धरातल से गायब आजीविका मिशन की गरीबी उन्मूलन योजना
रीवा | जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन मजाक बनकर रह गया है। सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन की योजना मात्र परिकल्पना बनकर रह गई है। सालों से जो समूह बन चुके हैं उनके खाते नहीं खुल पाए हैं। जिसकी वजह से ग्रामीण महिलाएं जो अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं उन्हें मदद नहीं मिल पा रही है। जबकि इस अभियान का उद्देश्य ही यही है कि ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सक्षम बन सकें। गरीबी उन्मूलन के प्रमुख कार्य जैसे समूह का निर्माण करना, उन्हें शासन की गतिविधि योजनाओं का समूह के माध्यम से अमली जामा पहनाना, पशुपालन, कृषि, बिसातखाना, किराना, सब्जी उत्पादन, स्कूल ड्रेस, मास्क आदि कई तरह के काम किए जाते हैं। जिसमें ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं जो समूह से जुड़ी रहती हैं उन्हें रोजगार मिलता है। उनके घर का खर्च चलता है और वह समाज की तमाम पाबंदियों से उठकर खुद को सक्षम बनाती हैं। दुर्भाग्य है कि सरकार की ऐसी महत्वपूर्ण योजना का क्रियान्वयन सरकारी ढर्रे की तरह चल रहा है।
लोन लेने के नाम पर खोल रखी हैं माइक्रो फाइनेंस कंपनियां
जिले के कई विकासखण्डों में ग्रामीण आजीविका मिशन अभिलेखों में संचालित हो रहा है। फर्जी समूह बनाकर लोग खुद की माइक्रो फायनेंस कंपनी तक खोल चुके हैं जो लोन बांटने का काम करते हैं। महिलाओं के नाम पर व्यवसाय करने के हवाले से राशि निकाली जाती है और उस राशि को ब्याज में बांटा जाता है। अधिकारियों की मॉनीटरिंग की कमी के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है। विडम्बना की बात यह है कि जिन महिलाओं को वास्तविक में लोन की जरूरत है उन्हें ऋण नहीं मिलता और जो राष्ट्रीय आजीविका मिशन के नाम पर अवैध काम कर रहे हैं वह सांठगांठ से बड़े पैमाने पर ऋण निकाल रहे हैं और राशि का ब्याज खा रहे हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह से जुड़ी महिलाओं को लघु उद्योग शुरू करने के लिए लोन दिए जाने का प्रावधान है। कई समूहों से जुड़ी महिलाओं की यह शिकायत है कि जब भी वह अपनी विकासखण्ड अधिकारी से लोन के लिए आवेदन करती हैं तो फण्ड की कमी का हवाला दे दिया जाता है। वहीं इस मिशन से जुड़े बैंक भी लोन देने से कतरा रहे हैं। ऐसे में राष्टÑीय आजीविका मिशन के उद्देश्यों की पूर्ति कैसे हो पाएगी जब बैंक ही लोन देने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
3 हजार से ज्यादा समूहों के नहीं खुल पाए बैंक खाते
ग्रामीण राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत सरकार द्वारा एनजीओ के माध्यम से संविदा में अधिकारियों, कर्मचारियों की जिला स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर पर नियुक्ति की गई है जिन पर हर महीने लाखों रुपए की तनख्वाह बांटी जाती है। इन अधिकारियों का काम यही है कि गांव में समूह तैयार करवाएं और महिलाओं को सक्षम बनाने के लिए उन्हें लोन बांटें और बैंकों से संपर्क करें। विडम्बना की बात है कि जिले में 3157 समूहों के बैंक खाते अब तक नहीं खुले हैं। परियोजना अधिकारी इसकी वजह बैंक से सपोर्ट न मिलना बताया गया है। बैंक सरकारी योजनाओं में समर्थन के लिए सहयोग नहीं कर रहा है। ऐसे में संबंधित एजेंसी की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह खाते खुलवाने के लिए प्रयास करे।
समूह बनते जाते हैं, खाते खुलते जाते हैं। कुछ समूह के खाते बैंक के चलते पेंडिंग पड़े हुए हैं। जो तकरीबन ढाई हजार के करीब होंगे। स्टार्टअप फण्ड सीएलएफ एवं बीईओ के माध्यम से दिया जाता है। राशि आती जाती है और हम उसें ट्रांसफर करते हैं।
अजय सिंह, जिला परियोजना प्रबंधक, आजीविका मिशन