रेबीज इंजेक्शन में खपता है एक तिहाई बजट, SGMH में प्रति वर्ष खर्च हो रहे 50 लाख
रीवा | संजय गांधी अस्पताल में रेबीज वैक्सीन के नाम पर सालाना 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किया जा रहा है। अस्पताल के बजट का एक तिहाई खर्च एंटी रेबीज की वैक्सीन में आवारा कुत्तों के काटने से किया जा रहा है। ऐसे में अगर नगर निगम प्रशासन द्वारा इस पर संजीदगी जताई जाए तो एसजीएमएच में खर्च हो रहे एंटी रेबीज वैक्सीन के नाम पर 50 लाख रुपए बचाए जा सकते हैं।
गौरतलब है कि जिले में आवारा कुत्तों के काटने से प्रतिदिन संजय गांधी अस्पताल में 40 से 45 मरीजों को एंटी रेबीज के वैक्सीन लगाए जा रहे हैं। बताया गया है कि 300 से 400 रुपए कीमत पर मिलने वाला यह वैक्सीन संजय गांधी अस्पताल में फ्री में दिया जाता है। ऐसे में सालाना इस पर 50 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। हालांकि 95 फीसदी कुत्तों में रेबीज के लक्षण नहीं पाए जाते परंतु स्वास्थ्य विभाग इसे 100 फीसदी मानते हुए इस इंजेक्शन को लगा रहा है।
संक्रमित मरीज को बचाना मुश्किल
कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज के फैल जाने के बाद मरीज को बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। बताया गया है कि रेबीज के मरीज को हाइड्रोफोबिया हो जाती है जो पानी को देखकर डरता है। लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि अक्सर ऐसे मरीज बरसात के दिनों में सामने आते हैं, जो कुत्तों की तरह आवाज करके मृत्यु के आगोश में समा जाते हैं। हालांकि चिकित्सकों के अनुसार उन्हें हाइड्रोफोबिया हो जाती है जो पानी को देखकर डरते हैं। अक्सर बादल आने एवं बारिश होने के बाद वह भोंकने लगते हैं और उनकी मौत हो जाती है। बताया गया है कि रेबीज के लक्षण आने के बाद मरीज का गला चोक हो जाता है और उसके गले के अंदर पानी की एक बूंद नहीं जा पाती है और वह तड़प-तड़प कर मर जाता है। अभी तक इस बीमारी का कोई भी इलाज मेडिकल में नहीं ईजाद हो पाया है। यही वजह है कि कुत्तों के काटने के बाद उन्हें एंटी रेबीज का वैक्सीन दिया जाता है।
फसाद की जड़ नगर निगम
खबर में जितने भी आंकड़े दर्शाए गए हैं वह सिर्फ संजय गांधी अस्पताल के हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल एवं क्लीनिकों को भी सम्मिलित किया जाए तो रेबीज इंजेक्शन की खपत करोड़ों के पार चली जाएगी। परंतु अस्पताल के द्वारा खर्च किए जा रहे पैसे एवं आमजन को हो रही असुविधाओं जैसे सारी फसाद की जड़ सिर्फ ननि है। अगर विभाग आवारा कुत्तों की तादात में नियंत्रण लाने के लिए कोई योजना बनाता तो प्रतिदिन शहर के कई लोग डाग बाइट एवं रेबीज के संक्रमण से प्रभावित न होते। परंतु ननि इस मसले पर एक प्रतिशत भी गंभीर प्रतीत नहीं होता। बाकायदा आवारा कुत्तों का बधियाकरण कर इनकी तादात में कमी लाई जा सकती है पर विभाग को इस योजना को शुरू करने के लिए कोई उपाय ही नहीं है। आलम यह है कि प्रतिदिन लगभग 4 सैकड़ा लोग आवारा कुत्तों के शिकार हो रहे हैं। अगर ननि ने जल्द से जल्द इस समस्या पर अंकुश नहीं लगाया तो शहर में रहवासियों से ज्यादा जानवर घूमते दिखेंगे।