विधानसभा अध्यक्ष को हराया था, अब गौतम संभालेंगे अध्यक्षी का दायित्व

सतना | कभी प्रदेश की राजनीति में विंध्य के ‘सफेद शेर’ के नाम से पहचाने जाने वाले स्व. श्रीनिवास तिवारी को मात देकर उनके राजनीतिक सम्राज्य को चुनौती देने वाले देवतालाब विधायक गिरीश गौतम के विधानसभा के 18वें अध्यक्ष बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।  रविवार को भाजपा की प्रदेश इकाई के साथ ही आलाकमान ने गिरीश गौतम के नाम पर सहमति जता दी जिसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग  के साथ नामांकन दाखिल किया।

लगभग 18 साल  बाद विधानसभा अध्यक्ष पद विंध्य के खाते में आया है। इससे पहले दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में विंध्य के कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए थे और संयोग ऐसा कि 2003 में श्रीनिवास तिवारी को चुनाव हराने वाले गिरीश गौतम अब विधानसभा अध्यक्ष बनाए जा रहे हैं। गिरीश गौतम को यह जिम्मेदारी मिलने से समूचा विंध्य अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है। 

क्षेत्रीय असंतुलन की हुई पूर्ति 
दरअसल, विंध्य क्षेत्र के नेता असंतुष्ट चल रहे थे, ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे थे कि इस मर्तबा अध्यक्ष का पद विंध्य के खाते में आ सकता है।  शिवराज कैबिनेट में विंध्य के नेताओं को जगह नहीं मिली थी। उस इलाके से आने वाले कई नेताओं ने असंतोष व्यक्त किया था। गिरीश गौतम के नाम पर सहमति बनने के पूर्व विंध्य के तीन नेताओं के नाम विस अध्यक्षी के लिए चल रहे थे। गिरीश गौतम,  राजेंद्र शुक्ला और केदार शुक्ला लेकिन अंतिम समय में गिरीश गौतम के नाम पर सहमति बनी। अब विधानसभा अध्यक्ष का पद देकर विंध्य के नेताओं को साधने की कोशिश की गई है।

रीवा जिले के देवतालाब विधानसभा क्षेत्र से विधायक गिरीश गौतम को विधानसभा अध्यक्ष के लिए बीजेपी ने नामित किया है। नाम पर मुहर लगते ही गिरीश गौतम ने विधानसभा अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष का पद विंध्य के खाते में आ  गया है। गिरीश गौतम के नामांकन के बाद विंध्य के कद्दावर नेता राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन की आज पूर्ति हो गई। विंध्य से काफी सीट मिली थीं, इसलिए ये निर्णय संतुष्ट करने वाला है। मंत्रिमंडल में विंध्य के नेताओं को शामिल करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये फैसला सीएम को करना है। 

शालीन कार्यशैली से ध्वस्त किया था श्रीनिवास का राजनीतिक साम्राज्य
गिरीश गौतम को विंध्य में एक जुघरू नेता के तौर पर जाना जाता है जिनकी नेतृत्व क्षमता 1972 से छात्रजीवन से ही नजर आने लगी थी। 1975 से गिरीश गौतम सक्रिय राजनीति में उतरे और  लगातार  किसानों एवं मजदूरों के लिए संघर्ष करते रहे। 1985 में उन्होंने पहली बार जिले की गुढ़ सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा। 1993 और 1998 में कांग्रेस के कद्दावर नेता श्रीनिवास तिवारी से गिरीश गौतम चुनाव हार गए थे। 1998-99 में गौतम भाजपा के तत्कालीन संभागीय संगठन मंत्री भागवत शरण माथुर के संपर्क में आए जिन्होंने उनकी मुलाकात तत्कालीन राष्टÑीय संगठन महामंत्री स्व. कुशाभाऊ ठाकरे से कराई ।

माथुर और ठाकरे की नीतियों से प्रभावित गिरीश गौतम ने भाजपा ज्वाइन की और यहां से उनकी राजनीतिक किस्मत खुल गई । वह दौर रीवा जिला समेत समूचे विंध्य में सफेद शेर के नाम से मशहूर श्रीनिवास तिवारी का था जिनका समूचे विंध्य की राजनीति में डंका बजता था। भगवत शरण माथुर के प्रयासों से वर्ष 2003 में उन्हें भाजपा से टिकट मिली और उन्हें श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा गया। चुनाव की गहमा-गहमी शुरू हो गई थी। प्रचार-प्रसार का दौर चल रहा था। श्री तिवारी के समर्थक इतने गुमान में  थे कि यह नारा लगाने लगे थे कि ‘दादा नहीं दऊ आंय, वोट न देवे तऊ आंय।’  

दादा ने भी इस नारे को मौन सहमति दे दी थी। प्रतिद्वंदी के रूप में इस बार भी बीजेपी से  गिरीश गौतम ही थे। श्रीनिवास तिवारी और उनके समर्थकों ने इस चुनाव में भी सभी चुनावी हथकंडे अपनाए थे, लेकिन प्रतिद्वंदी गिरीश गौतम ने शालीनता को चुनावी हथियार बनाया। 2003 के चुनाव की जब गणना हुई तो गिरीश गौतम  ने 55751 मत हासिल कर 28821 वोट पाने वाले श्रीनिवास तिवारी को मात देते हुए विंध्य की राजनीतिक तस्वीर ही बदल दी। इस प्रकार एक मंझे और कामयाब नेता के विरुद्ध गिरीश गौतम को मिली  जीत  कई मायनों में महत्वपूर्ण थी।  

राजनीतिज्ञ समीक्षकों का मानना है कि गिरीश गौतम की शालीन कार्यप्रणाली ही उनको इस मुकाम तक ले गई, अन्यथा श्रीनिवास तिवारी जैसे दिग्गज नेता को इतने भारी मतों के अंतर से हराना कोई मामूली बात नहीं थी। वर्ष 2008 के चुनाव में भी उन पर भरोसा जताया और तत्कालीन संभागीय संगठन मंत्री अजय पांडे ने उनके नाम को आगे बढ़ाया जिसमें उन्हें पुन: टिकट मिली और वे विधायक बने।  इस दौरान प्राक्कलन, विशेषाधिकार, सार्वजनिक उपक्रम समितियों के सभापति रहे। वर्ष 2013 में वे तीसरी बार विधायक बने। इस कार्यकाल में वे जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि जबलपुर की प्रबंध सभा के सदस्य, उत्तर-मध्य रेलवे परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। वर्ष 2018 में वे चौथी बार चुनाव जीत कर विधायक बने और अब वे विधानसभा अध्यक्ष का जिम्मा संभालने जा रहे हें। 

स्टार बातचीत 
मध्यप्रदेश के नए विधानसभा अध्यक्ष के रूप में गिरीश गौतम का नाम तय होने के बाद उन्होंने स्टार समाचार के कार्यकारी संपादक राजेश द्विवेदी से विशेष बात की। जिसमें उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं के बारे में विचार व्यक्त किए। प्रस्तुत है साक्षात्कार।

स्टार- सबसे पहले तो बधाई, कैसा महसूस कर रहे हैं आप? 
गौतम- बधाई मुझे नहीं विंध्य की जनता को मिलना चाहिए जिनकी सेवा का यह प्रतिफल है। 

स्टार- विंध्य प्रदेश की मांग उठ रही है क्या कहेंगे? 
गौतम- विंध्य की मांग उठाने वाले दूसरे लोग हैं, भाजपा के अंदर ऐसी कोई बात नहीं है। 

स्टार- अध्यक्ष पद के लिए विंध्य से कई दावेदार थे? 
गौतम- देखिए लोकतांत्रिक व्यवस्था की यही खूबसूसरती है, सबको अपनी बात रखने का हक है। 

स्टार - प्रदेश मंत्रिमंडल में विंध्य की उपेक्षा की बात से आप कितना सहमत हैं? 
गौतम- बिल्कुल सहमत नहीं हूं,भाजपा ने विंध्य का हमेशा सम्मान किया है। विंध्यवासी भी इस बात से परिचित हैं तभी भाजपा को विंध्य का स्रेह और आशीर्वाद मिला है। 

स्टार- वर्ष 2003 में श्रीयुत के खिलाफ मिली जीत पर क्या कहेंगे? 
गौतम- चुनाव काफी कठिन था क्योंकि श्री तिवारी ने मनगवां के लिए काम किया था। जनता उनसे स्नेह भी करती थी। लेकिन मुझे उनके कार्यकर्ताओं की कार्य प्रणाली का लाभ मिला। चुनाव के पहले के दस साल में मैने जो मेहनत की थी उसका सकारात्मक परिणाम सामने आया।