इन युवाओं ने झाड़ू को हथियार बनाया, और गंदगी पर विजय पाई — भोपाल के युवाओं ने हर रविवार धर्म को समर्पित कर रचा एक नया इतिहास

जहाँ एक ओर रविवार का मतलब आम जीवन में ‘आराम’ है, वहीं भोपाल के कुछ ऐसे युवा भी हैं जिन्होंने रविवार को धर्म, समाज और सेवा के लिए आरक्षित कर दिया है। इन युवाओं के हाथों में झाड़ू है, माथे पर श्रद्धा का तिलक है और दिल में वो संकल्प जो हर हफ्ते भोपाल की फिजाओं में एक नई ऊर्जा भर देता है।

भोपाल में ‘सनातनी इनफ्लुएंसर संस्था’ के नाम से एक अनोखी सामाजिक चेतना ने आकार लिया है। कुछ सपने देखती आंखों और सेवा से भरे दिलों का मिशन है।

 65 रविवार |  65 मंदिर |65 संस्कार
इस संस्था ने अब तक 65 रविवारों को समाजसेवा की अमिट स्याही से रंग दिया है। हर रविवार भोपाल या मध्यप्रदेश के किसी एक मंदिर को चुना जाता है — और वहां की स्वच्छता, सौंदर्यीकरण, दीप सज्जा, रंगाई-पुताई, और वृक्षारोपण जैसे कार्यों में दर्जनों युवा श्रमदान करते हैं।

गर्मी हो या सर्दी, बारिश हो या तूफान — इनकी सेवा कभी रुकी नहीं। यह एक साप्ताहिक यज्ञ बन चुका है, जहाँ आहुति श्रम की होती है और फल समाज को मिलती है।

संस्था की स्वयंसेविका शिवानी - हम मानते हैं कि समाज हमें सब कुछ देता है — शिक्षा, संस्कार, पहचान। अगर हम उसे एक दिन न दें, तो क्या हमारा धर्म पूरा होगा?

वहीं संस्था से जुड़ी मेघा कहती हैं- एक महिला सिर्फ घर नहीं, धर्म और समाज को भी संवार सकती है। जब धर्म मजबूत होता है, तो समाज और परिवार दोनों सुरक्षित रहते हैं।

इन युवाओं में कोई डॉक्टर है, कोई इंजीनियर, कोई वकील और कोई स्टूडेंट। लेकिन जब ये मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंचते हैं — तो सबकी पहचान बस एक होती है:
"हम सनातनी हैं, और हम सेवक हैं।"

सेवा से स्वच्छता | स्वच्छता से संस्कार
यह संस्था सिर्फ मंदिरों की सफाई नहीं करती — यह समाज की सोच को भी पवित्र करती है। हर रविवार का यह संकल्प भोपाल को ‘झीलों की नगरी’ से 'सेवा की नगरी' में बदल रहा है। जहां देश के किसी कोने में युवा थकान मिटा रहे होते हैं, वहीं भोपाल के यह युवा समाज को जागृत कर रहे होते हैं।

मंदिरों की घंटियों से आगे बढ़कर, अब सेवा की गूंज सुनाई देती है
"धर्म सिर्फ पूजा में नहीं, परिश्रम में भी बसता है।हमने रविवार बचा लिया है… अब हर रविवार समाज के नाम है।"