विन्ध्य चेंबर: ...शुल्क जमा करो या सदस्यता गंवाओ
सतना | साढ़े चार साल पहले अंचल की शीर्ष व्यापारिक संस्था में मतदान कर चुके पौने दो सौ के करीब व्यापारियों की सदस्यता खतरे में पड़ गई है। इनमें से 84 तो ऐसे है जिनका न तो प्रवेश शुल्क का अता पता है और न ही उनकी सदस्यता शुल्क ही जमा है। इसके अलावा 91 लोगों की सदस्यता शुल्क जमा नहीं है। पहले तो संस्था द्वारा उनसे पत्राचार करके रसीदों की मांग की गई और न मिलने पर साफ कह दिया है कि वे संस्था के सदस्य तभी रह सकते हैं जब उनके द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करा दिया जाएगा। वैसे इस मामले में संस्था को 3 लाख 66 हजार से अधिक की चोट पड़ चुकी है जिसका अभी तक यह फैसला नहीं हो सका कि इसकी भरपाई कहां से होगी।
विंध्य चेम्बर में सदस्य बनने के लिये तब के टिन नंबर के साथ ही फर्म के नाम का चेक लिया जाता है। लेकिन संस्था के 2016-18 के लिये हुए चुनाव में 65 ऐसे लोगोंने मतदान कर दिया जिनका शहर में कही रता पता नहीं है। चुनाव के समय की आपत्ति और उसके बाद पूर्व अध्यक्ष लखन अग्रवाल की सक्रियता से कई खुलासे हुए। उनके द्वारा चेम्बर से पूछा गया था कि कितने सदस्यों का प्रवेश व सदस्यता शुल्क जमा नहीं है।
इसके बाद कार्यकारिणी में हुए निर्णय के बाद जब जानकारी एकत्र करने के प्रयास हुए तो नये सदस्यता रजिस्टर, नये सदस्यों के फार्म ही नहीं कुछ रसीदें भी गायब मिलीं। बाद में बैकों से डिटेल लेने के बाद यह पता चला कि 84 सदस्य ऐसे हैं जिनके नाम 2016-18 की मतदाता सूची में शामिल थे पर इनके प्रवेश व सदस्यता शुल्क जमा नहीं थे। इन्हीं में 65 ऐसे भी थे जो शहर में खोजने के बाद भी नहीं मिले।
इसमें यह भी साफ है कि तत्कालीन कार्यकारिणी द्वारा शुल्क जमा न करके संस्था को 2 लाख 94 हजार की चपत लगाई गई है। यह जानकारी जाहिर होने के बाद श्री अग्रवाल द्वारा एक और जानकारी मांग ली गई कि 2018-20 की मतदाता सूची में शामिल कितने सदस्यों का सदस्यता शुल्क नहीं जमा पाया गया। खोज से पता चला कि 91 सदस्य ऐसे हैं जो जिनका 800 रुपये वाला शुल्क जमा नहीं है। शुल्क की राशि भी 72 हजार 800 रुपये है।
चौकाने वाली बात यह है कि पूर्व चेम्बर अध्यक्ष श्री अग्रवाल द्वारा कई चरणों में पूछे गये सवालों से संस्था की प्रतिष्ठा पर ही आंच आ गई। मौजूदा कार्यकारिणी की सहमति से जांचें हुईं। अंत में यह तय हुआ कि संबंधित सदस्यों से ही शुल्क जमा होने का सबूत मांग लिया जाए लेकिन किसी भी सदस्य ने सबूत नहीं दिखाए। बहरहाल संस्था ने यह तय किया है कि जिनका शुल्क जमा होगा वे ही सदस्य रहेंगे। चिन्हित किये गये सदस्यों को भी पूरा शुल्क जमा करना पड़ेगा।
मालूम हो कि चेम्बर में 2014-16 के लिये हुए मतदान में 1384 सदस्य थे जो दो साल बाद के 2016-18 में बढ़कर 1596 हो गये। जबकि इस बीच नये सदस्य सिर्फ 118 ही बने थे। इस बार शिकायत हुई जिसका असर यह हुआ कि जब सत्र 2018-20 की मतदाता सूची बनी तो सदस्यों की संख्या 400 के करीब घटकर 1229 में आ गई। जबकि इस दौरान 75 नये सदस्य भी बने थे।
 
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