उप स्वास्थ्य केन्द्रों का निर्माण कराने भूमि की कमी

रीवा | मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी और एनके मातहतो द्वारा पिछल्ले चौबीस माह से उप स्वास्थ्य केन्द्र के लिए भूमि की खरेज की जा रही है। लेकिन सब हेल्थ सेंटर को अब तक अपना ठिकाना नही मिला है। गौरतलब है कि जिले के 6 दर्जन नवीन उप स्वास्थ्य केन्द्रो का भविष्य अधर में लटका हुआ है। इनकी स्वीकृत को लम्बा समय हो चुका है। लेकिन अभी तक इन्हे चालू करने में जिला स्वास्थ्य विभाग असफल रहा है।

ज्ञात हो कि जिन 72 नवीन उप स्वास्थ्य केन्द्रो को खोलने की घोषणा की गई थी,उनके लिए न तो अभी तक मकान ही मिल सके है और न ही जमीन मिल पाई है। जिला कार्यालय से विकास खण्ड चिकित्सा अधिकारी को इसके लिए पत्र जारी करने का क्रम अभी भी चल रहा है। एक पत्र जारी होने के बाद हर बार दो से तीन माह तक का इंतजार करना पड़ता है। और फिर से दोबारा पत्र जारी कर अपना फर्ज पूरा किया जा रहा है। माना यह जा रहा है कि अब तक आधा दर्जन से ज्यादा पत्र जारी किए जा चुके है। परंतु अभी तक न तो मकान ही मिल पाए हैं और न ही जमीन ही मिल सकी है।

नहीं मिले किराए के मकान
स्वास्थ्य विभाग द्वारा नवीन उप केन्द्रो को खोलने के लिए दो विकल्प दिए थे जिसमें जमीन न मिलने पर किराए का मकानभी खोजने को कहा गया था। लेकिन अभी तक कोई भी परिणाम सामने नही आए है। आदेश में स्पष्ट किया गया था कि जहा पर उप केन्द्र खोला जाना है वहां पर दो से तीन कमरे का मकान किराए पर लेकर इसकी शुरुआत की जा सकती है परंतु जिस कार्य को मार्च 2017 तक पूरा करना था उसे अभी तक विभाग के अधिकारी शुरू नही कर पाए हैं। 

12 केन्द्रों में नहीं चिकित्सक
जिले में अभी तक कुल 29 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है,जिसमें 17 में तो चिकित्सक पदस्थ है परंतु 12 ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं जहां पर चिकित्सक ही तैनात नही है। ऐसे लाखो लोगो को स्वास्थ्य सेवा के लिए शहर की अस्पतालो पर निर्भर रहना पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में सुबिधओं का अभाव होने के चलते इन लोगो को शहर की दौड़ लगानी पड़ रही है।

खंडहर में तब्दील पुराने स्वास्थ्य केन्द्र
जिले में पहले से संचालित 283 उप स्वास्थ्य केन्द्रो में से अभी तक मात्र सौ केन्द्रो को ही भवन नसीब हो सके है। अलबत्ता अभी भी पौने दो सौ केन्द्रो को भवन नही मिल सका है। ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे प्राथमिक उप स्वास्थ्य केन्द्रो के स्थिति का आंकलन किया जाय तो वह भवन भी पूरी तरह से जर्जर हो चुके है। नाम मात्र के लिए चल रहे केन्द्रो का ताला तक नही खुलता और न ही उनके मेंटीनेंश के लिए कोई बजट दिया जा रहा है।