Shibu Soren death: जब आदिवासी ने छेड़ी महाजनों के खिलाफ जंग, गिरफ्तारी के डर से हुए लापता, फैक्स के जरिए भेजा पीएम को इस्तीफा

झरखंड ने अपने एक सपूत को खो दिया है. दिशोम गुरु शिबू सोरेन का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 81 साल की उम्र में निधन

Shibu Soren death: जब आदिवासी ने छेड़ी महाजनों के खिलाफ जंग, गिरफ्तारी के डर से हुए  लापता, फैक्स के जरिए भेजा पीएम को इस्तीफा

राइटर- शिवेंद्र सिंह 

झारखंड ने आज अपने एक सपूत को खो दिया है. दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 81 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. किडनी की समस्या, ब्रेन स्ट्रोक और पैरालिसिस के बाद वे इस दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन, उनकी कहानी, जो जंगल की सियासत से शुरू होकर दिल्ली के दरबार तक पहुंची, झारखंड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखी जाएगी.

तो आइये जानते हैं, शिबू सोरेन (Tribal leader Shibu Soren) ने कैसे झारखंड ही नहीं देश की राजनीति में अपना नाम स्थापित किया. शिबू सोरेन को उनके अनुयायी 'धर्ती आबा' (धरती के पिता) कहकर पुकारते हैं. उनका राजनीतिक सफर न सिर्फ झारखंड के जंगलों और कोयलांचल के खदानों से शुरू हुआ, बल्कि उसने दिल्ली की सत्ता के गलियारों में भी अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई.

महाजनी शोषण के खिलाफ बिगुल

harkhand leader dies: 1950 के दशक और 60 के शुरुआती दौर में झारखंड तब के बिहार के संथाल परगना, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो और दुमका जैसे क्षेत्रों में आदिवासी किसान महाजनों और जमींदारों के शोषण का शिकार हो रहे थे. ऊँचे ब्याज पर कर्ज, बेदखली, बेगार और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत ने आदिवासी जीवन को नरक बना दिया था. इन्हीं परिस्थितियों में शिबू सोरेन, जिन्होंने शुरू में एक स्कूल खोला था, समाजसेवा के रास्ते पर आगे बढ़े. 1970 के दशक में उन्होंने महाजनों के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया, जो जल्द ही एक जनजागरण अभियान में बदल गया. इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासी समाज का अगुआ बना दिया.

झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना

1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना हुई, जिसमें शिबू सोरेन ने केंद्रीय भूमिका निभाई. पार्टी का उद्देश्य था झारखंड के लिए अलग राज्य की मांग, आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन की रक्षा और शोषणमुक्त समाज की स्थापना. JMM के बैनर तले उन्होंने संथाल परगना से लेकर चिरकुंडा, लोहरदगा, कोडरमा और बोकारो तक लोगों का जबरदस्त समर्थन हासिल किया. इस आंदोलन ने न सिर्फ सामाजिक चेतना जगाई, बल्कि राजनीतिक मंच पर आदिवासी अधिकारों को मजबूती से पेश किया.

सियासत में दस्तक और संसद तक का सफर

1980 में शिबू सोरेन ने पहली बार दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने कई बार संसद में झारखंड के मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाया. साल 2004 में झामुमो ने यूपीए के साथ चुनाव लड़ा. उनको मनमोहन कैबिनेट में कोयला मंत्री बनाया गया था. इसी बीच 30 साल पुराना चिरुडीह नरसंहार केस सामने आ गया. सदन में हंगामा होने लगा. तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दिन-ब-दिन दबाव बढ़ रहा था. क्योंकि शिबू सोरेन भूमिगत हो गये थे. गिरफ्तारी का डर था. पीएम का उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था. इसी बीच 24 जुलाई 2004 को उन्होंने फैक्स के जरिए प्रधानमंत्री को इस्तीफा भेज दिया. हालांकि सितंबर 2004 में चिरुडीह मामले में जमानत मिलने के बाद उनके दवाब डालने पर 27 नवंबर 2004 को दोबारा कोयला मंत्री बनाया गया. यह पद भी ज्यादा दिन तक उनके पास नहीं रहा. 28 नवंबर 2006 को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने उन्हें निजी सचिव शशिनाथ झा हत्या मामले का दोषी बताया. इसके साथ ही उन्हें फिर से मंत्री पद छोड़ना पड़ा

मुख्यमंत्री बने, फिर इस्तीफा देना पड़ा
2005 में जब झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए तो शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन बहुमत सिद्ध करने में असफल रहने के कारण सिर्फ 10 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद 2009 में उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन सहयोगी दलों के समर्थन वापसी से यह सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी.

पारिवारिक राजनीति और उत्तराधिकारी
शिबू सोरेन ने जिस झारखंड मुक्ति मोर्चा को खड़ा किया, अब उसका नेतृत्व उनके बेटे हेमंत सोरेन के हाथों में है. हेमंत झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. हालांकि उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और हाल ही में उन्होंने पद से इस्तीफा देकर जेल की राह देखी, लेकिन पार्टी की कमान अब भी परिवार के पास है.

दिशोम गुरु की विदाई

जून 2025 में किडनी की समस्या और ब्रेन स्ट्रोक के बाद शिबू सोरेन को सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती किया गया. डेढ़ महीने तक वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत से जूझने के बाद, 4 अगस्त 2025 को सुबह 8:56 बजे वे दुनिया को अलविदा कह गए. उनके बेटे हेमंत ने एक्स पर लिखा, “आज मैं शून्य हो गया हूं. गुरुजी ने न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश में सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम नरेंद्र मोदी, और कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया. शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, एक आंदोलन थे. जंगल की मिट्टी से उठकर उन्होंने झारखंड को नई पहचान दी थी.