चार साल से अधर में लटकी है विस्थापन की कार्रवाई

रीवा | नगर निगम प्रशासन ने अब तक जलग्रहण क्षेत्र में बसे घरों को लेकर कोई कार्य योजना नहीं बनाई है। यह तो पहले से ही अनुमानित है कि अगर 2016 जैसी बाढ़ दोबारा आई तो हजारों लोगों का जनजीवन प्रभावित होगा। उसी साल में आई बाढ़ के मद्देनजर कैचमेंट एरिया में बसे 211 मकानों को चिन्हित किया गया था और उन्हें से विस्थापित करके किसी सुरक्षित जगह में ले जाना था। 

चार साल बीत गए हैं मगर इस मामले में नगर निगम हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। 211 मकान 2016 में चिन्हित हुए थे। अब 2020 में न जाने कितने और मकान नदी के किनारे तन गए हैं जिसका पता करने के लिए नगर निगम को दोबारा से चिन्हांकन कराने की जरूरत है मगर नगर निगम इस समस्या की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा है।

ग्रीन बेल्ट के नियमों को कर रहे नजरअंदाज
गौरतलब है कि 1997, 2003, 2016 में आई भयंकर बाढ़ के कारण नदी किनारे बसे घर ध्वस्त हो गए। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नगर निगम और जिला प्रशासन एक बार फिर वैसा ही मंजर देखने का इंतजार कर रहा है। क्योंकि नगर निगम ग्रीन बेल्ट के नियमों और जलग्रहण क्षेत्रों में स्थित मकानों की तरफ जरा सा भी गंभीर होता तो अब तक नदियों के किनारे स्थापित घरों का विस्थापन किया जा चुका होता। ज्ञात हो कि तीन साल पहले जिला प्रशासन व निगम की संयुक्त टीम ने नाप-जोख की थी जिसमें ऐसे 211 मकान चिन्हित किए गए थे जो जलग्रहण क्षेत्र में आते थे। योजना यह थी कि चिन्हित मकानों को नदी किनारे से हटाकर कहीं और सुरक्षित जगह में पुनर्वास करना था। मगर नगर निगम सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाता गया। जमीनी स्तर पर एक र्इंट भी नहीं हटाई गई।

इन मकानों को किया गया था चिन्हित
2016 की बाढ़ के बाद तत्कालीन कमिश्नर ने कैचमेंट एरिया से अतिक्रमण हटाने के निर्देश जारी किए थे। प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला होता गया और अतिक्रमण हटाने के आदेश का पालन नहीं हो पाया। नए अधिकारियों ने अतिक्रमण हटाने को लेकर कोई कार्रवाई भी नहीं की। 2017 में नाप जोख के बाद 211 मकान चिन्हित हुए थे मगर उन्हें हटाया नहीं गया।

बता दें कि बाबा घाट से राजघाट तक 63 मकान, पश्चिमी तट निपनिया की तरफ 79 और बस्ती की तरफ 69 मकान चिन्हित किए गए थे। नदी के दोनों तरफ 20 मीटर तक रेड जोन और 30 मीटर तक ग्रीन बेल्ट एरिया खाली कराना है। वहीं अमहिया नाले के दोनों तरफ दस-दस मीटर और छोटे नालों के 5 मीटर एरिया खाली कराने का नियम है। मगर यहां अमहिया नाले की दीवार ही मकानों के भरोसे टिकी हुई है और छोटे नालों के ऊपर घर बने हुए हैं। कुल मिलाकर अर्बन एण्ड टाउन कंट्री प्लान की धज्जियां उड़ रही हैं और प्रशासनिक अमला मूकदर्शक बना बैठा हुआ है।

विक्रम पुल के समीप आधा सैकड़ा झोपड़ियां
नगर के विक्रम पुल यानी कि बड़ी पुल के समीप आधा सैकड़ा से अधिक झोपड़ियां और कच्चे मकान तने हुए हैं। बीते वर्षों में हुई मूसलाधार बारिश के दौरान यहां कई लोगों के घर बह गए थे। मगर उससे न तो यहां रहने वालों ने कोई सीख ली और न ही नगर निगम ने बाढ़ के बाद उत्पन्न हुए हालात को गंभीरता से लिया। विडम्बना की बात यह है कि किस तरह नगर निगम खुद ही नगरीय प्रशासन के नियमों और हाईकोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा रहा है। नगर निगम से यह सवाल है कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो कैचमेंट एरिया में बसे परिवारों के विस्थापन की कार्रवाई चार साल से अटकी हुई है।