जैविक खेती को बढ़ावा देने अनुदानपरक योजनाएं जरूरी: कृषि उप संचालक
सतना | देश कृषि उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं हो चुका बल्कि अब वह निर्यात भी कर रहा है। अब समय आ गया है कि किसान उत्पाद की क्वांटिटी नहीं क्वालिटी पर ध्यान दें। यह मानना है जिले के किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के उप संचालक बहोरीलाल कुरील का। श्री कुरील ने स्टार समाचार से चर्चा करते हुए कृषि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर खुल कर अपनी बात रखी। प्रस्तुत हैं उनसे चर्चा केप्रमुख बिन्दु।
स्टार: जिले में किसानों के लिये केन्द्र व राज्य पोषित कितनी योजनाएं चल रही हैं?
कुरील: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत दलहन-तिलहन और मोटा अनाज विकास , बीज ग्राम, कृषि विकास योजना, पीएम स्वाइल हेल्थ कार्ड, कृषि विस्तार एवं सुधार कार्यक्रम, वायोगैस परियोजना, सूचना प्रौद्योगिकी और कृषि यंत्रीकरण योजना केन्द्र सरकार की ओर से संचालित है। इसी तरह राज्य सरकार की ओर से सूरजधारा अन्नपूर्णा, नलकूप जैसी अनुदान योजनाएं चलाई जा रही हैं। किसानों को प्रशिक्षण तथा जिले से राष्ट्रीय स्तर पर भ्रमण कार्यक्रमों के जरिये भी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। इन कार्यक्रमों के जरिये बीज, उर्वरक, कृषि यंत्र की योजनाओं का लाभ जिले में ब्लाक व गावों में कार्यरत मैदानी अमले के माध्यम से अंतिम छोर के किसान तक पहुंचाया जा रहा है।
स्टार : जिले में कृषि के क्षेत्र में हुए विकास के बारे में कुछ हताएं।
कुरील: जिले में सिचाई का रकवा 60 से बढ़कर 70 फीसदी हुआ है।बाणसागर तथा बकिया बांध की उपयोगिता साबित हुई है। टमस नदी के किनारे वाले क्षेत्र में सिंचाई के लिये स्टाप डैम व बांध बनाना चाहिये। इसके अलावा सरकार सौर्यऊर्जा पंप के लिये भारी भरकम अनुदान दे रही है। किसानों को पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर लाभ भी दिलाया जा रहा है। किसानों को आगे आकर इसका अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए। इससे उनका बिजली का खर्च तो बचेगा ही भरपूर समय बिजली भी मिलती रहेगी।
स्टार: जिले में मृदा परीक्षण की क्या स्थिति है?
कुरील: जिले के 90 फीसदी खेतों की मिट्टी का परीक्षण हो चुका है। अब किसानों की बारी है कि वे मिट्टी में जिन तत्वों की कमी है कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर उसकी पूर्ति करें। जिनके खेतों की मिट्टी नहीं जांची गई वे मुख्त में जांच भी करवा लें।
स्टार : किसानों के लिये खेती लाभ का धंधा बने इसके लिये क्या परिवर्तन होना चाहिए?
कुरील: अनियंत्रित रासायनिक खाद के उपयोग से खेत बंजर हो रहे हैं। खेतों की कम होती उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिये अब जैविक खेती को बढ़ावा देने का समय आ गया है। इससे उत्पादन लागत भी घटेगी और होने वाली उपज भी जहर मुक्त होगी। इसके लिये नाफेड, बर्मी कम्पोस्ट सहित अन्य छोटी-छोटी अनुदान वाली योजनाओं को पुन: शुरू करने की जरूरत है। किसान भाई भी बीज और खाद के मामले में आत्मनिर्भर बनें। साथ में पशु, मछली, मुर्गी पालन के साथ अन्य लाभ कारी फसलों का उत्पादन करें। मौजूदा समय जिले के कुछ किसान इन कार्यों के साथ ही जैविक खाद व मशरूम उत्पादन के जरिये लाभ कमा रहे हैं।
स्टार : कुछ अपनी सेवा और परिवार के बारे में बताएं?
कुरील: जन्म खड़ेही (गौड़िहा) छतरपुर में एक खेतिहर मजदूर परिवार में हुआ। बड़े भाई ने शिक्षा ग्रहण करने की राह आसान की। रीवा से एमएससी-एजी की शिक्षा पूरी करने के बाद अगस्त 1989 से कृषि विभाग में बतौर ग्रामीण कृषि विकास अधिकारी सेवा की शुरूआत की। जनवरी 1990 में कृषि विकास अधिकारी बनकर शाजापुर व टीकमगढ़ में काम किया। दिसंबर 1993 में सहायक संचालक पद पर पदोन्नति हुई और मैहर में पोस्टिंग हुई। मई 2012 में उप संचालक बनने के बाद पन्ना में पीडी आत्मा तथा दमोह में उप संचालक के रूप में काम करने का मौका मिला। जुलाई 19 में सतना के लिये स्थानांतरण हुआ।