भूमाफिया पर वन अधिकारी मेहरबान, राजस्व अमले की भूमिका भी संदिग्ध
सतना | वन संरक्षण के नाम पर हर साल करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाले वन महकमे के अधिकारी भूमाफियाओं से डंके की चोट पर अतिक्रमण करा रहे हैं। वन अधिकारियों की लापरवाह कार्यशैली से वनभूमियों पर चौतरफा अतिक्रमण हो रहा है और वन अधिकारी रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए हैं। चित्रकूट स्थित वन भूमि पर एक हिस्ट्रीशीटर द्वारा किए गए अतिक्रमण व वन भूमि पर बनाए गए भवन को लेकर इन दिनों चित्रकूट से लेकर सतना तक के प्रशासनिक गलियारों तक में चर्चाओं का बाजार गर्म है लेकिन वन अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगी है।
सूत्रों का कहना है कि वन अधिकारियों को साधकर भूमाफिया ने डंके की चोट पर वन भूमियों पर अतिक्रमण कर रखा है । इसी प्रकार चित्रकूट स्थित कलेक्टर प्रबंधक दर्ज देवभूमि पर इसी भूमाफिया के अतिक्रमण को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं तथा राजस्व अमले की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है।
हाईकोर्ट के निर्देश पर ढहा था अतिक्रमण
दरअसल वर्ष 2015 में चौबेपुर चित्रकूट निवासी कमलेश प्रसाद पांडे तनय बद्री प्रसाद पांडे ने हाईकोर्ट में याचिका क्रमांक-5497/2015 पीआईएल लगाई थी जिसमें मप्र शासन, कलेक्टर सतना, डीएफओ, फारेस्ट रेंज आफीसर, यज्ञदत्त शर्मा और गुलाब को पार्टी बनाया गया था। हाईकोर्ट में याचिका लगाते हुए कमलेश प्रसाद पांडे ने बताया था कि आराजी क्रमांक-1072 वन भूमि है जिस पर यज्ञदत्त शर्मा व अन्य लोगों ने कब्जा जमा रखा है। उस दौरान जांच में पाया गया था कि वन विभाग के एक बड़े भूखंड पर यज्ञदत्त शर्मा ने कब्जा जमा रखा है।
तमाम दस्तावेजों का परीक्षण व सभी तर्कों को सुनने के पश्चात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जज केके त्रिवेदी की अदालत ने फैसला दिया था कि अविलंब वन भूमि का अतिक्रमण ढहाया जाय। हाईकोर्ट के आदेश पर अमल हुआ और वनभूमि के अतिक्रमण को 24 नवंबर 2016 को प्रशासन ने बड़ी बड़ी मशीनें लगाकर ढहा दिया। विडंबना की बात यह रही कि वन विभाग का एक बड़ा भूखंड अतिक्रमण से मुकत कराया गया बावजूद इसके वन अधिकारियों ने उस भूखंड को सुरक्षित करने के उपाय नहीं किए। तत्कालीन कलेक्टर के तबादले के बाद पुन: उसी वन भूमि पर अतिक्रमण जमाना शुरू कर दिया गया।
बताया जाता है कि इस पूरे प्रकरण की जानकारी वन अधिकारी राजेश राय को है लेकिन वे क्यों खामोश हैं, यह रहस्य ही बना हुआ है, जबकि हाल ही में आपराधिक वारदात में संलिप्त पाए गए यज्ञदत्त शर्मा के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण भी दर्ज कर रखा है और उसके जिलाबदर करने की तैयारी भी की जा रही है किंतु वन विभाग का उसे पूरा संरक्षण मिला हुआ है? यह विडंबना ही है कि वन भूमि पर हुण् अतिक्रमणों को हटाने के लिए हाईकोर्ट को निर्देश देने पड़ते हैं जो जिले के वन अधिकारियों के मुंह में एक तमाचा है।
घट रहा वनभूमियों का रकबा
जंगल बढ़ाने के नाम पर हर वर्ष लाखों-करोड़ों का बजट पानी में बह रहा है। रकबा बढ़ने के बजाय लगातार घट रहा है। एक तरफ हजारों एकड़ जमीन अतिक्रमण की चपेट में है, तो दूसरी तरफ विभागीय अधिकारियों ने अतिक्रमण करा वन भूमियों को खुर्द बुर्द कराना शुरू करा दिया है। हालात यह हैं कि 2 लाख 26 हजार 500 हेक्टेयर वाले सतना के वन क्षेत्र में 16867 हेक्टेयर में अतिक्रमण है, जिसे मुक्त कराने में वन विभाग की दिलचस्पी नहीं है।
उदाहरण के लिए मझगवां वन परिक्षेत्र स्थित प्राचीन घोड़ादेवी मंदिर का अतिक्रमण संत-महात्माओं द्वारा आंदोलन करने, ज्ञापन देने व विरोध जताने के बाद भी नहीं हटाया जा सका। वन भूमि पर ‘जंगल में मंगल ’ करने ताना निजी भवन वन अधिकारियों के रवैये को प्रदर्शित करता है। अगर इसी तरह अतिक्रमण कराने का सिलसिला जारी रहा तो जंगल नहीं बचेंगे।वन क्षेत्र की 42 हजार एकड़ भूमि अतिक्रमण की जद में है। हजारों एकड़ वन भूमि को खेत के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है, तो कहीं निर्माण करा लिए गए हैं। बताया जाता है कि ऐसे बड़े अतिक्रमणों में वन विभाग के आला अधिकारी संदिग्ध भूमिका निभा रहे हैं, जिससे जिले में वनभूमि का रकबा लगातार घटता जा रहा है।
हम इस मामले को लेकर संजीदा हैं। इसकी पूरी जानकारी लेकर पुलिस के सहयोग से धार्मिक स्थल के अतिक्रमण हटाए जाएंगे। धार्मिक और सार्वजनिक उपयोग के स्थलों पर अतिक्रमण को बर्दास्त नहीं किया जाएगा। हमने ब्यौरा जुटाना प्रारंभ कर दिया है।
अजय कटेसरिया, कलेक्टर
यदि हमसे वन विभाग या राजस्व विभाग धर्मनगरी की जमीनों का अतिक्रमण हटाने किसी प्रकार की मदद मांगता है तो बल संसाधन मुहैया कराया जाएगा। पुलिस विभाग ने आपराधिक मामलों में कार्रवाई की है, जिलाबदर का प्रस्ताव भी तैयार किया है, लेकिन जमीन के मामले में संबंधित विभाग की मांग पर ही बल मुहैया कराया जा सकता है।
धर्मवीर सिंह, पुलिस अधीक्षक
प्रशासन को सामने आकर कार्रवाई करना चाहिए। यह दुर्भाग्य ही है कि न्यायालय के आदेश के बाद भी मुखारबिंद की जमीन पर अतिक्रमण हो गया, इससे भक्तों में निराशा और संतों में गुस्सा है। प्रशासन ही यह जमीन ले ले और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं विकसित कर दे तो बेहतर है।
सत्यप्रकाश, महंत