मऊगंज एवं रीवा में सड़क से लेकर खेत तक निराश्रित मवेशियों का डेरा

सूबे में सरकार द्वारा चलाई गई ऐरा मवेशियों के प्रबंधन की योजना हुई फेल. फोटोग्राफ्स एवं अखबारों की लाइनों तथा सोशल मीडिया के की खबरों तक ही सीमित ऐरा मवेशियों का प्रबंधन.

मऊगंज एवं रीवा में सड़क से लेकर खेत तक निराश्रित मवेशियों का डेरा

राजेंद्र पयासी- मऊगंज 

सूबे के किसानों एवं राह चलते लोगों के लिए ऐरा निराश्रित मवेशी मुसीबत बन चुके हैं। ऐरा मवेशियों के प्रबंधन के नाम पर  सरकार की बड़ी पूंजी तो खर्च हो रही है लेकिन जमीनी हालात देखकर साबित होता है कि ऐरा मवेशियों का प्रबंध पूर्ण रूपेण फेल हो चुका है और सड़क से लेकर खेत तक जहां देखा जाए वही मवेशियों का झुंड दिखाई देता है।

स्थिति कुछ इस कदर है कि  निराश्रित आवारा गोवंशों को पड़कर गौशालाओं एवं निर्धारित बाड़े में व्यवस्थित करने के लिए शासन द्वारा अभियान चलाने के लिए दिए गए आदेश का पालन रीवा एवं मऊगंज जिले में आज तक नहीं हो पाया। वैसे राजधानी से जारी आदेश का पालन सभी जिलों की तरह मऊगंज एवं रीवा जिले में भी करना था। लेकिन देखा यह जा रहा है कि भोपाल से बीते वर्ष जारी आदेश के पालन हेतु स्थानीय स्तर के जिम्मेदारों द्वारा आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जबकि शासन के आदेश को प्रभावी ढंग से पालन करने एवं करने हेतु बीते 1 वर्ष के अंतराल में कई बैठकर हो चुकी है। लेकिन यह बैठकर सिर्फ आदेश निर्देश एवं बेहतर व्यवस्था बनाने के वायदे तक सीमित रह गई है।

मऊगंज एवं रीवा जिला प्रशासन द्वारा क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों की विशेष बैठक लेकर निर्धारित तिथि तय करते हुए उस अंतराल में निराश्रित आवारा पशुओं को गौशाला एवं निर्धारित योजना अनुसार बाड़ा बनाकर व्यवस्थित करने के साथ-साथ उनके लिए चारा पानी की बेहतर व्यवस्था बनाने के निर्देश कई बार जारी हुए। लेकिन जिला प्रशासन के आदेश का कहीं भी पालन नहीं हो पाया। यदि कहीं पालन भी हुआ है तो सिर्फ और सिर्फ कागजी खानापूर्ति की व्यवस्था बनाई गई है।

खेती एवं जान के दुश्मन बने ऐरा मवेशी

ऐरा प्रथा से न केवल किसानों की खेती बर्बाद हो रही है बल्कि सड़कों पर चलना भी जानलेवा साबित हो रहा है। हालत तो इतने खराब है कि किसान अब अपने पुश्तैनी व्यवसाय खेती करने से ही मुंह मोड़ने लगा है। क्योंकि इतनी महंगाई के दौर में किसान अपने खेतों की बुवाई करता है उपरांत खेतों में खड़ी फसल की रखवाली करना बड़ी चुनौती है। क्योंकि खेतों की फसल चंद घंटे में ही आवारा पशु नष्ट कर देते हैं। जिसके चलते किसान अपनी फसल की सुरक्षा के लिए जान जोखिम में डालकर दिन ही नहीं बल्कि भारी बारिश एवं हाड़ कपा देने वाली ठंड के बीच रात दिन खेतों की सुरक्षा में जुटा रहता है। सवाल यह उठता है कि स्थानीय स्तर के जिम्मेदार शासन प्रशासन द्वारा दी गई जिम्मेदारी का पालन कब करेंगे। सवाल यह भी उठता है कि क्या मुसीबत से जूझते किसानों को शासन से जारी आदेश अनुसार स्थानीय स्तर के जिम्मेदार निराश्रित आवारा पशुओं से निजात दिला पाएंगे। या फिर सब कुछ कागजी कार्यवाही तक ही सीमित होकर चलता रहेगा।

आदेश के बाद निर्देश तक सीमित आवारा पशु प्रबंधन

निराश्रित आवारा पशुओं से क्षेत्र में छाई विकट समस्या के निजात हेतु शासन के आदेश तो आए। आदेश के पालन हेतु बीते वर्ष प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा एक नहीं दर्जनों बार पंचायत से लेकर राजस्व जैसे सभी विभागों की भारी भरकम बैठकें ली गई। आयोजित बैठकों में लोक लुभावने मिले निर्देश सोशल मीडिया एवं अखबारों में प्रसारित हुए। जिम्मेदारों द्वारा दिए गए निर्देश के बाद किसानों में खुशियां नजर आई की अब आवारा निराश्रित पशुओं से निजात मिलेगा। लेकिन देखते ही देखते राजधानी से जारी आदेश और जिले से जारी निर्देश का किसी भी जिम्मेदार द्वारा पालन न किए जाने के कारण किसानों के अरमानों पर पानी फिर गया जिसका खामियाजा क्षेत्र के किसान एवं सड़कों पर सफर करने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

आवारा मवेशियों के प्रबंधन हेतु आदेश के बाद निर्देश तक सीमित रहने के कारण अब तो लोगों में चर्चाएं होने लगी की आदेश और निर्देश सिर्फ और सिर्फ चंद पल  के लिए लोक लुभावने शब्द हैं और जिम्मेदारों के डायरी में अंकित करने के लिए की युक्त विषय को लेकर जिम्मेदार गंभीर हैं और गंभीरता से काम कर रहे हैं लेकिन वास्तव में वह गंभीरता कहां कितने ढंग से प्रभावी रूप से प्रमाणिक हो रही है कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर शायद ही किसी जिम्मेदार के पास हो। क्योंकि आदेश के बाद आए निर्देश का पालन न होने से आम जनमानस के मन में बड़े सवाल उठने लगे हैं कि आखिर लोग अपनी व्यथा किससे सुनाएं।

अभियान चलते हैं पर प्रभावी कार्यवाही नहीं होती

वैसे तो कहने के लिए शासन व प्रशासन की तरफ से आवारा मवेशियों को पकड़ने के लिए अभियान चलाने के निर्देश भी आए दिन होते रहते हैं। कई बार अभियान चले और अखबारों की सुर्खियां बने रहे। लेकिन यह सुर्खियां सिर्फ कुछ समय के लिए ही रही। रात बीती बात बीती जैसी कहानी सामने आई। नया सवेरा होते ही सब कुछ फोटोग्राफ्स एवं अखबारों की लाइनें तथा सोशल मीडिया के कुछ पल की खबरों तक ही सीमित रह गया। वास्तव में सतत रूप से आवारा मवेशियों के खिलाफ इस तरह के अभियान तब तक चलते रहने चाहिए जब तक की यह सभी निराश्रित पशु गौशालाओं या कांजी हाउस में कैद नहीं हो जाते। किंतु देखा जाता है कि प्रशासन अपना आदेश करने के बाद शांत बैठ जाता है ना तो कोई मॉनिटरिंग होती और ना ही कोई कार्यवाही। इसीलिए आवारा मवेशियों का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कहने के लिए शासन द्वारा इसके लिए कई योजनाएं भी संचालित की गई है किंतु उनका भी प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। 

सड़कों पर आए दिन घट रहे दुर्घटनाएं

आवारा निराश्रित पशु दिन में किसानों की फसल चौपट करते हैं और पेट भरते ही सड़क को अपना आरामगाह बना लेते हैं सड़कों पर चहलकदमी करते या आशियाने की तरह डेरा डाले मवेशियों के चलते आए दिन सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं कई सड़कों में देखा जाता है कि मवेशी वाहनों से दुर्घटना होकर मृत एवं घायल हो जाते हैं। स्थिति इतनी खराब है कि हाईवे से लेकर ग्रामीण अंचल की सड़कों पर आए दिन दुर्घटनाएं घट रही है लेकिन दुर्घटना की स्थिति ना बने इस विषय की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। दुर्घटना में सिर्फ इंसान ही नहीं मवेशी भी घायल होते हैं घायल व्यक्तियों को तो अस्पताल ले जाया जाता है लेकिन दुर्घटनाग्रस्त घायल मवेशी के लिए वहां उनके उपचार की भी कोई सुविधा नहीं होती। पशुपालन विभाग इस मामले में जिम्मेदार होते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं करता इसीलिए विभागीय स्तर पर भी प्रभावी कार्यवाही नहीं होती।

किसानों को ऐरा प्रथा रूपी बीमारी की नहीं मिल पाई दवा

आवारा निराश्रित मवेशियों के प्रबंधन के लिए आज तक प्रभावी कार्यवाही न होने से रीवा एवं मऊगंज जिले में निराश्रित आवारा पशुओं से अन्नदाता परेशान है और अन्नदाता की दर्द भरी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है। ऐरा प्रथा रूपी बीमारी की दवा आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई क्योंकि किसानों के ह्रदय में लगे आवारा मवेशियों से चौपट हो रही खेती के गहरे घाव से उत्पन्न हुए असहनीय दर्द में मरहम लगाने वाले जिम्मेदारों से सिर्फ आश्वासन के सिवाय आज तक बीमारी का न तो गंभीरता के साथ उपचार किया गया और ना ही अधीनस्थों से जमीनी रूप देने हेतु कठोर कदम उठाए गए। जिससे अन्नदाता अपने आप को अब सुरक्षित महसूस कर रहा है।