जबलपुर में दो वन क्षेत्रों में नहीं मिल सका एक भी गिद्ध
जबलपुर | जिले में गिद्धों की संख्या निराश करने वाली है। शहरी क्षेत्र ही नहीं, अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी गिद्धों के लिए भोजन और रहने का ठौर ढूंढना मुश्किल हो रहा है। मृत जानवरों पर निर्भर रहने वाले गिद्धों को पर्याप्त भोजन भी नहीं मिल पा रहा। गिद्धों की कई प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। वन विभाग के अधिकारियों की गणना में जिले में कुल 92 गिद्ध मिले हैं। इसमें 28 अवयस्क हैं। पिछले वर्ष 2020 में 77 गिद्धों की तुलना में आंकड़े भले ही उत्साह बढ़ाने वाली दिख रही हो, लेकिन तस्वीर भयावह है। जानकारी के अनुसार गणना के दौरान जिले में बरगी और सिहोरा क्षेत्र में एक भी गिद्ध नहीं मिले, जबकि बरगी व सिहोरा में वन क्षेत्र है।
दोनों ही जगह गिद्ध न मिलना अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा। जिले में सबसे अधिक गिद्ध पाटन व कुंडम में मिले हैं। कुंडम में पहली बार गिद्धों की गणना हुई है। आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में गिद्धों को पर्याप्त भोजन मिल पा रहा है। दूसरा कारण ये भी है कि यहां के जंगल में उन्हें पर्याप्त रहवास का स्थल भी मिल रहा है। यहां पांच आवास स्थल मिले हैं। वहीं, 31 गिद्धों में तीन अवयस्क मिले हैं।
ये प्रजातियां हो रही लुप्त
बियर्डेड वल्चर, इजिप्शियन वल्चर, स्बेंडर बिल्ड, सिनेरियस वल्चर, किंग वल्चर, यूरेजिन वल्चर, यूरेशियन ग्रिफन, जिप्सटेरनूईरोस्ट्रिस और वाइट बैक्स वल्चर, हिमालयन ग्रिफन ।
दूरबीन से देखना पड़ा
डीएफओ अंजना सुचिता तिर्की के मुताबिक वन विभाग की टीम स्थानीय वॉलंटियर्स के साथ बीते रविवार को पांच बजे जंगलों, पहाड़ों पर पहुंची तो बड़ी मुश्किल से गिद्ध नजर आए। डुमना के जंगल से लेकर कटंगी, कैमोरी, निगरी, बरगी, आदि क्षेत्रों में गिद्धों की गणना के लिए दूरबीन की मदद लेनी पड़ी। गिद्ध समूह में न होकर टुकड़े में नजर आए। गणना में जिले में कुल 92 गिद्ध ही सामने आए हैं। इसमें 28 अवयस्क हैं। जिले में कुल 18 घोंसला मिला है।
जिले में पाटन परिक्षेत्र में गिद्धों के सबसे अधिक 12 आवास स्थल मिले हैं। इसमें 24 अवयस्क और 29 वयस्क गिद्ध मिले हैं। पाटन जिले का खेती के लिहाज से सबसे समृद्ध क्षेत्र है। यहां पशुपालन भी बड़ी संख्या में है। इस कारण गिद्धों को मृत जानवरों के रूप में पर्याप्त भोजन भी मिल पा रहा है।
पाटन से लगे जंगल में इनके रहवास मिले हैं। वन्य प्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक गिद्धों की कम संख्या पर्यावरण के इको सिस्टम के गड़बड़ाने का संकेत है। गिद्ध पर्यावरण के इको सिस्टम के महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। इसी कारण इसे पक्षीराज का दर्जा प्राप्त है। वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉक्टर एबी श्रीवास्तव के मुताबिक गिद्धों के खाने के लिए न तो अब जानवर मिल रहे हैं और न ही उपयुक्त आवास हैं। शहरी क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण और पेड़ों के अंधाधुंध कटाई से उनका बसेरा छिनता जा रहा है। गिद्ध सबसे ऊंचाई व घने पेड़ों पर ही घोंसला बनाते हैं।