आपराधिक प्रकरणों के आरोपियों को बरी करने में लापरवाही का मामला

हाईकोर्ट ने कहा, सिविल जज की बर्खास्तगी सही

आपराधिक प्रकरणों के आरोपियों को बरी करने में लापरवाही का मामला

सिविल जज को पद से बर्खास्त किए जाने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने मामले में कहा कि याचिकाकर्ता (बर्खास्त जज) ने तीन आपराधिक मामलों में बिना आदेश पारित किए अभियुक्तों को दोषमुक्त कर दिया था। इसके अलावा दो प्रकरण को बिना आदेश स्थगित कर दिया था।


सिविल जज ने लगाई थी बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका
दरअसल, बर्खास्त किए गए सिविल जज की ओर से ये याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि जुलाई 2003 को उन्होंने नरसिंहपुर में सिविल जज वर्ग (प्रशिक्षु के रूप में) के रूप में कार्यभार ग्रहण किया था। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें मई 2009 को जिला छतरपुर में पदस्थ किया गया। इसके बाद दिसंबर, 2009 में तहसील नौगांव जिला छतरपुर व दिसम्बर 2011 को उन्हें तहसील निवास जिला मंडला में पदस्थ किया गया था। उच्च न्यायालय की अनुशंसा पर सितम्बर 2014 को उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया था। बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ उन्होंने आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसे निरस्त किए जाने के कारण ये याचिका दायर की गई।
सिविल जज को क्यों किया गया बर्खास्त: मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने पाया कि हाईकोर्ट की विजिलेंस टीम ने साल 2012 में मंडला में औचक निरीक्षण किया था। इस औचक निरीक्षण में सिविल जज ने बिना अंतिम फैसला लिखवाए तीन आपराधिक मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके अलावा दो प्रकरण में बिना आदेश लिखाए उन्हें स्थगित कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता को विधिवत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए विभागीय जांच करवाई गई थी। जांच अधिकारी ने उनपर लगे सभी पांच आरोप सही पाए थे, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने उन्हें सेवा से बर्खास्त किए जाने की अनुशंसा की थी. युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को कदाचार का दोषी पाते हुए बर्खास्तगी की कार्रवाई को उचित ठहराया है।


याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क
याचिकाकर्ता सिविल जज की ओर से तर्क दिया गया कि कार्यभार के दबाव के साथ-साथ व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद कर्तव्यों का पालन करने के दौरान उनसे गलती हुई थी। इसी तरह के आरोपों में एक अन्य न्यायिक अधिकारी को दो वेतन वृद्धि रोकने की सजा से दंडित किया गया था लेकिन उनके खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई।