को-ऑपरेटिव बैंक: अब सांसद विधायक भी बन सकेंगे अध्यक्ष
सतना | यदि सरकार की नीतियों ने मूर्तरूप लिया तो किसानों की सुविधा के लिए संचालित होने वाले को-आपरेटिव बैंक की अध्यक्षता करते सांसद और विधायक नजर आएंगे। इसके लिए सरकार ने प्रदेश सहकारी सोसायटी (संशोधन) अध्यादेश 2020 लागू कर दिया है। इसके साथ ही इन बैंकों के अध्यक्षों को कैबिनेट या राज्य मंत्री का दर्जा देने की तैयारी भी है। उल्लेखनीय है कि सतना जिला समेत प्रदेश में 38 जिला सहकारी बैंक हैं।
इनमें से सतना, छतरपुर, व सीहोर में अध्यक्ष पदस्थ हैं, जिनका कार्यकाल छह माह से डेढ़ साल तक है, जबकि पन्ना जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद को लेकर हाईकोर्ट का स्टे चल रहा है। ऐसी स्थिति में अब सरकार ने सहकारी एक्ट में संशोधन कर प्रदेश के सांसद और विधायकों को 34 जिला सहकारी बैंकों, अपैक्स बैंक सहित अन्य सहकारी संस्थाओं में अध्यक्ष बनाने का रास्ता निकाला है।
बता दें कि सांसद-विधायक पहले भी इन बैंकों के सदस्य होते थे, लेकिन सरकार ने इस एक्ट में संशोधन करते हुए इस प्रावधान को हटा दिया था। सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार और बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी का गठन होने के बाद भी पार्टी में असंतोष बढ़ने के करण अब असंतुष्ट सांसद और विधायकों को साधने का यह फार्मूलानिकाला गया है कि इन बैंकों के अध्यक्ष उन्हें सौंप दिया जाय और उन्हें कैबिनेट या राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया जाय।
इसके साथ ही अब एक और संशोधन की तैयारी सहकारिता विभाग ने की है। इसमें चुनाव न होने की सूरत में विभागीय मंत्री को प्रशासक बनाया जा सकेगा। दरअसल, अभी प्रशासक की परिभाषा में सिर्फ संचालक बनने की पात्रता रखने वाला व्यक्ति या तृतीय श्रेणी कार्यपालिक अधिकारी आते हैं। इसमें विभागीय मंत्री शामिल नहीं हैं। इस परिभाषा में संशोधन के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। यदि मंजूरी मिलती है तो फिर कैबिनेट के माध्यम से इसे विधानसभा के बजट सत्र में संशोधन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।
यह प्रावधान भी किया
सरकार ने सहकारी अधिनियम में संशोधन करके यह प्रावधान भी कर दिया है कि प्रशासक की सहायता के लिए 5 सदस्यीय समिति बनाई जा सकेगी। इसमें 3 सदस्य वो होंगे जो सोसायटी के संचालक मंंडल का सदस्य निर्वाचित होने की पात्रता रखते हो। एक सदस्य पंजीयक का प्रतिनिधि और एक वित्त पोषक संस्थाओं से होगा। संस्थाओं में सरकार अपनी अंश पूंजी भी आवश्यकता के अनुसार बढ़ा सकेगी।
सदस्यता लेना जरूरी
बैंकों में अध्यक्ष बनने से पहले विधायक और सांसदों को बैंक का प्राथमिक सदस्य बनना होगा। इसके लिए वे ऋणी और अऋणी सदस्य बन सकेंगे। बताया जाता है कि करीब 50 फीसदी अध्यक्ष विभिन्न जिला सहकारी बैंकों में अभी भी सदस्य हैं। जिनकी सदस्यता समाप्त हो गई है, वे नए सिरे से उसे जीवित करा सकेंगे। अध्यक्षों की नियुक्ति बैंकों के निर्वाचन के बाद की जा सकेगी। बैंक और सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष का पद लाभ का पद नहीं होने से इसमें सुप्रीम कोर्ट की दोहरे लाभ के पद की गाइडलाइन भी आड़े नहीं आएगी।
सरकार का अध्यक्ष पद को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का निर्णय स्वागत योग्य है। इससे अध्यक्ष को कार्यशक्तियां मिलेंगी और वे किसानों के हित में त्वरित निर्णय लेकर सहकारिता के सिद्धांत को सशक्त बनाएंगे। सांसद व विधायकों का प्रबंध मंडल में शामिल होने से सहाकारिता को बल मिलेगा। इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए।
रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा, अध्यक्ष जिला सहकारी बैंक
यह सही है कि ऐसा प्रावधान सरकार ने तैयार किया है । दरअसल पहले सांसद और विधायक भी सदस्य होते थे लेकिन बाद में नियमों में संसोधन कर उन्हें सदस्यता से अलग कर दिया था। अब सरकार ने पुन: सांसद व विधायकों को सदस्य रखने का प्रावधान बनाया है। येशासन स्तर के निर्णय हैं।
राजेश कुमार रैकवार, महाप्रबंधक जिला सहकारी बैंक