हाल-ए-जिला अस्पताल: अवार्ड चाहिए नेशनल क्वालिटी का, है बर्न यूनिट तक नहीं

सतना | जिला अस्पताल सतना को सरकार के अवार्ड तो चाहिए भले ही उनके चिकित्सालय में सुविधाओं का अभाव हो। इन दिनों सरदार वल्लभ भाई पटेल जिला चिकित्सालय नेशनल क्वालिटी एसोरेंश का अवार्ड हथियाने के लिए सारे दांव अपना रहा है। असेसमेंट भी जारी है,अवार्ड सतना के हाथ लगेगा या नहीं ये नजारे तो अभी दूर हैं पर जिस अस्पताल को ये बड़ा तमगा चाहिए वहां बर्न यूनिट तक नहीं है। हालात ये हैं कि आग से झुलसे हुए मरीजों को इस बड़े सरकारी दवाखाना में इलाज मिलना संभव नहीं है। उपचार हो भी कैसे जब डीएच में जले मरीजों का इलाज करने के लिए एक अदद वार्ड तक नहीं है।

स्टीमेट बना पर फाइलें दफन हो गर्इं
जिला अस्पताल में इन दिनों तमाम बाहरी रंग रोगन और ताम-झाम के जरिए सरकारी धन का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसका जहां बनता है वो मिल रहा है लेकिन जो सुविधा अति आवश्यक है उसके लिए न तो बजट है न माइनिंग के फंड। बर्न यूनिट बनाने के लिए न तो अस्पताल प्रबंधन को दिलचस्पी है और न ही सतना के एमपी-एमएलए का ध्यान इस ओर जाता है।

हालांकि बीते तीन साल पहले सतना में एनएचएम की ओर से स्टीमेट तो बर्न यूनिट के लिए बनाया गया था लेकिन उसके बाद उस फाइल को कहां दफन किया गया ये आज तक राज ही है।  सतना में तब के सिविल सर्जन डॉ एसबी सिंह ने बर्न यूनिट के लिए स्टीमेंट बनवाया था पर काम नहीं किया और आज भी 400 बेड वाले बड़े जिला अस्पताल में जले हुए मरीजों को उपचार के लिए जगह नहीं है।

यंू तो जिला अस्पताल में कहने को एक बर्नयूनिट है लेकिन यह किसी काम का नहीं। हालात यह  हैं कि जले हुए मरीज भर्ती हुए तो उसे या तो रेफर कर दिया जाता है और यदि महिला हुई तो उसे महिला सर्जिकल वार्ड में चार बेड के  काम चलाऊ यूनिट में मच्छरदानी लगाकर भर्ती कर दिया जाता है। इंतजाम के नाम पर जिला अस्पताल में मच्छरदानी के माध्यम से केवल मक्खियों को रोका जाता है।

यही एक बड़ी वजह है कि डाक्टर अपना पिंड छुड़ाने मरीजों को जबलपुर या रीवा के मेडिकल कॉलेज रेफर कर देते हैं। हालात तो यह भी बनते हैं कि समय पर उपचार न मिलने से मरीजों की मौत भी अस्पताल पहुंचने के पहले ही हो जाती है। बर्न यूनिट अलग इसलिए भी होनी चाहिए कि आग से झुलसे मरीजों के कारण दूसरे मरीजों को संक्रमण का खतरा रहता है फिर भी इतने बड़े जिले के एकलौते हास्पिटल में वातानुकूलित बर्न केयर यूनिट नहीं है। 

न डीएमएफ न माननीयों की निधि 
सतना के सरकारी अस्पताल में बर्न केयर यूनिट के लिए न तो कलेक्टर के गौड़ खनिज का मद मिल रहा और न ही माननीयों की निधि, जिससे अस्पताल में एक सुरक्षित व सुविधा युक्त बर्न केयर यूनिट बन सके और उनका इलाज सतना में ही हो सके। हाल ही में आए प्रदेश के मुखिया ने कई विकास कार्यों का ढिंढोरा पीटा और सतना सांसद सीएम को लुभाने उनकी तारीफ में कसीदे गढ़ते रहे लेकिन एमपी को जरा भी ख्याल नहीं आया कि उनके अस्पताल में दहेज व आग से झुलसे मरीजों के लिए एक अदद वार्ड तक नहीं है और बाते स्मार्ट सिटी की होती रहीं। 

33 लाख 28 हजार का था बजट
सतना में तब कलेक्टर रहे मुकेश शुक्ला ने अस्पताल का निरीक्षण करने बाद जब बर्न केयर यूनिट के बारे में सीएस से पूछा था तो उन दिनों के सिविल सर्जन डॉ एसबी सिंह जवाब नहीं दे पाए थे। बात गुजरे तीन साल से ज्यादा हो गए, तब कलेक्टर के कहने पर बर्न केयर यूनिट का स्टीमेट बनवाया गया और एनएचएम की इंजीनियर अनीता द्विवेदी ने पूरी यूनिट और उसमें आने वाले बिजली खर्च का खर्चा 33 लाख 28 हजार बताया और पूरा स्टीमेट सीएस को दिया था।

अब उसके बाद से बर्न यूनिट का जिन्न बोतल में बंद होकर रह गया। तकरीबन 40 माह गुजर गए और अब तक सतना के जिला अस्पताल को ये सौगात न मिल सकी। यहां तक अब उस फाइल का ही पता नहीं है जिसमे स्टीमेट दिया गया था। नतीजतन यहां आग से झुलसने बाद मरीज को वो उपचार नहीं मिलता जो होना चाहिए,अब डॉक्टरों को भी पता है कि यहां कोई इंतजाम नहीं है लिहाजा मेडिकल कालेज रेफर कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

हमारे यहां बर्न यूनिट अलग से नहीं है,लेकिन ऐसा कोई मरीज आता है तो उसको इलाज दिया जाता है। जो रेफर करने लायक होता है उसे मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है। स्टीमेट कब बना था कितने का इसकी जानकारी हमे नहीं है।
डॉ प्रमोद पाठक, सिविल सर्जन

ये सही है कि साल 2018 में वातानुकूलित बर्न केयर यूनिट के लिए स्टीमेट बनवाया गया था जो 33 लाख के आसपास का था। हमने उसे तबके सिविल सर्जन  को दिया था उसके बाद क्या हुआ इसकी जानकारी नहीं है।
अनीता द्विवेदी, इंजीनियर एनएचएम