आदिवासी समितियों से नहीं, व्यापारिक सिंडिकेट से हो रही खरीदी

एमएफपी पार्क में खरीदी की जांच के लिए भाजपा के पूर्व विधायक उरेती ने राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को लिखा पत्र.

आदिवासी समितियों से नहीं, व्यापारिक सिंडिकेट से हो रही खरीदी

खरीदी और भ्रष्टाचार के आरोपों में पहले से घिरे लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र पर एक और आरोप लगा है। हाल में सत्ताधारी दल के पूर्व आदिवासी विधायक दुलीचंद उरेती ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि एमएफपी पार्क द्वारा सहकारी संस्थान होने का ढोंग किया जा रहा है। उरेती का कहना है कि वन मेले में रॉ-मटेरियल खरीदी के लिए आदिवासियों से, वन समितियों और वन धन केन्द्रों से अनुबंध किया जाता है, लेकिन रॉ-मटेरियल को टेंडर के माध्यम से अपनी पसंद की फर्मों से खरीद कर भ्रष्टाचार किया जाता है।

उरेती ने पत्र में लिखा, वनों पर निर्भर अदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए स्थापित किये गये इस प्रसंस्करण केंद्र को अधिकारियों द्वारा अवैध खरीदी कर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। साथ में क्विड प्रो क्यों (किसी के बदले कुछ पाना) के जरिए नियमों में बदलाव कर बड़े व्यापारियों को लाभ देकर पैसा कमाने का केन्द्र बना दिया गया है। पिछले पांच सालों के रिकार्ड का निरीक्षण करने पर पता चलता है कि एमएफपी-पार्क द्वारा टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार किया गया है। टेंडर की शर्त के अनुसार परफारमेंस गारंटी डिपोजिट करना जरूरी है, लेकिन फर्मों को लाभ देने के लिए परफारमेंस गारंटी डिपोजिट नहीं की जाती है। सहकारी उपक्रम होने के वाबजूद दवाइयों के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाने वाला रॉ-मटेरियल सहकारी समितियों से नहीं क्रय किया जाता है। टेंडर में ऐसी शर्ते लगाई जाती है, जिससे केवल व्यापारिक फर्मे ही टेंडर में हिस्सा लेती आ रहीं है।


आठ सालों में 100 करोड़ रुपए की वनोपज खरीदी
पूर्व विधायक ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि लघु वनोपज प्रसंस्करण केंद्र (एमएफपी पार्क) बरखेड़ा पठानी द्वारा पिछले आठ सालों में 100 करोड़ रुपए की वनोपज की खरीदी की गई। अभी हाल में एक मामला गुग्गल खरीदी का है, जिसमें एमओयू से व्यापारी से खरीदी की गई और महंगी दर पर खरीदी कर के लाखों रुपए का नुकसान अधिकारियों द्वारा संस्था का किया गया। वनोपज खरीदी में अनियमिताओं में मिलीभगत में शामिल मुख्य कार्यपालन अधिकारियों और उत्पादन प्रबंधकों के भ्रष्टाचार की जांच गैर विभागीय तरीके से कराने का अनुरोध किया है।


व्यापारिक धर्म के लिए जोड़ते हैं शर्तें
उरेती ने लिखा, अभी वर्तमान टेंडर मे ऐसी शर्ते लगाई हैं, जिससे केवल व्यपारिक फर्मे ही टेंडर डाल सकें। निविदा में एक करोड़ टर्नओवर एवं लैब रिर्पोट की ऐसे नियम जोड़ दिए गए हैं, जिससे न तो वनों पर निर्भर वन समितियां और न ही वनोपज के छोटे संग्राहक एवं व्यापारी खरीदी प्रक्रिया में शामिल हो सकें। निविदाओं के माध्यम से उन वनोपज को भी क्रय किया जा रहा है जो कि प्रदेश के वनों में उपलब्ध हैं। आवंला, हर्रा, बहेरा, गिलोय, शहद गुड़मार, अर्जुन छाल, महुआ, नागरमोथा, धवई फूल, एरंडमूल, करंजबीज, निरगुंडी, बला पंचाग, बबूल गोंद, बराहीकंद, सतावर, अश्वगंधा, चित्रक, बच इत्यादि वनोपज महंगे दरों पर व्यापारियों से क्रय किये जा रहे हैं।


गैर विभागीय समिति से जांच कराएं
पूर्व विधायक ने मांग की है कि वनोपज खरीदी के लिए जारी किया गया टेंडर तत्काल निरस्त की जाए। उच्चस्तरीय गैर विभागीय जांच समिति गठित कर अधिकारियों द्वारा खरीदी में किए गए करोड़ों के भष्टाचार एवं नियमों में बदलाव की निष्पक्ष जांच कराई जाए। प्रदेश के आदिवासी वनोपज संग्राहकों, वन समितियों, वनधन केन्द्रों के माध्यम से खरीदी करना सुनिश्चित कराया जाए। पिछले दस सालों में किए गए समस्त एमओयू एवं उससे क्रय की गई सामग्री एवं भुगतान की जांच की जाए।