नैक के लिए नई पौध को जगह, फिर बनी टीम
सतना | जिले के सबसे बड़े सरकारी कॉलेज में पिछले ढाई सालों से नैक का मूल्यांकन नहीं हो सका है लेकिन अब नैक का मूल्यांकन कराने के लिए कॉलेज प्रबंधन ने तेजी से तैयारियां शुरू कर दी है। इसके लिए शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नई टीम बनाई गई है। वर्तमान में प्रभारी प्राचार्य डॉ. राधेश्याम गुप्ता ने कॉलेज का नेतृत्व मिलने के बाद एक बड़ा कदम उठाया है। नई प्रोफेसर्स को भी टीम में स्थान दिया है।
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो गणित के हेड आॅफ डिपॉर्टमेंट डॉ. आरएस पटेल को आईक्यूएसी को संभालने के लिए संयोजक बनाया गया है। इसी तरह फिजिक्स के प्राध्यापक डॉ. सुशील शर्मा को अहम जिम्मेदारी देते हुए सह-संयोजक बनाया गया है। बॉटनी विभाग से डॉ. अर्चना निगम को भी शामिल किया गया है। साथ ही मो. इरशाद खान और रवि कुमार यादव को भी जगह दी है। आईक्यूएसी की बारीकियां और खामियों को जानने के लिए अंग्रेजी भाषा का उपयोग ज्यादा होता है इसलिए प्रभारी प्राचार्य डा. गुप्ता ने आईक्यूएसी टीम में दो प्राध्यापक अंग्रेजी भाषा के शामिल किए हैं। इसमें डॉ. आरपी यादव और हिन्दी भाषी रचयिता डॉ. हरेश्वर राय को स्थान दिया है।
4 साल से बिना नैक के चल रहा महाविद्यालय
बताया जाता है कि स्वशासी कॉलेज के नैक मूल्यांकन को एक्सपायर हुए करीब 4 साल हो गए इसके बाद भी काम नहीं हो सका। नैक से बी ग्रेड के तमगाधारी इस कॉलेज का रिन्यूवल 2018 में ही हो जाना चाहिए था लेकिन प्राचार्यों का आना- जाना और आईक्यूएसी के बदलते प्रभारियों के चक्कर में यह अटका रहा। आईक्यूएसी टीम को बेकाम पारिश्रमिक दिया गया। उस टीम से पहले मूल्यांकन के लिए महाविद्यालय ने लाखों रुपए खर्च भी किए थे। यह राशि दोबारा खर्च किए जाने की तैयारी है वजह है कि आईक्यूएसी के लिए नई टीम तैयार की गई है।
जानकारी के मुताबिक शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सतना की अंदरूनी कमेटी में से एक आईक्यूएसी नैक टीम बनाई गई थी। तब इसके संयोजक अंंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ. पद़म कुमार जैन को बनाया गया था। इनके संयोजकत्व में मूल्यांकन समिति ने कई क्वेरियां लगाई थीं। इन क्वेरियों के बाद इनका प्रभार बदल दिया गया और नैक का मूल्यांकन अटक गया। इस बात के दो साल से भी अधिक हो गए। इस दौरान समिति ने दो से ढाई लाख रुपए तक खर्च कर दिए। सवाल ये है कि फेल्यूअर के बाद भी संयोजक रहे डॉ. जैन को परीक्षा एवं गोपनीय विभाग दे दिया गया। यह काम तब के प्रभारी प्राचार्य रहे डॉ. जीपी पांडेय ने जाते-जाते किया। सवाल यह है कि इस धन राशि के उपयोग- अनुपयोग पर उगली क्यों नहीं उठाई गई? ऐसा क्या था कि कमेटी बदली गई? क्या डॉ. जैन को फेल्यूअर के बाद भी इनाम दिया गया?