इतिहास के रहस्यों की गुत्थी सुलझाएगा मनौरा, एसडीएम ने जांची 14 सौ साल पुरानी विष्णु प्रतिमा
सतना | कैमोर पहाड़ पर घुनवारा उप तहसील के अंतर्गत बसे रहस्यमयी गांव मनौरा में प्रशासन ने अंतत: दस्तक दे ही दी। पुरातात्विक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण इस गांव में बुधवार को मैहर एसडीएम सुरेश अग्रवाल व जनपद सीईओ अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ पहुंचे। उन्होने वहां शिव की खंडित प्रतिमाएं और विशाल शिव लिंग बड़ी तादाद में बिखरे देखे। इसके अलावा वहां 1400 साल प्राचीन पत्थर की विष्णु प्रतिमा भी प्रशासनिक अमले को मिली जिसे सुरक्षित करने के लिए भी मंत्रणा की गई। एसडीएम ने प्रतिमा की प्राचीनता को देखते हुए पुरातत्व विभाग के अधिकारियों से चर्चा कर वहां बिखरी धार्मिक व पुरातात्विक संपदाओं की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी तैनात करने की सलाह दी है। गौरतलब है कि 4 नवंबर के अंक में स्टार समाचार ने
खुदाई में मिल चुके प्राचीन अवशेष
केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने बीते कुछ बरसों में यहां खुदाई भी की है। धरती के गर्भ से अनेकों खंडहरनुमा मंदिरों के अवशेष निकले। शिव साधकों द्वारा बनाई गई संरचनाएं बाहर आई। कुछ को सहेजा गया तो कुछ पर ग्रामीणों ने आस्था के नाम पर कब्जा कर लिया। इतना कुछ मिलने के बाद भी आगे की खुदाई बंद कर दी गई। पुणे से आई पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम ने भी मनौरा के गर्भ में दफन सभ्यता को महत्वपूर्ण बताया है। बावजूद, आगे का काम बंद कर टीम पलायन कर गई। पुरातात्विक विशेषज्ञों की मानें तो यदि मनौरा को पूरी तरह एक्सप्लोर(अन्वेषण ) किया जाय तो यहां मोहनजोदारो जैसी मानव सभ्यता के प्रमाण मिल सकते हैं। इन्ही विशेषज्ञों के एक दावे की मानें तो मनौरा पहाड़ी के गर्भ में कोई न कोई प्राचीन शहर निकल सकता है।
‘कलचुरी नरेश और उनका कार्यकाल ’में भी उल्लेख
मनौरा का उल्लेख मप्र शासन साहित्य परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘कलचुरी नरेश और उनका कार्यकाल ’में भी किया गया है। जिसके अनुसार मैहर तहसील के ग्राम मनौरा में हजारों की संख्या में खंडहर में तब्दील मंदिर और शिव लिंग के अवशेष बिखरे पड़े हैं। कुआं की खुदाई के दौरान अति प्राचीन विशाल शिवलिंग मिला है जिसमें भगवानशिव की मुखाकृति उकेरी गई है। इसके अलावा अनगिनत मूर्तिखंड, गुफा, दीर्घाकार चहारदीवारी और खंडहर मौजूद हैं। यहां बिखरे अवशेष प्रमाण हैं कि, कभी यहां विशाल और भव्य शिवालय रहे हैं। उनसे लगी हुई मठ की भूमि थी। जिसके अवशेष चहार दीवारी के रूप में दिखाई पड़ते हैं। पहाड़ी पर एक कुआं भी है। नीचे तालाब है।
ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि, एक हजार वर्ष पूर्व मनौरा में मत्तमयूर मठ की स्थापना की गई थी। प्रभावशिव, ईश्वर शिव, हृदयशिव, प्रशांत शिव और अघोरशिव शैवाचार्याें ने इसकी स्थापना की। उन्हें दान में कई गांव मिले। इसके बाद मत्तमयूर मठ का नाम बदलता गया। उसे कभी मयूरमठ तो कभी मन्नूरमठ या मन्नौरगढ़ कहा गया। अब यही मनौरा के नाम से जाना जाता है। किवदंती है कि, नर्मदा क्षेत्र में कभी एक शैव्य आया था। वह आसपास के गांवों में मन्नौरमठ और मन्नौरगढ़ के बारे में पूछता फिर रहा था। उसे बताया गया कि इस नाम का कोई गांव नहीं है।
इसी बीच वह ग्राम मनौरा आ पहुंचा। जब उसने पहाउÞी पर गुफा को देखा तो हर्षातिरेक से चिल्ला उठा- इसी को तो ढ़ूंढ रहे थे। कुछ दिनों तक वह उस गुफा में रहा फिर कब कहां चला गया कियी को पता नहीं। लोगों का मानना है कि, संभव है कुछ शैवाचार्यों के पास गुरू परंपरा से इसके बारे में जानकारी हो और उसके आधार पर वो अपने पूर्वजों की साधना स्थली को तलाशते फिर रहे हों। बहरहाल, मनौरा के रहस्यों को उजागर किए जाने की जरूरत है। उसके गर्भ में दबी सभ्यता और शैव संस्कारों को बाहर लाना जरूरी है।
प्राचीन प्रतिमाओं की सूचना मिलने पर हमने मनौरा का निरीक्षण किया है। यहां बिखरी प्रतिमाएं निश्चित तौर पर पुरातात्विक महत्व की हैं जिसके संबंध में पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को जानकारी दी गई है। हमारा प्रयास इस आर्कियोलाजिकल साइट के अन्वेषण और संरक्षित करने का होगा।
सुरेश अग्रवाल, एसडीएम मैहर