विंध्य की राजनीति में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की असली कहानी
6 जून 1952 रीवा की तपती दोपहरी में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू एक चुनावी सभा में थे। मंच से दिए गए उनके बयान ने वहां मौजूद भीड़ को सन्न कर दिया, और उसी पल एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत हुई. यह कहानी है अर्जुन सिंह की कांग्रेस उम्मीदवार राव शिव बहादुर सिंह के बेटे की, जिन्होंने आगे चलकर मध्यप्रदेश की राजनीति में दबदबा बनाया.
 
                                    6 जून 1952. रीवा की तपती दोपहरी में चुनावी जोश चरम पर था…मंच पर खड़े थे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मंच के नीचे थे चुरहट से कांग्रेस उम्मीदवार राव शिव बहादुर सिंह.. नेहरू ने माइक संभाला, तो कुछ ऐसा कह दिया कि..भीड़ सन्न हो गई. और यहीं से जन्म हुआ एक नए खिलाड़ी का..नाम था अर्जुन सिंह, जो उन्हीं शिव बहादुर सिंह के बेटे थे. अर्जुन सिंह का एक और जोड़ीदार था. जो अपनी जमीन तलाश कर रहा था.. नाम था श्रीनिवास तिवारी. तेजतर्रार समाजवादी, जुझारू वक्ता, जिनका सफेद घना बाल, बुलंद आवाज और बेजोड़ हाजिरजवाबी ने उन्हें बना दिया था विंध्य का सफेद शेर. दोनों एक ही क्षेत्र से थे. और दोस्त भी... लेकिन सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए दादा बनाम दाऊ की इस जंग ने राजनीति को ठाकुर vs ब्राह्मण बना दिया. दादा और दाऊ याद रखियेगा कहानी में बार-बार इस नाम का जिक्र होगा..दादा मतलब श्री निवास तिवारी, दाऊ यानी अर्जुन सिंह.

प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रीवा में विशाल चुनावी सभा को संबोधित करने आए थे.. घटना याद रखिएगा. पंडित नेहरू के साथ कप्तान अवधेश प्रताप सिंह, पंडित शंभूनाथ शुक्ला मंच पर थे.. मंच के नीचे खड़े थे चुरहट विधानसभा से कांग्रेस उम्मीदवार राव शिव बहादुर सिंह. और उनके ठीक बगल में,, दरबार कॉलेज, के छात्रसंघ अध्यक्ष अर्जुन सिंह, वही कॉलेज जिसे अब टीआरएस के नाम से जाना जाता है.. कांग्रेस नेताओं ने नेहरू से कानों में कुछ बुदबुदया. नेहरू ने मंच से ही ऐलान कर दिया कि चुरहट के उम्मीदवार पर रिश्वतखोरी का आरोप है,, वो अब कांग्रेस के प्रत्याशी नहीं हैं... नेहरू जब मंच से नीचे उतरे तो उनका परिचय शिव बहादुर सिंह के बेटे अर्जुन सिंह से कराया गया. तो नेहरू मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए. राव शिव बहादुर सिंह निर्दलीय चुरहट से चुनाव लड़े और सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी जगत बहादुर सिंह से हार गये.

फिर बरस आया 1957, विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रहीं थीं. एक शाम कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री डॉक्टर सुशीला रीवा आईं... और राज निवास में रूकीं... सुशीला महात्मा गांधी की निजी चिकित्सक रह चुकी थीं.. बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनीं....सुशीला ने अर्जुन सिंह को संदेश भेजा कि वो उनसे तुरंत मिलना चहती हैं....अर्जुन सिंह पहुंचे और दोनों के बीच कुछ मिनटों तक बात होती रही.. थोड़ी देर बाद सुशीला ने दाऊ के सामने कांग्रेस से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा... . लेकिन दाऊ ने 1952 की घटना का जिक्र करते हुए.. चुनाव लड़ने से मना कर दिया....और निर्दलीय ही मझोली विधानसभा से चुनावी मैदान में कूद पड़े.. और जीत भी लिया.. दाऊ ने सबित कर दिया कि उनके परिवार पर जनता अब भी भरोसा करती है. चुनाव जीतने के बाद दाऊ आनंद भावन गए. जवाहर लाल नेहरू से मिले,, और कांग्रेस में शामिल हो गए...

अब थोड़ा पीछे चलते हैं,, आजादी के एक साल बाद यानि, 1948 में श्री निवास तिवारी ने समाजवादी पार्टी का गठन किया..और 1952 में विधायक चुन लिए गए...पहली बार विधायक बनने की भी.. अपनी कहानी है...जिसकी चर्चा हम फिर कभी करेंगे...1956 स्टेट रीऑर्गेनाइजेशन, विंध्य को मध्यप्रदेश में मिलाने की कवायद शुरू हुई... जिसका दादा ने खुलकर विरोध किया.. 1957 से 1972 तक दादा को लगातार तीनों चुनावों में हार का सामना करना पड़ा..लेकिन राजनीतिक संघर्ष जारी रहा... साल 1973 इंदिरा गांधी रीवा आईं और दादा को कांग्रेस की सदस्यता दिलाईं. और सफेद शेर का टाइटल दिया.. 6 फीट की कद-काठी सफेद घने बाल, भौहें और दहाड़ सी आवाज वाले उस शख्स को कोई सफेद शेर ना कहता तो भला और क्या कहता.

फिर साल आया 1977 विधानसभा के चुनाव हुए कांग्रेस सरकार बनाने से पीछे रह गई...पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो नेता विपक्ष के लिए कांग्रेस में अर्जुन सिंह और तेजलाल टेंभरे सक्रिय हो गए.. तेजलाल टेंभरे समाजवादी नेता थे. तो उन्हें लगा कि श्री निवास तिवारी उनका साथ देंगे... लेकिन दादा ने अर्जुन सिंह के लिए लॉबिंग की. कृष्णपाल सिंह सरिखे कई नेताओं को दाऊ के पक्ष में तैयार कर लिया..और दाऊ नेता विपक्ष चुन लिए गए...
साल 1980 में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए... कांग्रेस चुनाव जीती. विधायक दल का नेता चुनने के लिए बड़े-बड़े नाम आये. केपी सिंह, विद्याचरण शुक्ला, प्रकाशचंद सेठी, शिवभानु सिंह सोलंकी और अर्जुन सिंह. कमलनाथ का नाम भी था. उन्होंने अपने वोट और अपना साथ अर्जुन सिंह को दे दिया. सीएम चुनने का दूसरा दौर चला...पर्यवेक्षक के तौर पर आये प्रणव मुखर्जी. मतपेटी में वोट डाले गए. और मतपेटी को दिल्ली मंगवा लिया गया...दरअसल, हाई कमान मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री पहले ही चुन चुका था. ये सारा टिटिम्मा तो इसलिए कराया गया कि कांग्रेस के भीतर असंतोष न फैले,, अर्जुन सिंह को विधायक दल का नेता घोषित कर दिया. अर्जुन सिंह को संजय गांधी से नजदीकी काम आई. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी दादा और दाऊ के बीच दोस्ती रही..कई मामलों में रायशुमारी हुआ करती थी. दाऊ, दादा की कई बाते मान लिया करते थे.

मघ्य प्रदेश की राजनीति में नियमों को शिथिल करने जैसे डायलॉग बड़ा मशहूर है. लोग इसको दाऊ का मानते हैं . लेकिन ये दादा का दिया हुआ है.. दरअसल, मुख्यमंत्री, मुख्यसचिव को बरखाश्त करना चहते थे, लेकिन, साहस नहीं जुटा पा रहे थे. दादा ने दाऊ को सलाह दिया की इस पुण्य काम को अगर आप कल करना चहते हैं तो आज करें. तभी मध्य प्रदेश चला पाएंगे. सारे नियमों को शिथिल करते हुए आप निर्णय लीजिए. श्रीनिवास और अर्जुन सिंह की राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद दाऊ ने अपनी टीम बनाना शुरू कि..सरकारी निगमों और मंडलों में अपने खास नेताओं की तैनाती कराने लगे.. प्रशासनिक स्तर पर भी दाऊ ने चाल चली... छत्तीसगढ़ यानी तब के आदिवासी इलाकों में मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश की... इसका असली मकसद सिर्फ विकास नहीं था. बल्कि अपने सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन शुक्ल बंधुओं की ताकत को काटना था... दीपक तिवारी अपनी किताब राजनीतिनामा में लिखते हैं कि. इस बात से श्री निवास तिवारी इतने नाराज हुए की मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. और मंत्रिमंडल के माधव लाल दुबे, शिवभानु सोलंकी, बालकावी बैरागी. कृष्णपाल सिंह जैसे कई नेता इंदिरा गांधी से मिले और अर्जुन सिंह की शिकायत की.... मगर अर्जुन सिंह भी कमजोर नहीं हुए... उन्होनें शिकायत करने वाले मंत्रियों के विभाग ही बदल दिए. अब ये लड़ाई दाऊ बनाम दादा के प्रतिष्ठा की थी.. और ये पांच साल नहीं, बल्कि कई दशकों तक चली. असल में, ये लड़ाई विंध्य की ठाकुर बनाम ब्राह्मण की थी... पुरानी रार जैसा था. जो सत्ता के हर मोड़ पर नए रूप में सामने आती रही. फिर आया 1985 का चुनाव. टिकट बंट रहे थे,, अर्जुन सिंह को बदला लेने का मौका मिल गया.... चुनाव समिति की मीटिंग में विद्याचरण शुक्ल ने तिवारी का नाम आगे बढ़ाया.. अर्जुन सिंह ने मीटिंग में हामी भर दी, लेकिन जब कांग्रेस की फाइनल लिस्ट आई. तो उसमें श्रीनिवास तिवारी का नाम ही नहीं था. श्री निवास तिवारी रीवा के अमहिया से सरकार चलाते थे.

अगले दिन सवेरे अमहिया में दसियों हजार की भीड़ जमा हुई. कहा, कांग्रेस छोड़ दें. पूरे विध्य में उम्मीदवार खड़ा कर दें. दादा ने कहा कांग्रेस मतलब सिर्फ अर्जुन सिंह थोड़ी है. 11 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने, और अगले ही दिन यानी 12 मार्च 1985 को संजय गांधी ने उन्हें इस्तीफा दिलाकर पंजाब का राज्यपाल बना दिया. वजह चाहे जो रही हो, लेकिन श्रीनिवास तिवारी के समर्थक आज भी इसे दादा का काम मानते हैं. वहीं दाऊ के समर्थक कहते हैं, उनका राज्यपाल बनना पहले से तय था, मुख्यमंत्री तो, वो अपना रुतबा दिखाने के लिए बने थे. 1990 में दादा को कांग्रेस से टिकट मिली और चुनाव जीतकर विधानसभा उपाध्यक्ष बनाए गए. और 1993 में दिग्विजय सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद 10 साल तक वह विधानसभा अध्यक्ष रहे.

1991 रीवा लोकसभा चुनाव जब निजी रंजिश ने जातीय समीकरण बदल दिए. रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस ने श्रीनिवास तिवारी को टिकट दिया... भाजपा से कौशल प्रसाद मिश्र और बसपा से भीम सिंह पटेल मैदान में थे. जब परिणाम आया, तो पूरे क्षेत्र के साथ देश भी चौंक गया. बसपा के भीम सिंह पटेल ने भारी अंतर से जीत दर्ज की, और रीवा से बसपा का पहला सांसद बना. राजनीतिक गलियारों में चर्चा रही कि अर्जुन सिंह ने अपने ठाकुर समर्थकों को दादा के खिलाफ मतदान करने का संकेत दिया था.,. यहीं से विंध्य में ठाकुर बनाम ब्राह्मण राजनीति की नींव पड़ी. हार के बाद दादा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा अब मैं समझ गया हूं कि चुनाव कैसे लड़ा जाता है..अब कभी चुनाव नहीं हारूंगा.. 1996 के लोकसभा चुनाव में दादा ने बदला लिया. अर्जुन सिंह के खिलाफ ब्राह्मण समुदाय में खुलकर लॉबिंग की. नतीजा आया तो अर्जुन सिंह तीसरे स्थान पर आ गए... जिसके बाद विंध्य में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की खाटी राजनीती की शुरूआत हो गई... जो आज तक चली आ रही है..
 
                     shivendra
                                    shivendra                                
 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                 
                    
                
 
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
            
             
         
         
         
         
         
         
         
         
        