प्रदेश के 20 जिलों में अध्यक्ष बदलने की तैयारी में कांग्रेस

भोपाल | मध्य प्रदेश कांग्रेस में आने वाले दिन बड़े बदलाव के हो सकते हैं। प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ नए चेहरों को मौका देने के साथ पुराने दिग्गजों का समायोजन कर प्रदेश में कांग्रेस की नई टीम खड़ी करने की तैयारी में हैं। इस व्यापक बदलाव के केंद्र में स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा तक के चुनाव हैं। बेअसर साबित हुए तीनों प्रदेश कार्यकारी अध्यक्षों को हटाया जा सकता है, वहीं 20 जिलों में अध्यक्ष पद पर नए चेहरे सामने आने की उम्मीद है।

खास बात यह भी है कि कमल नाथ इस बदलाव में ऐसे लोगों की बड़े पैमाने पर छुट्टी कर सकते हैं, जो बैनर, पोस्टर, होर्डिंग और गणेश परिक्रमा के चलते लंबे समय से प्रमुख पदों पर काबिज हैं। विधानसभा उपचुनाव में हार की बड़ी वजह ऐसे लोगों को ही माना गया है। ऐसे ही पदाधिकारियों के चलते संगठन कमजोर भी हो रहा है। दरअसल, कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन में बदलाव मई तक टाल दिए गए हैं। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ का फोकस अब मध्य प्रदेश ही रहेगा।

मई 2018 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कमल नाथ ने अच्छा प्रदर्शन किया। दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बन गई। इस दौरान कांग्रेस के कई धड़े सियासी परिदृश्य में कमजोर पड़ते चले गए, वहीं कमल नाथ और दिग्विजय सिंह प्रदेश कांग्रेस का चेहरा बन गए। इस बीच पिछले वर्ष मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ देने के बाद कमल नाथ सरकार गिर गई।

हर स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने की कवायद
कमल नाथ इस बात को समझते हैं, इसलिए वे कांग्रेस को हर स्तर पर मजबूत करने की कवायद शुरू कर चुके हैं, जिसका प्रभाव जल्द ही पूरे मध्य प्रदेश में दिखाई देगा। वैसे कमल नाथ की राह में कई चुनौतियां भी हैं। उन्हें संगठन में नए चेहरों और पुराने दिग्गजों के बीच संतुलन भी बनाना है, दूसरी तरफ सीबीडीटी की रिपोर्ट से लगे छींटे भी उलझन पैदा करेंगे।

भविष्य की बनाएंगे रणनीति
इसके बाद हुए उपचुनाव में भी कमल नाथ ही प्रदेश कांग्रेस का चेहरा रहे, लेकिन हार की वजह कांग्रेस का कमजोर सांगठनिक ढांचा माना गया। कमल नाथ प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं और कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे मध्य प्रदेश छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं हैं। आने वाले दिनों में प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे, वही 2023 में विस और 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं। इनमें पार्टी का सीधा मुकाबला भाजपा से होना है, जो संगठन स्तर पर कांग्रेस के मुकाबले अधिक सक्रिय और मजबूत है।  कांग्रेस के सामने आदिवासी वोट बैंक को साधे रखने की चुनौती है। यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य जिलों में वासनिक ने कमान संभाल ली।