SIR पर उमंग सिंघार का हमला: चुनाव आयोग और भाजपा पर पारदर्शिता व निष्पक्षता को लेकर लगाए गंभीर आरोप
भोपाल में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दूसरे चरण पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग और भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए।
 
                                भोपाल : नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दूसरे चरण को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और चुनाव आयोग तथा भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए। चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर 2025 को SIR के दूसरे चरण की घोषणा की है, जो 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 4 नवंबर 2025 से शुरू होकर 7 फरवरी 2026 तक चलेगा। आयोग का दावा है कि 51 करोड़ मतदाताओं की घर-घर गिनती मात्र 30 दिनों (4 नवम्बर से 4 दिसंबर 2025) में पूरी कर ली जाएगी। उमंग सिंघार ने सवाल उठाया कि इतनी विशाल और जटिल प्रक्रिया इतने कम समय में कैसे पूरी हो सकती हैं यह या तो आयोग की ज़मीनी समझ की कमी दर्शाता है या फिर नीतिगत जल्दबाज़ी, जिससे लाखों वैध मतदाता सूची से छूट सकते हैं।
सिंघार ने यह भी पूछा कि केवल 12 राज्यों को ही इस प्रक्रिया में क्यों शामिल किया गया और बाकी राज्यों को क्यों नहीं। चुनाव आयोग ने इन चयन मानदण्डों का कोई पारदर्शी खुलासा नहीं किया है, जिससे निर्णय की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। असम को SIR से बाहर रखने के पीछे NRC का हवाला देना भी संदिग्ध बताया गया, क्योंकि NRC नागरिकता से जुड़ी प्रक्रिया है जबकि SIR मतदाता अधिकारों से संबंधित है। ऐसे विशेष व्यवहार से आयोग की मंशा पर पक्षपात की आशंका बढ़ती है।
सिंघार ने कहा कि यदि हर वर्ष किया जाने वाला सामान्य पुनरीक्षण (SSR) पर्याप्त नहीं रहा, तो पहले उसकी विफलताओं का विश्लेषण होना चाहिए था। SSR की समीक्षा किए बिना SIR लागू करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि SIR लागू होने के बाद कई बार सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है, लेकिन आयोग ने अब तक अपने “सफलता” के दावों को साबित करने के लिए कोई पारदर्शी डेटा प्रस्तुत नहीं किया। बिहार में हुए SIR के दौरान मतदाता सूची में “विदेशी” प्रविष्टियों और गलतियों के उदाहरण सामने आए, लेकिन उनकी वास्तविक संख्या आयोग ने नहीं बताई।
सिंघार ने यह भी सवाल उठाया कि जब राष्ट्रीय जनगणना अक्टूबर 2026 में शुरू होने वाली है, तो SIR को इतनी जल्दबाज़ी में क्यों लाया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह जल्दबाज़ी आयोग की नीयत पर भी सवाल खड़े करती है। उन्होंने विशेष रूप से चिंता जताई कि करीब 22% आदिवासी आबादी, जो अधिकतर दूरदराज़ और दुर्गम इलाकों में रहती है, इस प्रक्रिया से प्रभावित हो सकती है। डिजिटल और दस्तावेज़ी सीमाओं के कारण लाखों आदिवासी मतदाता सूची से हट सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आयोग ने SIR के लिए जिन 13 दस्तावेजों को स्वीकार्य माना है, उनमें Forest Right Certificate भी शामिल है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने मार्च 2025 तक 3 लाख से अधिक वनाधिकार दावे खारिज कर दिए हैं। ऐसे में जिनके पास प्रमाणपत्र नहीं हैं, उनके मतदाता अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं। इसके अलावा, 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्यप्रदेश के लगभग 25 लाख लोग अन्य राज्यों या शहरों में प्रवासी मजदूर के रूप में रहते हैं। इतनी तेज़ और सीमित समय की गिनती के कारण इनके नाम भी मतदाता सूची से हटने का जोखिम है, जैसा कि बिहार में देखा गया था।
सिंघार ने कहा कि यह समस्या केवल आदिवासी समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि दलितों, अल्पसंख्यकों और छोटे OBC समुदायों को भी प्रभावित कर सकती है, जो पहले से ही दस्तावेज़ी असमानताओं से जूझ रहे हैं। बिहार के SIR के बाद लगभग 47 लाख मतदाता सूची से हटाए गए थे; यदि यही पैटर्न अन्य बड़े राज्यों में दोहराया गया तो करोड़ों मतदाता नाम सूची से बाहर हो सकते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि SIR में नाम हटने पर मतदाता को खुद यह साबित करना होगा कि वह पात्र है। अपील प्रक्रिया ERO से लेकर DM और फिर CEO तक बेहद जटिल है, जिससे मेहनतकश और हाशिए पर रहने वाले लोगों पर भारी कागजी बोझ पड़ेगा।
उमंग सिंघार ने याद दिलाया कि 19 अगस्त 2025 को उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मध्यप्रदेश में चल रही “वोट चोरी” का खुलासा किया था और चुनाव से पहले मतदाता सूची में असामान्य व संदिग्ध बढ़ोतरी के ठोस आंकड़े पेश किए थे। केवल दो महीनों (अगस्त से अक्टूबर 2023) में 16 लाख से अधिक नए मतदाता जोड़े गए यानी प्रतिदिन 26,000 से अधिक नाम जो सामान्य नहीं है। बावजूद इसके, न तो मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) और न ही भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने इस पर कोई स्पष्टीकरण दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि 9 जून 2023 को ECI ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम, राजस्थान और तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को यह निर्देश दिया कि मतदाता सूची में हुए जोड़, हटाव और संशोधन वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं किए जाएँ और यह जानकारी सार्वजनिक न की जाए। सिंघार ने इसे मतदाता सूची में गड़बड़ी छुपाने की साजिश बताया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में उन्होंने कहा कि जब आयोग ने पुरानी गड़बड़ियों पर कोई जवाब नहीं दिया, तो SIR जैसी प्रक्रिया पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि SIR की मौजूदा प्रक्रिया और समयसीमा मतदाता अधिकारों और कमजोर वर्गों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर सीधा खतरा है। यह मतदाता सूची की “सफाई” नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल अधिकारों की कटौती और नियंत्रण का प्रयास है। उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा कि 12 राज्यों के चयन के मानदंड क्या थे, बिहार में पाई गई गलत प्रविष्टियों की वास्तविक संख्या क्यों नहीं बताई गई, और आखिर जनगणना से पहले इतनी जल्दबाज़ी में SIR लाने की क्या जरूरत थी।
 
                     sanjay patidar
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