एनजीटी के नियम ताक पर, नदियाँ और नाले अतिक्रमण की चपेट में, हटाने की मांग

रीवा शहर की जीवनदायिनी बीहर और बिछिया नदियों पर अतिक्रमण और अवैध प्लॉटिंग के चलते उनका अस्तित्व संकट में है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों ने कलेक्टर और तहसील कार्यालय को ज्ञापन सौंपकर इस पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।

एनजीटी के नियम ताक पर, नदियाँ और नाले अतिक्रमण की चपेट में, हटाने की मांग

रीवा। शहर की जल जीवन रेखा मानी जाने वाली बीहर और बिछिया नदियों के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इनके किनारों पर अवैध निर्माण और भू-माफियाओं की धड़ल्ले से हो रही प्लॉटिंग ने न केवल नदियों की प्राकृतिक धारा को बाधित किया है, बल्कि शहर में हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या को भी गहरा कर दिया है।

 इस संबंध में नागरिकों ने कलेक्टर, तहसील हुजूर को एक ज्ञापन सौंपकर इन जलस्रोतों को बचाने की मांग की है। सामाजिक कार्यकर्ता बी के माला सहित अन्य लोगों ने प्रतिनिधिमंडल के साथ पहुंचकर मांग उठाई कि हाल के दिनों में जलभराव ने बड़े खतरे की आशंका के संकेत दिए है इसलिए प्रशासन सख्ती के साथ कार्रवाई करे।

ज्ञापन में बताया गया है कि बीहर और बिछिया नदियों के दोनों किनारों पर जमीन समतल कर अवैध प्लॉटिंग की जा रही है। इस प्रक्रिया में नदियों की चौड़ाई घटकर नाले जैसी हो गई है, जिससे वर्षा के समय पानी के बहाव में रुकावट आ रही है। नतीजतन, शहर के कई इलाकों में जलभराव और शहरी बाढ़ आम हो गई है।

एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार, नदियों के किनारे 50 मीटर तक किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं है, लेकिन इसके बावजूद पक्के मकान, फार्म हाउस और अन्य संरचनाओं का निर्माण जारी है।

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि नगर निगम की उदार नीतियों और प्रशासन की अनदेखी ने इस गंभीर समस्या को जन्म दिया है। ज्ञापन में कलेक्टर से मांग की है कि राजस्व एवं नगर निगम स्तर पर जांच अभियान चलाकर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही, नदियों और नालों को अवैध कब्जों से मुक्त कर पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। 

नाले भी लुप्त होने की कगार पर

ज्ञापन में यह भी बताया गया कि रीवा की जल निकासी से जुड़े कई छोटे-बड़े नाले जैसे चंदुआ, धिरमा, अमहिया, करहिया, रतहरा और अनंतपुर भी अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं। इन नालों पर मकान और दीवारें बनाकर नाले की चौड़ाई को संकुचित कर दिया गया है, जिससे जल निकासी की क्षमता घट गई है और बरसात में पानी रिहायशी इलाकों में भरने लगता है।

ईको पार्क निर्माण पर भी सवाल

ज्ञापन में बीहर नदी के बीचोंबीच स्थित टापू पर बने ईको पार्क पर भी सवाल उठाए हैं। ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि यह टापू रेड ज़ोन श्रेणी में आता है, जहां किसी भी तरह के पक्के निर्माण की अनुमति नहीं होनी चाहिए थी। बावजूद इसके, यहां कंक्रीट के ढांचे खड़े कर दिए गए हैं।

ज्ञापनकर्ताओं ने मांग की है कि इस निर्माण की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और टापू को उसके प्राकृतिक स्वरूप में बहाल किया जाए।