गेहूं उपार्जन: खरीदी केन्द्र हथियाने सक्रिय हुए समूह
सतना | कृषि कानूनों के साथ ही मंडी शुल्क में कमी जैसे निर्णयों से मंडियों की माली हालत खराब होने के बाद अब सहकारी क्षेत्र की समितियों को भी दर किनार कर निजी क्षेत्र को आगे लाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। प्रदेश में धान के अब गेहूं उपार्जन कार्य में भी निजी क्षेत्र के साथ ही स्वसहायता समूहों को शामिल किया जा रहा है। प्रदेश सरकार की इस मंशा की जानकारी लगने के बाद सतना से लेकर समूचे प्रदेश में खरीदी केन्द्र हथियाने के लिये समूहों के बहाने प्रभावशाली लोग सक्रिय हो गये हैं। जानकारों का कहना है कि उपार्जन कार्य में निजी क्षेत्र की सहभागिता से सहकारी समितियों की आर्थिक स्थिति में प्रतिकूल प्रभाव तो पड़ेगा ही किसानों के हितों पर यह कुठाराघात होगा।
अच्छा नहीं रहा धान उपार्जन का अनुभव
वैसे तो धान और गेहूं उपार्जन के दौरान किसानों का शोषण होना कोई नई बात नहीं है। जिले में उपार्जन की एजेंसी चाहे नागरिक अपूर्ति निगम हो अथवा मार्कफेड किसानों के शोषण में शिकायतों के बाद भी रोक नहीं लगती। इसका कारण कई केन्द्रों में राजनीतिक रूप से पहुंच वाले लोगों की सक्रियता रहती है लेकिन यदि यह काम निजी क्षेत्र की ओर से होगा तो वहां दबंगई के चलते शिकायतें भी नहीं होंगी। प्रदेश सरकार द्वारा खरीफ सीजन के दौरान धान खरीदी केन्द्र में स्वसहायता समूहों को केन्द्र संचालन का काम दिया था।
इसकी जिला स्तर पर एजेंसी तो नान ही था पर जिले में संचालित कुल 134 खरीदी केन्द्रों में 9 का संचालन स्वसहायता समूह ही कर रहे थे। इस दौरान सहकारी समितियों द्वारा संचालित केन्द्रों के मुकाबले स्वसहायता वाले केन्द्रों में शोषण कुछ अधिक ही देखने को मिला। यहां तक कि नान और अन्य संबंधित विभाग के अधिकारी भी गड़बड़ी होने पर कार्रवाई करने से बचते रहे। सूत्रों का कहना है कि जिले में संचालित अधिकांश स्वसहायता समूह कागजों में ही चल रहे हैं। यहां तक कि मध्यांह भोजन का काम करने वाले समूहों में ही प्रभावशाली अपने परिवार की महिला को अध्यक्ष बनाकर काम करते रहते हैं जबकि अन्य सदस्य सिर्फ नाम के होते हैं। यही स्थिति बडे काम करने वाले समूहों की भी है।
आवेदनों की बाढ़
जिले में गेहूं खरीदी के लिये पंजीयन 25 फरवरी तक होना है और खरीदी 25 मार्च के बाद शुरू होगी। इसके पहले खरीदी केन्द्र हथियाने के लिये समूहों की सक्रियता बढ़ी हुई है। नान और मार्कफेड कार्यालयों का फेरा लगाने के बाद आवेदक आवेदन लेकर खाद्य विभाग के दफ्तर पहुंच रहे हैं। मजे की बात यह है कि आवेदन लेकर आने वालों में महिलाएं नहीं बल्कि अध्यक्ष के परिजन ही होते हैं। यहां तक कि इनके आवेदनों में अध्यक्ष व सचिव के हस्ताक्षरों की जांच कराई जाए तो समझ आ जाएगा कि खेल कैसा चल रहा है।
सूत्रों का कहना है कि खरीदी करने 27 रुपये प्रति क्विंचल केन्द्रों को जिला एजेंसी द्वारा कमीशन दिया जाता है जबकि जिला स्तर की एजेंसी को कमीशन के रूप में 19 रुपये 75 पैसे मिलते है। जबकि कमाई का असली खेल किसानों से पहले नंबर लगाने से लेकर चट्टा, तौल के नाम पर होने वाली वेजा वसूली के रूप में होता है। इसके अलावा प्रति बोरी एक से तीन किलो तक अधिक तौल होती है वह अलग है।
धान उपार्जन के लिये जिले में 134 केन्द्र बनाये गये थे इनमें 9 केन्जद्र स्वसहायता समूहों द्वारा संचालित थे। इस बार जिले में नान ही गेहूं उपार्जन का कार्य करेगा। अभी केन्द्रों का निर्धारण नहीं हुआ। केन्द्र संबंधी आवेदन फूड आफिस में जमा हो रहे हैं।
विख्यात हिंडोलिया, डीएम नान