हाईकोर्ट ने किया था अपास्त: न अब तक छोड़ा कार्यालय, न हुई रिकवरी
सतना | लोक निर्माण विभाग को भ्रष्टाचार व अनियमितताओं का अड्डा बनाने वाले पूर्व कार्यपालन यंत्री बीके विश्वकर्मा आखिर किस हैसियत से लोक निर्माण विभाग कार्यालय में बैठ रहे हैं? क्या उन्हें लोक निर्माण विभाग के रीवा और भोपाल में बैठे अधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त है या वे अपनी मनमानी कर रहे हैं? हाईकोर्ट के आदेश पर जारी हुए कलेक्टर के निर्देश को भी ताक पर रखकर बीके विश्वकर्मा का विभागीय कार्यालय में दखल देना प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा रिट याचिका पर 20 नवंबर को बीके विश्वकर्मा को अपास्त किया था । इसी आदेश के परिपालन में कलेक्टर अजय कटेसरिया ने एचएल वर्मा को कार्यपालन यंत्री का दायित्व सौंपा था। हाईकोर्ट के बीके विश्वकर्मा को अपास्त करने के आदेश पर कलेक्टर की पहल से अमल होने के बाद श्री विश्वकर्मा को रीवा कार्यालय में दायित्व निर्वहन करना चाहिए था लेकिन सतना में वे अभी अपनी मनमानी कर रहे हैं।
अभद्रता के साथ कार्यालय में डाली फूट
हैरानी है कि हाईकोर्ट से अपास्त किए जाने के बावजूद बीके विश्वकर्मा सतना कार्यालय में उसी धौंस से काम कर रहे हैं जिसे रीवा परिक्षेत्र के चीफ इंजीनियर ज्ञानेश्वर उइके ही नहीं बल्कि राजधानी में बैठे इंजीनियर इन चीफ सीपी अग्रवाल भी नजरंदाज कर रहे हैं। बीते दिनों एचएल वर्मा के साथ भी उन्होने कार्यालय में अभद्रता की। बताया जाता है कि विभाग के कुछ कर्मचारी और पिछल्लग्गू ठेकेदारों की मदद से कार्यालय में फूट डाल रखी है ताकि कार्यपालन यंत्री वर्मा पर दबाव बनाए रखा जा सके।
बेशक अनुशासन की डोर में बंधे कार्यपालन यंत्री एचएल वर्मा ने आला अधिकारियों से इन कारानामों की शिकायत न की हो लेकिन विभाग की कार्यप्रणाली पर तिकड़म के जोर से पूर्व ईई ने गृहण लगा रखा है। मनमानी और अभद्रता ऐसी कि गत माह सतना सर्किट हाउस में रूके विधानसभा के अपर सचिव वीरेंद्र कुमार और उनके स्टाफ के साथ भी उन्होने बदतमीजी कर दी थी जिसकी जांच भी जिला प्रशासन ने की थी। माना जा रहा है कि अपने कार्यकाल में हुई अनियमितताओं को दुरूस्त करने वे हर आदेश को दरकिनार कर सतना कार्यालय से चिपके हुए हैं।
रिकवरी नहीं कर सका जिला प्रशासन
भ्रष्टाचार व अनियमितताओं को लेकर चर्चाओं में रहने वाले बीके विश्वकर्मा पर अपने ही विभाग के भवनों पर नियम विरूद्ध तरीके से कब्जा जमाने का। सर्किट हाउस के कक्ष क्र. 5 को रास्टर से विलोपित कर कई माह तक उस कब्जा जमाने वाले बीके विश्वकर्मा से अब तक जिला प्रशासन रिकवरी नहीं करा पाया है। राजकीय अतिथि गृह के कक्ष आंवटन से जुड़े जानकार बताते हैं कि नियमन सर्किट हाउस में तीन दिन तक अतिथि के तौर पर अधिकारी रूक सकते हैं, लेकिन इसके बाद यदि सर्किट हाउस के कक्ष व अन्य संसाधनों का उपयोग करना है तो शासन द्वारा निर्धारित दर अदा करना पड़ता है। जिस कक्ष में बीके विश्वकर्मा ने अपना आशियाना बना रखा था, उसका प्रतिदिन किराया 600 और बिजली का बिल 50 रूपए है।
उल्लेखनीय है कि निर्धारित 3 दिन से अधिक रहने पर सर्किट हाउस के कमरों का किराया देना पड़ता है। इसी प्रावधान के तहत जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी संदीप शर्मा के विरूद्ध पीडब्ल्यूडी ने बतौर किराया एक लाख 54 हजार रुपए का नोटिस जारी किया था, किन्तु विश्वकर्मा के मामले में सारे नियम हवा में उड़ रहे हैं। अब बीके विश्वकर्मा स्वयं जुलाई 2019 से आवास आवंटित होने के बाद भी सर्किट हाउस में काबिज हैं, तो क्या जिला प्रशासन व लोक निर्माण विभाग उनसे किराए की राशि वसूलेगा?
इस मामले की जांच करने वाले एसडीएम राजेश शाही ने फरवरी माह में बताया था कि स्थाईतौर पर सर्किट हाउस में कोई शासकीय कर्मचारी नहीं रह सकता। कमरा एलॉट होने के बावजूद ईई के द्वारा सर्किट हाउस के कमरे में रहना आपत्तिजनक था । उन्होने कहा था कि सर्किट हाउस के कमरों में ठहरने के जो नियम है वे कार्यपालन यंत्री पर भी लागू होंगे और उनसे नियमानुसार वसूली की जाएगी। हालांकि रिकवरी के मामले में जिला प्रशासन अभी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सका है।