भगवान को भी नहीं बख्शे माफिया, गायब कर दी तीन एकड़ जमीन

रीवा | ढाई सौ वर्ष पहले महाराजा रघुराज सिंह द्वारा पुरी से लाए गए भगवान जगन्नाथ का मंदिर बिछिया में बनवाकर मंदिर के नाम 6.43 एकड़ की जमीन दान की थी। जो खसरे में दर्ज थी। जबकि आज की स्थिति में उक्त मंदिर की भूमि 3.60 एकड़ रह गई है। नजूल विभाग की मिलीभगत से भू-माफियाओं ने बेशकीमती करोड़ों की 3 एकड़ भूमि में फर्जी रूप से अपना आधिपत्य जमाकर पट्टेदार बन गए हैं। 

राजस्व एवं भू-माफियाओं की मिलीभगत के चलते शहर बेशकीमती जमीनों का किस कदर से  बंदरबांट किया गया है यह बिछिया में स्थित जगन्नाथ मंदिर की तीन एकड़ भूमि से लगाया जाता है। तीस वर्ष पूर्व जहां मंदिर के नाम 6.43 एकड़ की जमीन खसरे में दर्ज थी, वह अब मात्र 3.60 एकड़ बची है। शासकीय अभिलेखों से छेड़छाड़ कर मंदिर की तीन एकड़ भूमि भू-माफियाओं के हाथ चली गई। इसमें सबसे बड़ा दोष नजूल विभाग के अधिकारियों का माना जा रहा है। 

मंदिर के पुजारी  द्वारा इस संबंध में कई बार शिकायत किए जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। चौंकाने वाली बात यह है कि जहां तीस वर्ष पूर्व राजस्व अभिलेखों से जगन्नाथ मंदिर की तीन एकड़ भूमि गायब कर दी गई वहीं वर्तमान में मंदिर प्रांगण में चल रहे संस्कृत महाविद्यालय के अधिकारियों की मिलीभगत से नए राजस्व अभिलेखों में मंदिर की बची भूमि में संस्कृत महाविद्यालय का कब्जा दर्ज करा दिया गया। हैरानी वाली बात यह है कि जब मंदिर का निर्माण हुआ था उस समय संस्कृत महाविद्यालय नहीं था। मंदिर बनने के कई वर्षों बाद महाविद्यालय का निर्माण इसलिए कराया गया कि संस्कृत का अध्ययन करने  के बाद शास्त्रों के विद्वान बनेंगे। यही वजह रही कि मंदिर के प्रांगण में संस्कृत महाविद्यालय का निर्माण कराया गया था।

नजूल के रिकार्ड में पुराने आंकड़े
शहर की 1287 हेक्टेयर शासकीय भूमि मात्र नजूल के रिकार्डों में ही सीमित होकर रह गई है। बीस वर्ष पूर्व के रिकार्डों को अगर गौर किया जाए तो जो आंकड़े अभिलेखों में अंकित किए गए थे, वही आंकड़े आज भी दिख रहे हैं। ताज्जुब की बात यह है कि इन आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो शहरी क्षेत्रों में शासकीय जमीनों का कहीं नामोनिशान ही नहीं है। भू-माफियाओं एवं नजूल के अधिकारियों की सह पर किए गए जमीन के इस फर्जीवाड़े पर अगर जांच किया जाए तो कई चौंकाने वाले रहस्य सामने आएंगे। सूत्रों की माने तो कई ऐसी शासकीय जमीनें हैं जो खसरे से गायब कर उनमें निजी व्यक्ति का आधिपत्य दर्ज कर दिया गया है। जबकि कॉलम नं. 3 में अंकित भूमि स्वामी को उक्त भूमि कैसे मिली है, इसका उल्लेख नामांतरण पंजी में दर्ज नहीं है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त शासकीय भूमि अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे लोगों को दे दी गई जिनसे अधिकारियों को कुछ फायदा हुआ होगा। 

संस्कृत महाविद्यालय जमा रहा आधिपत्य
जगन्नाथ मंदिर की तीन एकड़ भूमि नक्शे से गायब कर दिए जाने के बाद बची भूमियों पर संस्कृत महाविद्यालय अपना आधिपत्य जमा रहा है। वर्तमान समय में मंदिर के नाम से 3.60 एकड़ भूमि के कॉलम नम्बर 12 में संस्कृत महाविद्यालय  का नाम जोड़ दिया गया है। ताज्जुब की बात यह है कि खसरे के कॉलम नम्बर 3 में भूमि स्वामी का नाम होता है जबकि उक्त भूमि मंदिर की होने के बाद भी राजस्व अधिकारियों द्वारा खसरे के कॉलम नम्बर 12 में संस्कृत महाविद्यालय का कब्जा दर्ज किया जाना किसी के गले नहीं उतर रहा है। इस कब्जे के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि ढाई सौ वर्ष पूर्व स्थापित जगन्नाथ मंदिर की भूमि हड़पने में प्रशासनिक अधिकारियों की भी मिलीभगत है।