क्या है चार धाम की यात्रा? जानें इसके महत्व
चारधाम यात्रा 2025 की शुरुआत 2 मई को केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ हो गई, जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘राज्य का उत्सव’ बताते हुए भाग लिया। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ. ये चारों धाम हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। इस यात्रा की धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्ता इसे हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव बनाती है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित पवित्र केदारनाथ मंदिर के कपाट 2 मई को वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक विधियों के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। इस शुभ अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहे। मुख्यमंत्री धामी ने इस ऐतिहासिक क्षण को ‘राज्य का उत्सव’ करार देते हुए कहा कि चारधाम यात्रा के सफल संचालन के लिए राज्य सरकार ने पूरी तैयारियां कर ली हैं। इससे पहले, 30 अप्रैल को यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिरों के कपाट खोले गए थे, और अब 4 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे। चारों धामों के कपाट खुलने के साथ ही वार्षिक चारधाम यात्रा 2025 का औपचारिक शुभारंभ भी हो गया है।
पर क्या आप जानते है की चार धाम की यात्रा क्या है? ये हिन्दू धर्म में ये क्यों जरुरी है और इसके क्या महत्व है? साथ ही ये यात्रा क्यों और कब होती है? आज के आर्टिकल में आपको चार धाम की यात्रा से जुड़े सभी सवालों के जवाब मिलेंगे।
क्या है चार धाम की यात्रा?
चार धाम भगवान शिव और विष्णु के मंदिरों को कहा जाता है. इसमें उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित चार तीर्थों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा शामिल है। ये सभी मंदिर ऊँचाई पर स्थित हैं और हर साल अप्रैल/मई से अक्टूबर/नवंबर तक के बीच ही खुले रहते हैं। हर साल अक्षय तृतीया के ही दिन चार धाम यात्रा की शुरुआत होती है. मान्यता है की अगर कोई भी व्यक्ति इन चारों धामों की यात्रा करता है तो उसे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चार धाम की शुरुआत यमुनोत्री से क्यों?
आमतौर पर यह यात्रा एक विशेष धार्मिक क्रम में की जाती है पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री, फिर केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ। इसकी भी कई वजह बताई जाती है।यमुनोत्री यमुना नदी का उद्गम स्थल है. हिन्दू धर्म में माँ यमुना को यमराज की बहन मन गया है. पौराणिक कथा के अनुसार भाईदूज के दिन यमराज यमुना जी से मिलने जाते है जहाँ वो माँ यमुना को आशीर्वाद देते है की कोई भी व्यक्ति अगर यमुना में स्नान करेगा तो उसे पापो से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी. और तभी से यमुना में लोग अपने पापों को धोने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते है.
हिन्दू धम्र में भोगोलिक दृष्टि से भी पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करना शुभ माना जाता है भोगोलिक दृष्टि से भी यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ पश्चिम से पूर्व की ओर है इसलिए ये यात्रा यमुनोत्री से ही शुरू होती है.
चार धाम का महत्व
वैसे तो चार धाम की यात्रा लोग पापों से मुक्त होने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए करते है लेकिन चार धाम की यात्रा करने के पीछे सिर्फ यही वजह नहीं है बल्कि ग्रंथो के अनुसार तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थलों पर जाने से व्यक्ति में पौराणिक ज्ञान का विकास होता है. अपनी प्राचीन संस्कृति को जानने और समझने का मौका मिलता है. भगवान आस्था धर्म और भक्ति से जुडी मान्यताओं के बारें में जानकारी मिलती है. इसलिए चार धाम की यात्रा की जाती है.
चार धाम की यात्रा की शुरुआत किसने की?
चार धाम यात्रा की शुरुआत आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी. उन्होंने भारत के अलग अलग हिस्सों में चार मठ स्थापित किए थे. इसके पीछे उनका उदेश्य इन धामों की यात्रा को लोकप्रिय बनाना था, जिससे लोगों में एकता आये और धार्मिक भावना को बढ़ावा मिला. 1950 के दशक तक इन धामों की यात्रा करना बहुत कठिन था, लेकिन बाद में सड़क निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे में सुधार किएय गए जिससे यात्रा आसान हो गई. वर्तमान में चार धाम की यात्रा करने के लिए लोग दूर दूर से आते है साथ ही चार धाम की वजह से उत्तराखंड एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनके उभरा है.