भगवान जगन्नाथ हुए पूर्णतः स्वस्थ, 27 जून को निकलेगी भव्य रथयात्रा, आज औषधि महास्नान
15 दिनों तक चला आयुर्वेदिक उपचार, नगर वैद्य ने की सेवा

रीवा, जिले में पिछले 15 दिनों से बीमार चल रहे भगवान जगन्नाथ स्वामी अब पूर्णतः स्वस्थ हो गए है। बुधवार को नगर वैद्य ओमप्रकाश पंसारी द्वारा औषधीय उपचार पूर्ण किए जाने के बाद भगवान को स्वास्थ्य लाभ हुआ। बीमार होने के दौरान भगवान को ठंडई की औषधि दी जा रही थी, जिसकी अवधि अब पूरी हो चुकी है दीनानाथ शास्त्री ने बताया कि भगवान के पूर्ण स्वस्थ होने के उपलक्ष्य में 26 जून को औषधि महास्नान कर आयोजन किया जाएगा। इसके बाद भगवान को नवीन वस्त्र धारण कराए जाएंगे। 27 जून को विशेष श्रृंगार होगा और उसी दिन शाम 4 बजे लक्ष्मणबाग संस्थान से भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकाली जाएगी। रथयात्रा किला परिसर से होते हुए उपरहटी, फोर्ट रोड, जय स्तंभ, गायत्री मंदिर मार्ग से होती हुई मानस भवन पहुंचेगी, जहां भगवान का रात्रि विश्राम होगा। अगले दिन यात्रा पुनः लक्ष्मणबाग लौटेगी। शास्त्री ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के बीमार पड़ने, उपचार और स्वस्थ होने के बाद रथयात्रा निकालने की यह परंपरा पिछले 33 वर्षों से निभाई जा रही है। इस मौके पर ओमप्रकाश पंसारी, उपदेश पंसारी, श्रेयस गुप्ता, योगेंद्र द्विवेदी सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहे।
350 साल पुरानी परंपरा
शहर के लक्ष्मणबाग स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में सदियों पुरानी एक अनोखी परंपरा आज भी जीवंत है। यहां भगवान जगन्नाथ के साथ विराजमान हैं बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा। इस पवित्र स्थल पर लगभग साढ़े तीन सौ वर्षों से चली आ रही एक खास परंपरा आज भी निभाई जा रही है,हर वर्ष विशेष तिथियों पर भगवान को शारीरिक शांति और ऊर्जा प्रदान करने के उद्देश्य से एक आयुर्वेदिक मिश्रण अर्पित किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे पथ कहा जाता है।इस सेवा को निभा रहे हैं राजवैद्य ओम प्रकाश पसारी, जो पिछले 33 वर्षों से इस परंपरा के संरक्षक बने हुए हैं। 71 वर्षीय वैद्य बताते हैं कि यह औषधि केवल परंपरा नहीं, आस्था और आयुर्वेद का समन्वय है।उन्होंने बताना कि दिव्य औषधि में काजू-किसमिस, बादाम के अलावा यासखस, गुलाब के फूल, काली मिर्च, इलायची, सौंपा को शामिल किया जाता है। इसके सेवन के बाद भगवान स्वस्थ होते हैं ऐसी रीति है।
शहर भ्रमण यात्रा के लिए रथ तैयार
जगन्नाथ धाम से यात्रा 27 जून को लक्ष्मण बाग से निकलकर किला पहुंचेगी, जिसके बाद में शहर के निर्धारित मार्गो से भ्रमण करते हुए मानस भवन में विश्राम लेंगे। आपको बता दें कि भगवान के इस वार्षिक भ्रमण को लेकर उसका रथ तैयार कर लिया गया है। वहीं यात्रा को लेकर एक बात उलेखनीय है कि राजकाल के दौरान इसी रथ को खींचने के लिए वाहन की जगह रस्से होते थे तथा तीन मोटे-मोटे रस्से बांधे जाते थे। गाजे-बाजे के साथ श्रद्धालुओं द्वारा रस्सा खींचते हुए उन्हें पूरे शहर का भ्रमण कराते थे। अब आधुनिकता के बीच रस्सा खींचने की परंपरा विलुप्त हो चुकी है।