सीपी राधाकृष्णन पर बीजेपी ने क्यों खेला दांव, समझें चार पॉइंट्स में

भारतीय जनता पार्टी ने सीपी राधाकृष्णन को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर संघ, विचारधारा और जातिय समीकरण को साधा है

सीपी राधाकृष्णन पर बीजेपी ने क्यों खेला दांव, समझें चार पॉइंट्स में
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लंबे इंतजार के बाद आखिरकार बीजेपी ने अपने पत्ते खोल दिए हैं.. महाराष्ट्र राज्यपाल और दक्षिण की राजनीति में सक्रिय सीपी राधाकृष्णन को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया है. राधा कृष्णन के नाम की मुहर बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में लगी. जिसका ऐलान पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने किया. उन्होंने ये भी कहा कि हम इसके लिए सभी विपक्षी दलों से चर्चा कर समर्थन जुटा रहे हैं.. ताकि उपराष्ट्रपति के लिए निर्विरोध चुनाव हो सके.  वहीं, सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाना बीजेपी का बेहद सोचा-समझा कदम माना जा रहा है. बीजेपी सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर क्या संदेश देना चहती है. तो आइए एक एककर सभी समीकरणों पर तफसील से बात करते हैं.

पहला मकसद, दक्षिण भारत को सियासी संदेश देना

उपराष्ट्रपति के एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन दक्षिण भारत के तमिलनाडु से आते हैं. इस तरह से बीजेपी ने उनके नाम पर मुहर लगाकर दक्षिण भारत को साधने का दांव खेला है. उत्तर भारत की सियासत पर बीजेपी की पकड़ मज़बूत बनी हुई है, लेकिन, दक्षिण भारत की सियासी ज़मीन अभी भी पार्टी के लिए बंजर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा दोनों ही उत्तर भारत से हैं. ऐसे में बीजेपी ने दक्षिण के साथ सियासी संतुलन बनाए रखने के लिए सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने की रणनीति अपनाई है. साउथ के किसी राज्य में बीजेपी की अपनी सरकार नहीं है. आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी सरकार में बीजेपी शामिल है... तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.. राधाकृष्ण तमिलनाडु से आते हैं.. उन्होंने राज्य में बीजेपी को मजबूत करने के लिए काफी मशक्कत की है. इस फैसले को तमिलनाडु के लोगों को भी सियासी संदेश देने की रणनीति मानी जा रही है. सीपी राधाकृष्णन ने दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में भी बीजेपी के लिए काम किया है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश दक्षिण भारत में अपनी जड़े मज़बूत करने की है.

दूसरा मकसद, संघ को सियासी तरजीह देना

सीपी राधाकृष्णन संघ की पृष्ठभूमी से निकले नेता हैं.जनसंघ के दौर से वे बीजेपी से जुड़े हुए हैं. संघ चहता, है कि सर्वोच्य पदों पर बैठे लोग पार्टी और उसकी विचारधारा के प्रति समर्पित हों. इस तरह से बीजेपी ने आरएसएस की विचारधारा के साथ मजबूती से रहने वाले राधाकृष्णन के नाम पर मुहर लगाकर सियासी संदेश दिया है.

तीसरा मकसद, सामाजिक समीकरण साधना

बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन के जरिए क्षेत्रीय संतुलन ही नहीं बल्कि सामाजिक समीकरण साधने की भी कवायद की है. राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय से हैं, और जगदीप धनखड़ भी ओबीसी समाज से थे. इस तरह से बीजेपी ने ओबीसी समाज से ही उपराष्ट्रपति बनाने का फैसला किया है. ताकि विपक्ष को घेरने का मौका न मिल सके.क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ओबीसी के मुद्दे को लेकर आक्रामक रहते हैं, जिसके लिए वे जाति जनगणना से लेकर सरकार में दलित-ओबीसी की भागीदारी का भी सवाल उठाते रहते हैं. मोदी सरकार पहले ही जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर चुकी है, और अब उपराष्ट्रपति के लिए राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने सियासी संदेश देने की कोशिश की है. देश में ओबीसी समुदाय की आबादी 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है और बिहार की राजनीति पूरी तरह से ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में बीजेपी ओबीसी वोटों को लेकर किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है, जिसके लिए ओबीसी से आने वाले राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाने का दांव चला है.

चौथा मकसद, विचारधारा को अहमियत देना

जगदीप धनखड़ के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहा था, जो वैचारिक रूप से संधी और बीजेपी का कट्टर समर्थक हो. यही वजह है कि बीजेपी ने वैचारिक पृष्ठभूमि को ध्यान दिया है.. सीपी राधाकृष्णन आरएसएस के बैकग्राउंड से आते हैं. जनसंघ के दौर से लेकर बीजेपी से उनका नाता रहा है. संघ और बीजेपी की विचारधारा के प्रति समर्पित रहें हैं. जबकि, जगदीप धनखड़ का नाता संघ और बीजेपी से नहीं रहा है. उन्होंने अपना राजनीतिक सफ़र जनता दल से किया, फिर कांग्रेस में रहे और उसके बाद बीजेपी से जुड़े. मोदी सरकार आने के बाद धनखड़ पहले राज्यपाल बने और फिर उपराष्ट्रपति बने थे, लेकिन, जिस तरह से उन्होंने बीजेपी की लाइन से हटकर विपक्ष के साथ तालमेल बैठा रहे थे, उसके चलते इस बार बीजेपी ने उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के चयन में विचारधारा और सियासी बैकग्राउंड का पूरा ख़याल रखा है.

इस तरह बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सीपी राधाकृष्णन को चुनकर न केवल दक्षिण भारत और ओबीसी समाज को साधने की रणनीति को मजबूत किया है, बल्कि संघ विचारधारा के प्रति अपनी निष्ठा का भी पक्का संदेश दिया है... यह फैसला बीजेपी की सियासत में संतुलन और विचारधारा का मेल है, जो आने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है...अब देखना यह होगा कि विपक्ष इस चाल का जवाब कैसे देता है..