किसान की उम्मीदें अब पत्थरों पर, आगर मालवा में सिस्टम के आगे झुकी पहचान
मध्यप्रदेश के आगर मालवा में खाद संकट इतना गहराया है कि किसान खुद की जगह आधार कार्ड, जमीन के कागज और पत्थर लाइन में लगा रहे हैं।महिलाएं भी सुबह से घर के काम छोड़कर लाइन में शामिल हो रही हैं, दस्तावेज़ ही अब उनकी उम्मीद बन गए हैं।

भोपाल: :मध्यप्रदेश में खाद संकट लगातार गहराता जा रहा है, और अब इस संकट की तस्वीरें सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही हैं। मध्य प्रदेश में पिछले कुछ समय से अलग-अलग जिलों से खाद की कमी को लेकर किसान परेशान होते नजर आए हैं। ऐसी ओर तस्वीर अब आगर मालवा से आई जहां लाइन में अब इंसान नहीं, बल्कि आधार कार्ड, जमीन के कागज़ और यहां तक कि पत्थर खड़े हैं! क्योंकि किसान अब खुद से ज़्यादा अपने दस्तावेज़ों पर भरोसा करने लगे हैं। खाद की आस में हर सुबह 6 बजे से लंबी लाइन लगती हैं।इस लाइन में बुजुर्ग महिला किसान भी लगती हुई नजर आती है
खाद कि आस में किसान
एमपी गजब है सबसे अजब है, ये कहावत आज आगर मालवा में सच होती दिखी। जहां खाद के लिए सुबह सूरज निकलने से पहले ही किसान कतार में खड़े हो जाते हैं। मगर हालात ऐसे है कि अब उन्होंने खुद नहीं, बल्कि अपने आधार कार्ड और जमीन के दस्तावेज़ों को लाइन में लगा दिया है। कई किसानों ने तो अपने नाम पत्थरों पर लिख कर उसे भी लाइन में सजा दिया है ताकि नंबर छूट न जाए, और पहचान मिटे नहीं। अब आप सिस्टम की सच्चाई देखिए हर दिन सिर्फ 40 किसानों को ही कूपन दिए जा रहे हैं, जिनके आधार पर बाद में खाद का वितरण होता है। जैसे ही ये कूपन बांटने वाला कर्मचारी पहुंचता है । लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है,
महिलाएं भी इस संघर्ष से अछूती नहीं
सुबह 7 बजे से ही घर के सारे काम छोड़कर इस लाइन में जुट जाती हैं। कहीं आधार कार्ड, कहीं जमीन की कॉपी, तो कहीं नाम लिखा पत्थर सब जमीन पर सजे हैं। जैसे ये कोई प्रशासनिक फाइलें नहीं, बल्कि किसानों की जीती-जागती उम्मीदें हों। ये तस्वीर सिर्फ एक जिले की नहीं बल्कि उस व्यवस्था की झलक है, जहां किसान को अपनी पहचान भी जमीन पर रखनी पड़ रही है। खाद के लिए किसान अब अपनी ओरिजिनल आईडी और जमीन के कागज़ों को धूप में सड़कों पर बिछा रहे हैं और सिस्टम अब भी कूपन गिन रहा है। किसानों की यह तस्वीर जितनी अजीब है, उतनी ही कटु सच्चाई भी है। जब एक ओर सरकार “खेत तक सुविधाएं पहुंचाने” की बात करती है, तो दूसरी ओर किसान अपनी पहचान तक को खेत और सड़क पर रखकर खाद की आस में बैठा है। अब सवाल यही है क्या यह लाइन कभी खत्म होगी या किसान यूं ही पत्थरों पर अपना नाम लिखकर उम्मीद की फसल बोता रहेगा