MP में ढूंढे नहीं मिलेंगे सड़कों पर आवारा गोवंश सरकार ने बनाई प्लानिंग
MP में ढूंढे नहीं मिलेंगे सड़कों पर आवारा गोवंश, मल्टीनेशनल कंपनियों के साथ सरकार ने बनाई प्लानिंग
MP में सड़कों के साथ ही यहां-वहां लावारिस घूमने वाले गोवंश के दिन फिरने वाले हैं। गोवंश को संरक्षित करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार कई स्तरों पर प्रयास कर रही है। जहां गौशालाओं में गायों को रखने पर प्रोत्साहन योजना चलाई जा रही है तो अब एक और नया प्रयोग होने जा रहा है। गायों को सुरक्षित करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार स्वावलंबी गौशाला नीति पर आगे बढ़ रही है।
पशुपालन मंत्री लखन पटेल ने बताई योजना
पशुपालन मंत्री लखन पटेल ने बताया कि इस योजना के पूरी तरह क्रियान्वित होने के बाद आवारा जानवर ढूंढे नहीं मिलेंगे। क्योंकि हमारे ये जानवर इन गौशालाओं में फायदे का सौदा साबित होंगे। इन गौशालाओं को लेने के लिए मल्टीनेशनल कंपनियों ने इच्छा जताई है यहां सीएनजी भी बनेगी और खाद भी बनेगा लोग खुद जानवरों को यहां छोड़कर आएंगे।

सड़कों पर गौवंश बड़ी समस्या
मध्य प्रदेश की सड़कों पर बड़े पैमाने पर आवारा जानवरों को देखा जाता है। तेज रफ्तार गाड़ियों से जानवर टकराते हैं और इसके बाद इन्हें वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। सड़क पर बैठे इन जानवरों की वजह से कई गंभीर दुर्घटनाएं भी घटती हैं और लोगों की जान भी जाती है। इस समस्या के बारे में चर्चा बहुत हुई लेकिन इसका कोई स्थाई निदान अब तक नहीं मिल रहा था।
आवारा गौवंश से किसान परेशान
आवारा गोवंश केवल सड़क पर ही लोगों को परेशान नहीं कर रहे थे बल्कि इससे ज्यादा परेशानी तो उन किसानों की है, जिनके खेतों में ये जानवर घुसकर फसल नष्ट कर देते हैं। किसानों को अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों में करंट तक लगाना पड़ता है। यह तरीका भी बहुत खतरनाक है इसकी वजह से न केवल जानवरों की मौत होती है बल्कि कई बार अनजाने में खेत पर पहुंचे दूसरे लोगों की भी जान चली जाती है, लेकिन इस समस्या का भी किसानों के पास कोई समाधान नहीं है। आवारा जानवरों की बढ़ती तादाद और किसानों के बीच का संघर्ष लगातार बढ़ रहा है।

गौवंश को लेकर धार्मिक विवाद भी
हिंदू धर्म के मानने वाले गाय के महत्व को लेकर भी चिंतित हैं। इसलिए मध्य प्रदेश में गौहत्या गैरकानूनी है वहीं दूसरी तरफ बाजार में गौमांस की मांग को लेकर गाय का अवैध कारोबार भी होता है। इस वजह से भी संघर्ष की स्थिति बनती कुछ संगठन आंदोलन करते हैं इन सभी समस्याओं का देशभर में किसी सरकार के पास कोई स्थाई निदान नहीं है। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के पशुपालन मंत्री लखन पटेल का कहना है इन सभी समस्याओं का मध्य प्रदेश सरकार ने स्थाई समाधान खोज लिया है। सरकार इस योजना पर आगे बढ़ चुकी है।
नार्वे की कंपनी ने रखा प्रस्ताव
मंत्री पटेल ने बताया स्वावलंबी गौशाला नीति पर अमल करते हुए मध्य प्रदेश के 14 जिलों में पशुपालन विभाग ने टेंडर जारी किया था। इस योजना के तहत कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने मध्य प्रदेश में स्वावलंबी गौशाला खोलने में रुचि दिखाई है। इसमें नार्वे की एक कंपनी सामने आई, जो कई जिलों में गौशाला लेने को तैयार है अदानी जैसा बड़ा ग्रुप भी गौशाला संचालित करने के लिए रुचि दिखा रहा है।

मध्य प्रदेश स्वावलंबी गौशाला कामधेनु आवास योजना
मध्य प्रदेश सरकार की इस योजना के तहत निजी गौशाला को एक साथ कम से कम 5000 गोवंशों को रखना होगा। इसमें 30% दुधारू नस्ल रखी जा सकती हैं सरकार 125 एकड़ सरकारी भूमि गौशाला को देगी यदि संख्या 1000 और बढ़ जाती है तो 25 एकड़ और दी जाएगी इसी के भीतर यदि व्यावसायिक गतिविधि होती हैं तो 5 एकड़ जमीन और दी जाएगी निराश्रित गोवंश को 40 रूपए प्रतिदिन के अनुसार भोजन का पैसा भी दिया जाएगा।
खाद का प्लांट और सीएनजी प्लांट
यह योजना बहुत आकर्षक है इसके भीतर एक साथ 5000 जानवरों से पैदा होने वाला गोबर खाद बनाने के काम में आएगा। इस गौशाला को सीएनजी बनाने की अनुमति भी दी जा रही है। गौशाला तो 20 एकड़ में बन जाएगी, बाकी जमीन पर सीएनजी प्लांट के लिए घास का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसी आकर्षण की वजह से अंतरराष्ट्रीय कंपनियां गौशाला खोलने की इच्छा जता रही हैं।

प्रदेश के 14 जिले, जहां जमीन दी गई
इस योजना के पूरे क्रियान्वयन के बाद आवारा जानवरों की समस्या से पूरी तरह निजात मिल जाएगी। कंपनियों को फायदा होगा तो रोजगार के रास्ते खुलेंगे लोगों को सीएनजी मिलेगी खाद मिलेगी सरकार ने मंदसौर, जबलपुर, रायसेन, दमोह, सागर, पन्ना, विदिशा, सतना, अशोकनगर, छतरपुर के राजनगर गौरिहार रतलाम शाजापुर और भिंड में जमीन चिह्नित कर ली है। सबसे ज्यादा जमीन दमोह में 511 एकड़ और जबलपुर में 461 एकड़ दी गई है।
सीएसआर फंड का भी होगा इस्तेमाल
राज्य सरकार की इस नीति में सीएसआर फंड का भी उल्लेख है सरकारी और निजी क्षेत्र की हर बड़ी कंपनी को स्थानीय सामाजिक विकास के लिए सीएसआर फंड देना होता है। यह रकम बहुत बड़ी होती है अब इसका इस्तेमाल भी पशुपालन विभाग गौशाला बनाने में कर रहा है। पहली बार टेंडर में 14 जिलों के लिए लोगों को बुलाया गया था, लेकिन केवल दमोह का टेंडर फाइनल हो पाया है। पूरे देश में योजना नहीं है इसलिए कागजी कार्रवाई में कंपनियों को समय लग रहा है ऐसी स्थिति में एक बार फिर टेंडर किया जाएगा।

