नहीं दे पाया स्वामित्व का प्रमाण, शहर की एक और जमीन शासकीय घोषित

सतना | शहर के एक और लाखों के भूखंड को न्यायालय कलेक्टर ने शासकीय घोषित कर दिया है। आराजी मुख्त्यारगंज की है जिसमें कलेक्टर ने अपीलार्थी द्वारा उक्त भूखंड पर अपना स्वामित्व प्रमाणित न कर पाने पर शासकीय दर्ज करने के निर्देश दिए हैंं। मुख्तयारगंज की यह वही आराजी है जिस पर खड़े भवन को जून 2019 में ढहाया गया था। 

अनावेदक नहीं दे पाया विधि सम्मत जवाब 
अनावेदक मनमोहन की ओर से आपत्ति का जवाब इस उल्लेख के साथ पेश किया गया कि नजूल अधिकारी सतना के यहां आराजी नं. 112/5 के संबंध में प्रकरण क्र. 16अ20 (1)/2016-17 चला है। जिसका निर्णय 16 मार्च को हुआ जिसमें नजूल अधिकारी ने रोशन लाल श्रीवास्तव को भू स्वामी होना प्रमाणित पाया गया। रोशन लाल द्वारा निष्पादित वसीयत में स्पष्ट लेख किया गया था कि जब तक वसीयतकर्ता रोशन लाल एवं कमलादेवी जीवित हैं तब तक आराजी व मकान उनके ही स्वामित्व में रहेगा। उनकी मृत्यु के बाद जवाब में मनमोहन ने यह भी कहा कि आपत्तिकर्ता केवल किराएदार है जिसे प्रकरण में आपत्ति प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है। 

अधिवक्ताओं ने दिए तर्क न्यायालय ने मप्र शासन दर्ज करो 
प्रकरण मे आवेदक एवं अनावेदक के तर्क सुने गए व प्रकरण में प्रस्तुत अधीनस्थ न्यायालय के आदेशों व संलग्न दस्तावेजो का परीक्षण किया गया। प्रश्नाधीन आराजी को शासकीय होना और अवैधानिक दस्तावेजों के आधार पर विक्रय कर अंतरित किए जाने के विरुद्ध शासन हित में अधीनस्थ न्यायालय को वस्तु स्थिति से अवगत कराया है और यदि लिमिटेशन के आधार पर प्रकरण को निरस्त किया जाता है तो निश्चित रूप से शासन हित प्रभावित हुआ है। प्रकरण के सम्पूर्ण तथ्योंं का परिशीलन करने के पश्चात कलेक्टर न्यायलय ने पाया कि प्रश्नाधीन आराजी वर्ष 1958-59 की खतौनी में निजी स्वामित्व में दर्ज थी।

तो मूल भूमि स्वामी के मृत्यु उपरांत मनमोहन सिंह के नाम जिस वारसाना के आधार पर नामान्तरित की गई उसकी वैधानिकता की पुष्टि सक्षम न्यायालय के द्वारा किए जाने के बाद ही नामान्तरण की कार्रवाई की जानी चाहिए। जबकि ऐसा नहीं किया गया। इन तर्को के साथ कलेक्टर न्यायालय ने वसीयतनामा के आधार पर दिया गया नामान्तरण आदेश एवं वसीयत ग्रहीता के विक्रय पत्र के आधार पर कराया गया नामान्तरण निरस्त कर दिया है तथा प्रश्नाधीन आराजी को मप्र शासन नजून भूमि दर्ज किए जाने का आदेश जारी किया है। 

क्या है मामला 
दरअसल, मुख्त्यारगंज की आराजी खसरा क्र. 112 रकवा 1 एकड़ 1 डि. मौजा सतना की जांच कराने हेतु एडवोकेट ददनराम त्रिपाठी ने आवेदन देते हुए बताया था कि उक्त आराजी आबादी भूमि थी जिसे किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना ही रोशन लाल श्रीवास्तव के नाम दर्ज कर दिया गया था। नजूल निर्माण के समय उक्त आराजी 57डी प्लाट नं. 13-14 में रोशन लाल कायस्थ का नाम दर्ज होने की जांच की मांग एडवोकेट ददनराम त्रिपाठी ने की थी।

न्यायालय को उन्होंने यह जानकारी भी दी कि रोशन लाल श्रीवास्तव की कोई संतान नहीं है जिसके कारण उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी कमला श्रीवास्तव के नाम नामान्तरण हुआ था। ददनराम ने सवाल उठाया था कि कमला श्रीवास्तव के नाम से मनमोहन श्रीवास्तव के नाम उक्त आराजी कैसे आई? इसकी जांच की जानी चाहिए। यह भी संज्ञान में लाया गया कि मनमोहन श्रीवास्तव ने 1800 वर्ग फिट जमीन बेंच दिया जबकि उक्त आराजी 1744 वर्गफिट ही दस्तावेजों मेंं मनमोहन के नाम दर्ज थी।