों को लाभ देने के लिए लघु वनोपज संघ से अनुमति लिए बिना कई शर्तें जोड़ कर भ्रष्टाचार करने की जुगत बैठाई गई है।
वन समितियों से खरीदी करने के निर्देश
वनोपज संघ के एमडी ठाकुर ने रा-मैटेरियल के लिए आदिवासी वनोपज संग्राहकों वन समितियों से खरीदी करने के निर्देश दे रहे हैं, फिर भी प्रसंस्करण केंद्र के संचालक द्वारा कोई ना कोई बहाना बनाकर टेंडर से खरीदी की जा रही है। इसी कारण उरेती की शिकायत पर टेंडर तो निरस्त कर दिया गया है। बहरहाल टेंडर से व्यापारियों को फायदा पहुंचाने एवं पूर्व में की गई खरीदी में करोड़ों रुपए के भुगतान की जांच कब होगी, यह बड़ा सवाल है। अभी हाल में महिला बाल विकास विभाग ने भी किसी खास व्यक्ति को फायदा पहुंचाने के लिए इसी तरह की शर्तें टेंडर में शामिल कर दी गई थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने टेंडर निरस्त कर विभाग पर दस लाख का जुर्माना लगाया है।
व्यापारिक फर्म के
लिए जोड़ते हैं शर्तें
उरेती ने अपने पत्र में लिखा था कि अभी वर्तमान टेंडर मे ऐसी शर्तें जोड़ी गई हैं, जिससे व्यापारिक फर्में ही टेंडर डाल सकें। निविदा में एक करोड़ रुपए के टर्न ओवर एवं लैब रिर्पोट की ऐसे नियम शामिल किए गए हैं, उससे वनों पर निर्भर वन समितियां और वनोपज के छोटे संग्राहक एवं व्यापारी खरीदी प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकेंगे। निविदाओं के माध्यम से उन वनोपज को भी क्रय किया जा रहा है, जो कि प्रदेश के वनों में उपलब्ध हैं। आवंला, हर्रा, बहेरा, गिलोय, शहद गुड़मार, अर्जुन छाल, महुआ, नागरमोथा, धवई फूल, एरंडमूल, कंरज बीज, निरगुंडी, बला पंचाग, बबूल गोंद, बराही कंद, सतावर, अश्वगंधा, चित्रक, बच इत्यादि वनोपज महंगे दरों पर व्यापारियों से क्रय किये जा रहे हैं।
अब एल-1 से भी
वसूली का प्रावधान
सूत्रों ने बताया कि इस बार टेंडर की शर्तों में एक दिलचस्प और नई शर्ते जोड़ी जा रही है। इसके मुताबिक आमंत्रित निविदा में एल-1 प्रदायदाता यदि सामग्री की सप्लाई नहीं कर पाता है तो एल-2 को संबंधित सामग्री का वर्क आर्डर दिया जाएगा और अंतर की राशि की वसूली एल-1 से की जाएगी। एक रॉ मटेरियल के कारोबारी का कहना है कि यदि एल-1 से वसूली करने का इतना ही अधिकार चाहिये तो पहले गत 5 सालों के टेंडर में दर्ज मात्रा और खऱीदी मात्रा की जांच कराई जाए ताकि भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो सके।