नवरात्रि स्पेशल: मां बगलामुखी मंदिर का इतिहास और आध्यात्मिक महत्व

मां की शक्ति और भक्ति की अराधना का पर्व नवरात्रि आरंभ हो चुका है. ऐसे में हम आपको मां के कुछ सिद्ध मंदिरों के दर्शन कराएंगे. तो आप इस शारदीय नवरात्र में माता की भक्ति में लीन होकर करिए माता की अराधना और लीजिए पुण्य लाभ. 

नवरात्रि स्पेशल: मां बगलामुखी मंदिर का इतिहास और आध्यात्मिक महत्व
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बात आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां बगलामुखी की जिनके दर्शन मात्र से कई कष्टों का निवारण हो जाता है. महाभारत काल में पाण्डवों को यहीं से विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था. जिला मुख्याटलय से 35 किलोमीटर दूर लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान मां बगलामुखी जिनके एक ओर धन दायिनी महा लक्ष्मी और दूसरी और विद्या दायिनी मां सरस्वती विराजित हैं. 

मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक यहाँ नलखेडा में. नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्य शंकराचार्य जी द्वारा माँ की प्रतिमा स्थापित की गई जबकि नलखेडा में इस स्थान पर माँ बगलामुखी पीताम्बर स्वरूप में शाश्वत काल से विराजित हैं.

मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता बताया जाता है की यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है. काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने को कहा था. तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. 

पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर मुसीबतों से मुक्ति पाई. और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया. वैसे तो मां के इस मंदिर में पूरे साल भक्तोब का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि मे लाखों की संख्या में भक्त मां के दर्शन के लिये देश विदेश से आते हैं.

बगलामुखी के मंदिर के आस पास की संरचना दैवीय शक्ति के साक्षात होने को प्रमाणित करती है. मंदिर के उत्तर दिशा में भैरव महाराज का मंदिर. पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा. हनुमान जी के पीछे चंपा नीम और बिल्व पत्र के पेड़ की मौजूदगी. दक्षिण भाग में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर मौजूद है.